गर्भावस्था के दौरान आहार – गर्भवती महिलाओं का खान पान कैसा होना चाहिए
यक़ीनन किसी भी स्त्री के लिए गर्भवती होना ख़ुशी का क्षण होता है मगर दूजी ओर स्त्री के मन में नाना प्रकार के प्रश्न भी आते हैं। सर्वाधिक प्रचलित प्रश्न की अगर हम बात करें तो आहार को लेकर गर्भवती महिलाएं ज्यादा प्रश्न पूछती हैं। यह बात बुरी नहीं है, माँ अपने शिशु को लेकर जागरूक हो तो अच्छा ही है। मैं रचना शर्मा, पखेरू पर आज गर्भावस्था के दौरान आहार पर ही बात करुँगी।
आहार को लेकर भ्रांतियां भी बहुत हैं जैसे क्या खाएं ? कितनी कैलोरी लें ? इत्यादि। अगर महिलाओं के मन में उठने वाले सवालों की सूची बनायें तो कुछ इस प्रकार होंगी –
प्रश्न 1: मैं 2 माह से गर्भवती हूँ किन्तु मेरा वजन नियंत्रित है। मैं क्या खाऊं की मेरा वजन बढ़े ?
प्रश्न 2: मेरी तो खाने की इच्छा कम हो रही है। क्या इसका शिशु पर असर होगा ?
प्रश्न 3: मैं क्या करूँ ! मुझे ऐसा खाना पसंद नहीं , वैसा खाना पसंद नहीं।
प्रश्न 4: मेरी पति तो खाने को लेकर हमेशा मुझे टोकते रहते हैं कहते हैं ये भी खाओ , वो भी खाओ।
प्रश्न 5: मेरी सास हमेशा अपने ज़माने की बात कहती हैं ! ये खाया कर बच्चा गोरा होगा, वो खाया कर बच्चा मोटा होगा।
प्रश्न 6: क्या खाऊं जिससे बच्चा हष्टपुष्ट हो ?
प्रश्न 7: किसी विशेष खाने की इच्छा का होना लड़का और लड़की होने की निशानी है ?
प्रश्न 8: क्या बच्चे के अच्छे पोषण के लिए मुझे सप्लीमेंट दवाईयों का सेवन करना चाहिए ?
प्रश्न 9: ऐसा क्या है जो मुझे गर्भावस्था में खाना ही नहीं चाहिए ?
प्रश्न 10: क्या नारियल पानी पीने और केसर वाला दूध पीने से मेरा बच्चा गोरा पैदा होगा ?
प्रश्न 11: मुझे रोज रोज उल्टियां हो रही हैं क्या करूँ ?
प्रश्न 12: मैं गर्भवती हूँ तो मुझे उल्टी क्यों नहीं हो रही ?
प्रश्न 13: तीन महीने से मुझे बहुत थकन रह रही है क्या करूँ ?
प्रश्न 14: मेरा वजन क्यों कम हो रहा है, क्या मैं कम खा रही हूँ इसलिए ?
प्रश्न 15: मेरी सहेली कहती थी की तुझे 3 महीने खूब उल्टी होगी पर मुझे तो नहीं हुयी क्यों ?
प्रश्न 16: फिल्मों में खट्टा खाना दिखाया जाता है पर मुझे तो खट्टा खाने जैसा कुछ महसूस नहीं हो रहा।
ऊपर दिए गए प्रश्न अक्सर मेरे मन में भी आये और मेरे जैसी महिलाओं के मन में भी उठते होंगे। चलिए इन प्रश्नों की पड़ताल करते हुए चर्चा करते हैं।
प्रारंभिक गर्भावस्था (initial pregnancy) के दौर कितनी भूख और कितना वजन:
प्रारंभिक गर्भावस्था के पहले तीन माह तो बेहद ध्यान देने योग्य हैं। प्रारंभ में गर्भवती महिला का शरीर Hormone परिवर्तन से गुजरता है, हॉर्मोन का ये परिवर्तन गर्भावस्था को स्वस्थ बनाये रखने हेतु अनिवार्य है। प्रथम 3 माह में स्त्री के शरीर में हॉर्मोन का अतिरिक्त प्रवाह होता है। हमारे शरीर में होने वाला यह हॉर्मोन परिवर्तन या प्रवाह हमें अधिक थकाव का अनुभव कराता है। ऐसा प्रायः देखने में आता है कि Pregnant महिलाएं ज्यादा ऊर्जावान नहीं रहती।
पहले 3 माह की Pregnancy के दौरान महिलाओं को कम ऊर्जा का अनुभव होता है। खास बात यह है कि इन्हीं तीन महीनों में आपके घरवाले ज्यादा खाने को लेकर दबाव बनाते हैं। पति, सास या फिर अपनी माँ नाना प्रकार के भोजन को ग्रहण करने की सलाह देने के साथ साथ कई प्रकार के स्वादिष्ट भोजन और पौष्टिक भोजन आपके सामने खाने को देते हैं। शुरूआती 3 माह में Pregnant Women’s को खाने में विशेष रूचि का अनुभव नहीं होता वजह है Hormone Changes, और इसी दौरान परिवार वालों का अतिरिक्त खाने का दबाव भी होता है या फिर महिला अपनी इच्छा से ज्यादा खाने का प्रयास करती है। इन अतिरिक्त प्रयासों का नतीजा यह होता है कि गर्भवती महिला का जी मचलाने लगता है और वो उल्टियां करना आरंभ कर देती है। दिन में कई बार उल्टियों के हो जाने से महिला का वजन गिरने लगता है और वो चिंतित हो जाती है की मेरा वजन बढ़ने की बजाय गिरता क्यों जा रहा है।
ध्यान रखने योग्य बातें:
- हर स्त्री की गर्भावस्था के दौरान का लक्षण अलग-अलग हो सकता है।
- दूसरी गर्भवती स्त्रियों के लक्षण अपने में न खोजें।
- गर्भावस्था में उल्टी (vomiting) होगी यह जरूरी नहीं।
- उल्टी का आना या होना गर्भावस्था में जरूरी है, ये बात गलत है।
- प्रथम 3 माह में ज्यादा से ज्यादा भोजन करना उल्टी का कारण बनता है।
- प्रथम 3 माह में हॉर्मोन का अतिरिक्त प्रवाह भी उल्टी होने का कारण बनता है।
- साधारणतः उल्टी का हो जाना गर्भावस्था में सामान्य बात है।
- अगर दिन में 3 से 4 बार या अधिकबार हो रही है तो अपनी डॉक्टर से परामर्श करें।
- बार बार उल्टी होने से गर्भवती महिला का वजन कम होता चला जाता है।
- अगर उल्टियां नहीं हो रहीं और वजन गिर रहा है तो डॉक्टर से जरूर मिलें।
- गर्भावस्था में हर स्त्री को उल्टी होती है, यह बात गलत है।
गर्भावस्था के प्रथम 3 माह के पूरे होते ही महिला अपनी सामान्य अवस्था में आ जाती है। तीन महीने के पूर्ण होते ही उसके खाने की इच्छा पुनः पहले जैसी हो जाती है। पहले तीन महीने के बीतते ही वो उल्टियां करना बंद कर देती है। After 3 Months की Pregnancy के बाद महिला की थकावट, कम ऊर्जा की अनुभूति हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। तीन महीने के पूरे होते ही प्लासेंटा अथवा गर्भनाल विकसित हो जाता है जो आगे गर्भावस्था को बनाये रखने में सहायता करता है। 3 महीनों के उपरांत महिला का अपनी समान्यवस्था में लौट आने का प्रमुख कारण हॉर्मोन का स्तर नीचे गिरना होता है जो शुरू के तीन महीनों में ऊपर रहता है।
स्वास्थ्यवर्धक आहार (healthy food) क्या एक भ्रांति है ?
पहले ज़माने की महिलाएं शायद स्वास्थ्यवर्धक आहार के पीछे इतना परेशान नहीं रहती होंगी जितनी आजकल की नारियां है। तो क्या पहले जन्में बच्चे स्वस्थ नहीं हुए ? असल बात यह है कि स्वास्थ्यवर्धक आहार एक दिमागी भ्रांति के सिवाय कुछ नहीं। सप्लीमेंट दवा कंपनियों के द्वारा फैलाये जाने वाली इस स्वास्थ्यवर्धक आहार अथवा पोषण जैसे शब्दों से बाहर निकलें। स्वास्थ्यवर्धक आहार या भोजन की क्या परिभाषा हो सकती है ? भोजन तो स्वयं अपने आप में पूरक है, भोजन के साथ “स्वाथ्य” और “वर्धक” जैसे शब्दों को क्यों जोड़ना।
अच्छे और पोषणयुक्त भोजन का सन्दर्भ केवल गर्भावस्था के लिए ही नहीं है। स्त्री पुरुष , युवा बच्चे अथवा बूढ़े सभी को प्रतिदिन अच्छा भोजन करना चाहिए। मन से ग्रहण किया गया भोजन स्वयं अपने आप में स्वास्थ्यवर्धक होता है।
एक स्वास्थ्यवर्धक आहार में – Protein प्रोटीन , Carbohydrate कार्बोहाइड्रेट और Fat वसा का संतुलन होता है। इसके अलावा अन्य तरल पदार्थ जैसे साफ़ जल, हरी सब्जियां , फलों का जूस भी शामिल है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे फल या ड्राई फ्रूट जिसमें फाइबर हो वह भी ग्रहण करना सेहतमंद होता है। अमूमन तौर पे भारतीय घरों में खाने पीने को लेकर कोई समय सारिणी नहीं होती और ना ही ऐसा की – क्या हमने आज फाइबर लिया ? क्या हमने आज प्रोटीन लिया ? क्या कार्बोहाइड्रेट लिया ? जूस पिया हमने ? इत्यादि।
दाल चावल रोटी सब्जी , दूध दही मक्खन , अंडा मीट मछली , सब्जी और फल। आप जब भी खाएं बस अपने अनुसार खाते रहिये, बहुत ज्यादा समयबद्ध या चिंतित होकर खाने की जरूरत नहीं। आम भोजन तो हम प्रतिदिन करते हैं, कुछ विशेष फल या जूस कभी कभार हो जाय तो काफी है। हमारा शरीर हमसे ज्यादा बुद्धिमान होता है वह अपने जरूरत की चीज को संरक्षित करना जानता है। बस हम और आप जो खाएं-पिएं, साफ़ खाएं, शुद्ध खाएं और इच्छानुसार ही खायें।
गर्भवती महिला का आहार:
गर्भवती महिला का आहार भी सामान्य है तो इसमें कुछ अनुचित नहीं बस वह स्वच्छ और सामान्य भोजन ग्रहण करे प्रतिदिन। हाँ अगर कुछ विशेष तत्वों पर ध्यान दिया जा सके तो उत्तम है क्योंकि अब वो सिर्फ एक महिला नहीं है बल्कि अपने गर्भ में एक अन्य जीव को संरक्षित किये हुए है। ऐसे में Pregnant Lady कुछ भोजन का खयाल करे तो बेहद अच्छा होगा।
गर्भवती महिला को सामान्य से ज्यादा Protein की आवश्यकता होती है। अगर महिला शाकाहारी है तो – दूध , दूध से बने उत्पाद , दाल , मेवा , सोयाबीन को अपने भोजन में शामिल करे तो अच्छा है। याद रहे – दूध ज्यादा मलाई वाला अथवा वसा वाला नहीं होना चाहिए।
अगर महिला मांसाहारी भी है तो – अंडा और हर प्रकार के मांस को ग्रहण कर सकती है। इसके अलावा वह सिर्फ मांस मच्छी तक सीमित न रहे अन्य शाकाहारी तत्वों से मिलने वाले Protein को भी ग्रहण करे।
अत्यधिक और निरंतर मांस के सेवन से बचना चाहिए क्योंकि मांस अगर ठीक से न उबला या पका तो उसमें रहने वाले जीवाणु गर्भ में पल रहे बच्चे को तो नुकसान पहुंचायेंगे ही, यह भी हो सकता है की माँ की तबियत भी ख़राब हो जाय। मांस में पाया जाने वाला “टोक्सोप्लाज़्मा” संक्रमण फैला सकता है। इससे बचने का उपाय ये है कि मांस अच्छे से साफ़ करके , धो करके और आंच पर पूरी तरह से पका होना चाहिये। ज्यादा चबाने वाले मांस को गर्भावस्था के दौरान न खायें।
गर्भवती महिला को प्रत्येक दिन – 03 मिली ग्राम आयरन की आवश्यकता होती है। आयरन की इतनी मात्रा को प्राप्त करने के लिए महिला को रोजाना 30 मिली ग्राम आयरन युक्त भोजन लेना चाहिए। आयरन के मुख्य स्त्रोत हैं – पत्तेदार सब्जियां , गुड़ , खजूर , सूखे मेवे। अगर आप लोहे की कढ़ाई या बर्तन में खाना पकाती हैं तो यह भोजन में आयरन बढ़ाने में कुछ हद तक सहायक है। इसके अलावा आयरन की गोलियां डॉक्टर द्वारा दिए परामर्श के अनुसार ग्रहण करें।
गर्भवती महिला को प्रत्येक दिन – 1000 मिली ग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है। कैल्शियम की पूर्ती दूध तथा दूध युक्त उत्पादों में मिलता है। यह भी एक बेहद जरूरी तत्व है जिसका सेवन गर्भावस्था में अनिवार्य है। खाद्य पदार्थो के सेवन के साथ साथ कैल्शियम युक्त गोलियां डॉक्टर द्वारा कहे अनुसार ग्रहण करें।
गर्भवती महिला को प्रत्येक दिन – 2500 ग्राम कैलोरी और 60 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इतनी कैलोरी और प्रोटीन की पूर्ती के लिए प्रतिदिन 3 रोटी, 1 कटोरी मूंग की दाल पर्याप्त है। कैलोरी , प्रोटीन की मात्रा महिला के वजन पर भी निर्भर करती है अतः इसे जरूरत से बहुत ज्यादा लेने की कोशिश करना ठीक नहीं। यह कार्य अपनी डॉक्टर को करने दें, वह आपके वजन के हिसाब से सलाह देंगी की कितना खाना है।
अंत में:
अगर आप पहले से हष्टपुष्ट अर्थात स्वस्थ हैं तो इन पूरक पैमानों पर अत्यधिक गौर न करते हुए सामान्य भोजन ग्रहण करती रहें। प्रायः ये पैमाने उन महिलाओं के लिए आते हैं जो पहले से ही कुपोषित अथवा बेहद कमजोर हैं। कमजोर महिला स्वस्थ शिशु को जन्म देने में पूरी तरह सक्षम नहीं होती अतः डॉक्टर उसे सामान्य भोजन के अलावा भोजन पूरक गोलियां या अतिरिक्त आहार ग्रहण करने की सलाह दे सकती है। स्वयं किसी भी प्रकार की दवा या पोषक गोलियां न खाएं फिर वो चाहे आपकी सहेली कहे या घरवाले।
अगर गर्भावस्था में किसी भी प्रकार की कमी है तो उसका उपचार डॉक्टर ही करेगा। अतः हमेशा Doctor के कहे अनुसार ही चलें। यूँ तो पोषक गोलियों का सेवन नुकसानदेह नहीं होता परन्तु यह किसी प्रकार की चमत्कारी दवाइयां नहीं होती की आपके गर्भ में पल रहे भ्रूण अथवा बच्चे की विसंगति को छूमंतर कर दें। इसलिए सप्लीमेंट या पोषक गोलियों का सेवन डॉक्टर के अनुसार ही करें।
सर्वप्रथम स्वयं को आप प्रसन्न रखें, शुद्ध खायें , शुद्ध पियें और स्वस्थ रहने का प्रयास करें। लड़का या लड़की के जन्म के विषय में न सोचें। मादक पदार्थों के सेवन जैसे – शराब , बियर , तम्बाकू या धम्रपान गर्भावस्था में न करें। चिंता से सदैव दूर रहें, आपकी प्रसन्नता गर्भ में रहने वाले शिशु को भी प्रसन्न करती है।
लेखिका:
रचना शर्मा