मुंशी और प्रधान – हास्य व्यंग कहानी
का चौबे जी, ई रोज रोज बाल काहे रंगवाते हैं ? गांव का मुंशी मज़ाकिया लहजे से बोला।
चुपकर….बार बार बाल काहे रंगवाते हैं ! अबे तेरा क्या जाता है, सजना संवारना मर्दों को भी भाता है; ग्राम प्रधान चौबे जी नें भी मज़ाकिया लहजे से उत्तर दे मारा मुंशी के मुँह पर।
मुंशी फिर बोला – ठीक है ठीक है, पर 60 पार हो चुके हो और तो और तीन बच्चों के बाप बन चुके हो ! अब किसको रिझाने का इरादा है ? मुंशी इतना क्या बोला, बात आगे बढ़ गई। नाई के पास बैठे प्रधान जी की नाक जल गयी ; नाई भी समझ गया लो हो गया 2 घंटा का फुर्सत। जैसा मुंशी वैसा प्रधान जाने क्या आगे होगा राम।
प्रधान चौबे नाई का हाथ झटकते हुए बोले – देख रे मुंशिया, दिमाग खाली मत कर, वरना…. वरना !!! का वरना ? मुंशी बोला – सुनो चौबे आँख निकालोगे तो अगले चुनाव में आँख के बदले आँख ही दिखाएंगे। अरे इहाँ बैठ के बाल काला करवा रहे हो, जो घर में 3 बेटियां बिन ब्याही बैठीं हैं उनका ख़याल नाहीं ??
देखो प्रधान चौबे – एक बात समझ लो, गधे के पूँछ में मोर का पंख बाँध देने से गधा मोर नहीं बन जायेगा !!! समझे।
मुंशी ज्यादा ज्ञान मत उलाट – नहीं तो ई उस्तरा धर देंगे तोरे गर्दन पे। निकल साला यहाँ से, हम बाल काला करवायें चाहे अपना मुँह चमकायें तोका ओसे का मतलब। तू का अकेले वोट दिया है का हमको, ई नउवा भी तो हमको वोट दिया है। अउर का बोला तू – हम गधा हैं ? देख बेटा हम गांव के प्रधान हैं !! कउनो काम पड़ेगा तो हमसे ही पड़ेगा !! समझे मुंशी !
वाह प्रधान जी वाह क्या जवाब दिया आपने – मिलिट्री के रिटायर्ड हीरा लाल भी इस बहस में कूद गए प्रधान चौबे का पक्ष लेते हुए। अरे मुंशी – जाओ हिसाब किताब देखो अपना। क्या जान खाये हो चौबे जी का, बाल काला करना कोई जुर्म थोड़ी है।
मुंशी कान में बोला – हीरा लाल जी, मैं तो ऐसे ही कह उठा हमको का पता ई बुढ़वा भड़क जायेगा। हम तो ताना इसलिए मारे की कुछ एके खोपड़ी में घुसे, हीरा बाबू 3 बेटियां अभी ई बुढ़ऊ की शादी करने को बचीं हैं और तीनों 20 पार हैं। अब हम कोई दुश्मन तो हैं नहीं, इनके घर जाओ तो घरवाली कहती हैं की मुंशी जी जरा समझाईये चौबे जी को। बेटी की चिंता नहीं है, बस अपना नेतागिरी और बुढ़ौती को जवानी में ढालने में लगे हैं।
हम्म…बात तो सही कह रहे हो मुंशी, हीरा लाल नें उत्तर दिया।
अगले दिन हीरा लाल चौबे जी की गैर मौजूदगी में उनके घर पहुँच गए – चाची प्रणाम, हीरा बाबू आज अचानक दर्शन कैसे दे दिए। चाची सुना है की आप बिटिया की शादी को लेकर बहुत व्याकुल हैं। हाँ हीरा, मैं तो परेशान हूँ पर चौबे जी कुछ समझते नहीं ! कहते हैं की कोई अच्छा लड़का मिले तब बात करूँ ! अब अच्छा लड़का खोजने से ही मिलेगा ना !! इनका प्रधानी देख के थोड़ी कोई आएगा बियाह करने, इनको दूसरे के द्वार पर जाना पड़ेगा ना। पर ई काहे सुनें ….चाची आज मैं उसी खातिर आया हूँ। पड़ोस के गांव में संतोष जी का लड़का मिलिट्री में अफ़सर है… आप कहें तो बात चलाऊं। लड़का अच्छा है और अपना बिरादर भी है कमाता भी अच्छा है। सबसे बड़ा बात ये की संपत्ति भी बहुत है।
चाय की चुस्कियों के साथ हीरा लाल नें चौबे जी की पत्नी को सारी बात बता दी। वो बोलीं – नेकी और पूछ पूछ, हीरा बाबू आपकी कृपा होगी, तनिक इनको आप समझाएं और अपने साथ लेजाकर रिश्ता पक्का कराएं..ई तो वही बात हो गयी लड़का बगल में ढिढोरा शहर में। हां चची, मैं कल ही चौबे जी को साथ लेकर जाता हूँ, सुना है लड़का भी अभी छुट्टी पर घर आया है।
शाम को चौबे जी की पत्नी नें चौबे जी को सारी बात बतायी – चौबे हीरा लाल को बहुत आदर्श व्यक्ति मानते, भला उनकी बात कैसे काटते, अतः चौबे जी नें अगले दिन स्वयं ही हीरा के यहाँ बुलावा भेजा। दोनों साथ चल दिए दूसरे गांव की ओर उनके साथ मुंशी भी था !!
चौबे जी बोले – देख मुंशी लड़के वाले के यहाँ जाकर कुछ उल्टा – फुल्टा मत बोलिहे….समझदारी से बात कहना ई शादी ब्याह का मामला है और हम प्रधान भी हैं। मुंशी मुस्कुराते हुए कहा – आप जैसा कहें मालिक, फिर चिकोटी लेते हुए बोल पड़ा – वैसे चौबे जी अच्छा हुआ आप बाल काला करवा लिए कम से कम लड़के की अम्मा भी तो देखेगी आपको……ही ही ही !! तू साला नहीं सुधरेगा, चौबे नें सरल शब्दों में कहा !
आगे गाड़ी चालक के साथ बैठे हीरा लाल ने कहा – बस बस, आगे पीपल के पेड़ से बाएं लेलो। सामने जो सफ़ेद रंग का चार मंजिला मकान दिख रहा है वही है लड़के का घर। एकदम दरवाज़े के पास रोकना !!
लड़के के पिता को यह बात हीरा लाल ने पहले ही बता दी थी – उसको ध्यान में रख व्यवस्था का अच्छा इंतज़ाम था। जैसे ही गाड़ी दरवाज़े के पास लगी स्वयं लड़के के पिता हाजिर हुए और चौबे जी को प्रणाम बोला। इधर चौबे जी भी उनको गले लगाते हुए खुश दिखे और मुंशी को आज्ञा सूचक शब्दों से कहा – मुंशी गाड़ी में जो लड्डू की टोकरी, फल की टोकरी इत्यादि है वो संतोष जी के द्वार पर रखवाओ। नज़ारा ऐसा प्रतीत हो रहा था की शादी पहले से ही मान ली गयी है; हीरा लाल संतोष जी को बहुत अच्छे से जानते थे। उनका हाथ पकड़ बोले – आइये बैठकर बात करते हैं।
चाय नाश्ते पानी के साथ साथ चर्चा भी जारी थी – कहीं संतोष जी की अपनी बात तो कहीं चौबे जी की अपनी बात और बीच बीच में मजाकिया मुंशी वहां का माहौल और खुशनुमा कर देता। अब मुंशी काम की बात बोला – देखिये संतोष जी, लड़की में कोई दोष नहीं है और गुण तो ऐसे हैं की आपके घर आये तो ये घर स्वर्ग बन जाय, रही बात सुंदरता की तो सीता मईया की सुंदरता समझिये। अब का है की हमारा जमाना तो रहा नहीं – हम बिटिया का फोटो साथ लेकर आये हैं और यदि बबुआ चाहें तो खुद साक्षात दर्शन भी कर सकते हैं बिटिया का। आप बस ई बताएं की लेन – देन कितना करेंगे ?
लड़के के पिता संतोष जी नें आवाज़ लगाते हुए कहा – अमृत बेटा, जारा बाहर तो आओ !! मुंशी जी लेन – देन तो बेटा ही बताएगा ! मुंशी अचंभे से कभी चौबे को देखता कभी हीरा लाल को। तभी बेटा अमृत द्वार पर आया और सभी को पैर छू प्रणाम भी किया। संतोष जी बड़े ज़िंदादिल इंसान थे बोले – बेटा यह लोग लेन – देन पूछ रहे हैं, अब तुम्हीं बताओ क्या लोगे ? लड़का अमृत – लेन देन क्या होता है मुंशी जी !! अब हम लड़की भी लें और पैसा भी लें तो बाबूजी के पास बचेगा क्या ? यह बात सुन वहां बैठे चौबे प्रधान गद-गद हो उठे। वाह क्या उच्च विचार हैं बेटा अमृत, पर लक्ष्मी की कृपा हमपर हमेशा रही है और हम देने में सक्षम हैं तो यह बात पूछ लेना भी जरूरी होता है की आपके मन में क्या है।
काफी देर से खामोश हीरा लाल बोल पड़े – अब बेटा अमृत ने जो कह दिया सो कह दिया, यह शादी पूरा गांव देखेगा की कैसे बिना दहेज़ की शादी होती है। बेटा अमृत दान दहेज़ मुक्त समाज बनाना है। हम फैजी हैं हर मोर्चे पर खड़े होना जानते हैं इसलिए यह दहेज़ का मोर्चा भी हम संभालेंगे। मुंशी, हीरा लाल का मिलिट्री तेवर देखते हुए टोका – ठीक है फैसला हो गया !! हीरा जी आप तो लग रहा है की सरहद पर आये हैं, अरे हम यहाँ शादी की बात कर रहे हैं और आप मिलिट्री का भाषण चालू कर दिए। बेटा अमृत फोटो तो देख लो बिटिया का – हा हा….अमृत एक झलक फोटो देखकर बोला मंजूर है।
शादी की बात चले और पंडित न हो – दरवाज़े के किवाड़ से दाखिल होते रामानंद जोशी, दोनों हाथों को जोड़ सबका अभिवादन किया और कहा लगता हमारे आने से पहले ही सब पक्का हो गया। चौबे जी बोले – भला एक पंडित कैसे पीछे रह गया….ही ही ही सभी वहां इस बात पर हंस पड़े।
बात तो पक्की हो ही चुकी थी जो कसर बाकी थी वो पंडित रामानंद जोशी नें पूरी कर दी। दो अलग अलग सफ़ेद पन्नों पर हल्दी का लेप लगा इस रिश्ते को विधिपूर्वक जोड़ दिया।
इतनी देर से काम की बात करने वाला मुंशी आखिर बेकाम की बात बोल ही बैठा – एक बात बताएं संतोष जी, आपके बाल वास्तविक रूप से काले हैं या आप भी रंग लगवाते हैं ?? नहीं नहीं मुंशी जी अभी तो हम जवान हैं भला रंग काहे लगाएं !! ये हुआ न समधियाना – एक रंगीन एक सादा, अब दोनों मिलकर बजाओ बैंड बाजा। बेटे के पिता संतोष जी नें मुंशी को बीच में रोकते हुए पूछा – रंगीन ?….कौन रंगीन ? आपके होने वाले समधी, मुंशी नें उत्तर दिया।
बड़े रंगीन मिज़ाजी हैं और शौक तो ऐसे की महिलाएं भी पीछे छूट जाएं। जरा रंग तो देखिये बालों का, कुछ दिन पहले चाँदी झलक रही थी आज कालिख लगी है, चेहरे की पड़ी झुर्रियों को क्रीम नें दबाये रखा है; अब आप ही बताएं संतोष जी भला 60 पार का व्यक्ति भी इतनी लालसा रखता है क्या खुद को संवारने की !! प्रधान चौबे, मुंशी की बात सुन आँख की भौहें चढ़ाये पर हँसने को विवश थे !! उधर द्वार पर उपस्थित सभी गण ठहाके लगा कर हँसने लगे। मुंशी की चिकोटियों के साथ विवाह की तारीख तय हुयी। प्रधान और मुंशी की जुगलबंदी गांव में प्रसिद्ध थी, एक तरफ दोनों एक दूसरे की टांग खींचने का कोई मौका नहीं गंवाते तो दूजी ओर हमेशा एक दूसरे का सहयोग भी करते। दहेज़ प्रथा से ग्रसित गांव एक नई मिसाल कायम करने जा रहा था; दो बड़े मुखिया बिन दहेज़, ब्याह की नई प्रथा शुरू करने जा रहे थे। उधर जब चौबे जी की पत्नी को यह खबर मिली तो वह ख़ुशी के मारे झूम उठीं।
मित्रों जीवन का यही रंग है, अतः हँसिए और दूसरों को भी हँसाइए !!
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा