छत पर लेटे सुनाते सब अपनी कहानी – एक हिंदी कविता

ज़िंदगी की बढ़ती आपा-धापी, पारिवारिक विखंडन, अपनों से लगातार बढ़ती दूरी और पैसा कमाने की लालसा आज हमें अकेलेपन के दल दल में धकेल चुकी है। परिवार का हर सदस्य एकांत में जी रहा है, अगर खुशियां हैं भी तो केवल कृतिम रूप में हैं जो ज्यादा वक़्त तक हमारा साथ नहीं दे पातीं। नीचे लिखी कविता अतीत में गुजरे हमारे असल सामाजिक व पारिवारिक स्वरूप को दर्शाती है जहाँ पर खुशियां वास्तविक थीं, क्या वह स्वरूप हम अपने बच्चों को दे सकते हैं ?

वो चंदा की बातें, परियों की जवानी
छत पर लेटे सुनाते, सब अपनी कहानी।
चलो एक बार हम, वहीँ जाके ठहरें
कहें अपनी ही बातें, खुद अपनी जुबानीं।।

मस्त बहतीं हवाओं, मुस्कानों का शोर
बातें होतीं थी जिसमें, था एक चोर
हुई ख़त्म आज, बब्लू की कहानी

छत पर लेटे सुनाते, सब अपनी कहानी (1)

उठकर चाचा जी बोले, सुनो मेरी कहानी
था एक राजा, और थी एक रानी
फिर चाचा की बातों पर, हंसना सभी का
कभी कहते गुड़िया, कभी कहते गीता
यहाँ ख़त्म उनकी भी, हो गयी कहानी

छत पर लेटे सुनाते, सब अपनी कहानी (2)

पीछे बैठे दादा जी नें, आवाज़ लगायी
अगली कहानी, कौन सुनायेगा भाई
यहाँ छुप के देखो, यह बैठा है कौन
न बोला अभी तक, क्यों रहता है मौन
सोनू आज सबको, सुनाये कहानी

छत पर लेटे सुनाते, सब अपनी कहानी (3)

फिर ये दादी का कहना, सो जाओ सभी अब
न करो और बातें, मानों कहना अभी सब
दादी की बातों पर, मम्मी का कहना
देखो गुड्डू, सो गई है तुम्हारी बहना
रात हो गयी अंधेरी, है सुबह सबको उठना
कहना बातें सभी कल, जो तुमको है कहना
बहुत बातें हैं मुझे, तुम सबको बतानी
कल मैं तुम सभी को, सुनाऊँगी एक कहानी

छत पर लेटे सुनाते, सब अपनी कहानी (4)

जानें दिन कितने बीते, फिर न आयीं वो रातें
वो चंदा की बातें, परियों की जवानी
न दादी रही, अब न दादा रहे
अब न घर वो रहा, जहाँ हम करते थे शैतानी
छत पर लेते हुए, गुजरा एक जमाना
क्या इसे ही कहते हैं, नया ज़माना
नहीं चाहिए हमको, ऐसा नया दौर
आ जाए कहीं से, मासूमियत का वो शोर
बनायें वही छत, हों बातें पुरानी
वो छोटी सी रातें, और लंबी कहानी

छत पर लेटे सुनाते, सब अपनी कहानी (5)

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा