किसान एक हिंदी कविता
सरकारें बदलतीं हैं पर किसान की स्थिति नहीं बदलती। आज़ादी से लेकर आज तक किसानों को क्या मिला सिर्फ वादे, आश्वासन, भरोसा, दिलासा और कभी न पूरी होने वाली योजनाएं। देश कितना तरक्की कर गया, एक शराबी बिज़नेस मैन बन गया। अजी चिप्स बेचकर लोगों नें फैक्टरियां खड़ी कर ली, पर अनाज उगाने वाला किसान मिट्टी में ही दब गया। भारत क्या सच में कृषि प्रधान देश है ? किसानों की हालत देख कौन कहेगा की हम कृषि प्रधान हैं। प्रधान तो यहाँ बड़े बड़े साहूकार बैठे हैं जो किसानों द्वारा उपजित अनाज का बाजारीकरण कर मोटी कमाई करते हैं, जिन्हें देख किसान रोते हैं। विभू राय द्वारा लिखित किसानों पर आधारित यह सुन्दर कविता पढ़िए।
अखंड भारत की ताकत है जो,
किसान आज किस्सा बन के रह गया;
दुख दर्द उसका TRP का हिस्सा बन के रह गया !!
अनाज खरीद के उससे जो लाला बेच रहा बाजारों में वो धनी है,
और उगाने वाले किसान के घर में हर चीज़ की कमी है !!
आज़ादी से अब तक उसको बस योजनाएं मिली हैं,
और खो जाती हैं वो भी क्योंकि दिल्ली से उसके गावं के
सफ़र में कई दलालों की गली है !!
लेकिन ये योजना वो योजना क्यों जनाब हिस्सेदारी दो न,
ब्याज माफ़ी का लोलीपॉप छोड़ो
जिसने गेहूं उगाया उसके बेटे को आटा बनाने की जिम्मेदारी दो न !!
ये सीट इसकी, वो सीट उसकी
एक सीट संसद में गरीब किसान को भी दो न !!
जय जवान, जय किसान, जय अन्न देवता कहना छोड़ो,
सच में उसको साथ लो न;
समझदार बहुत है भारत का किसान
पर एक मौका उसे भी तो दो न !!
लेखक:
विभू राय