हम आधुनिकता के दौर में कितने भी आगे क्यों न चले जाएं अतीत हमेशा ही हमें अपनी ओर खींचने का प्रयास करता है। असल में अतीत वह अंकुर होता है जहाँ हम पनपते हैं और एक वृक्ष के समान बड़े हो जाते हैं, अतीत का वह अंकुर हमारी जड़ें हैं जो अगर ना होती
मैं शराबी नहीं , मैं शराबी नहीं मगर थोड़ी पी लेने में , खराबी नहीं मैं शराबी नहीं । कैसे भूलूँगा मैं उनकी प्यारी बातें वो होंटों के सुर्ख , वो नशीली आँखें हाल-ए दिल क्या है , उनको पता भी नहीं मैं शराबी नहीं ।। सितमगर नें मुझको , सताया है इतना हंसा
इंसान जब बंद आँखों से सोता है तब वह सपने देखता है, पर जब खुली आँखों से सोता है तब वह सपनों को जीता है। कितना सुखदाई होता है टिम-टिमाते सितारों, उनकी चमक और काले अंधेरों से भरे आस्मां को अकेले देखना। ऐसे में किसी की याद ना आए ये मुनासिब कहाँ, नीचे लिखी
हम तुम जैसे पतंग और डोर संग संग साथ उड़ेंगे नील गगन में सबसे ऊपर दिल से दिल की बात करेंगे ।। कुछ तुम कहना, कुछ मैं कहूँगी तेरी बाँहों में लिपटी रहूंगी कोई न होगा पास हमारे दिल के सब जज़्बात कहेंगे ।। कभी न टूटे, ये प्रीत को डोर तू आकाश मैं तेरा
नव वर्ष के आगमन को लेकर हम सभी कितने उत्साहित रहते हैं। हमारे मन में अनेक प्रकार के ख़याल आते हैं, अनेक प्रकार की योजनाओं का सृजन भी हम अपने मन में करते हैं परन्तु हर बार की तरह हमारी योजनाएं अधूरी ही रह जातीं हैं और फिर अगला वर्ष दस्तक दे बैठता है।
कहते हैं की गुजरा वक़्त कभी लौटकर नहीं आता, आज यह बात सच्ची मालूम पड़ती है। मनुष्य आज कितना आज़ाद है संपन्न है फिर भी वो अपने आपको इस आज़ादी में जकड़ा हुआ ही मसहूस करता है। असल में आज़ादी हमारी मानसिकता से जुड़ा हुआ एक विषय है पर हम उसे अपने व्यव्हार में
बचपना कुछ ऐसा होता है कि हम बूढ़े होकर भी उसे भुला नहीं पाते। हम सभी का बचपन तमाम किस्से व् कहानियों से भरा होता है जिसे हम जीवन के हर मोड़ पर याद किया करते हैं। बेशक बढ़ती उम्र हमारे बचपने को ढकती चली जाती है पर फिर भी कहीं न कहीं दिल
हमारा जीवन सच में कितना गहरा है , क्या हम खुद को भली भाँति जानते हैं। जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जहाँ मनुष्य कुछ पल के लिए स्वयं में ही विलीन हो जाता है। ऐसी अवस्था में जाकर हम स्वयं से ही प्रश्न पूछ बैठते हैं कि आखिर कौन हैं हम। नीचे
जहाँ सबकुछ पैसा ही है। कितनी सच्ची लगती है ये बात; मौजूदा दौर पैसों का है तभी तो कहा जाता है – न बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रुपईया। निचे लिखी कविता समाज के असल चेहरे को चरित्रार्थ करती है। पैसे का बढ़ता बोलबाला व्यक्तिगत संबंधों में दरार पैदा करता जा रहा।
क्या पहला प्यार भुलाया जा सकता है ? शायद नहीं। इश्क़ एक ऐसा मर्ज़ है जिसमें जिया भी नहीं जा सकता और मरा भी नहीं जा सकता। सच तो यह भी है कि कामयाब मोहब्बत की कोई कहानी नहीं बनती; कहानी तो बनती है नाकामयाब मोहब्बत की। इतिहास में दर्ज़ ऐसी तमाम इश्क़े दास्ताँ