हूँ इस शहर में अजनबी की तरह
भारत के एक छोटे से गांव या शहरों से आने वाले बच्चे जो अपने मन में बड़ी उम्मीदें और सपनें संजोए आते हैं, अमूमन तौर पे उन्हें उन सपनों को साकार करने की जद्दोजहत काफी करनी पड़ती है। तमाम तरह की परेशानियों से होता रोजाना सामना उनकी मनःस्थिति पर बहुत बुरा प्रभवा डालती है। खैर यह जीवन की सच्चाई भी है कि अगर आप बड़ी सफलता चाहते हैं तो आपको परिश्रम के साथ अन्य कई प्रकार की बाधाओं को पार करना ही होगा। विषम परिस्थितियों से रूबरू होता एक साधारण व्यक्ति कभी कभी एकांतवास में चला जाता है। जब वह एकांतवास में जाता है तो उसके मन में कविताएं स्वयं ही जन्म लेने लगती हैं।
हूँ इस शहर में अजनबी की तरह, मिले मुझसे लोग बेरुखी की तरह।
हर शख्श था जुदा हर बात थी अलग
ना बन सका कोई अपना साथ चलनें को;
तन्हां अकेले यूँ गुजरे मेरे हर दिन
टूटे हुए उम्मीदों के अहसास की तरह !!उठाया हर कदम ये सोचकर मैनें
इसबार फतह होगी मंजिल मेरी;
थक गए फिर ये पाव चलते चलते
रह गयी मंज़िल दूर हरबार की तरह !!अब ना वो साज़े महफ़िल ना उमंग है
ज़िन्दगी का हर लम्हां सादा बेरंग है;
कहता हूं खुद से कि सपने सारे अधूरे रह गये
दफन हो गए सपने मेरे सीने में अरमान की तरह !!रखता हूं चाहत फिर दौड़ पड़ने की
तमन्ना है हर आरज़ू पूरी करने की;
उठाया है कदम फिर यह एक बार सोच कर
ना मिले मुझको हार बार-बार की तरह !!हूँ इस शहर में अजनबी की तरह, मिले मुझसे लोग बेरुखी की तरह।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा