देश में बढ़ता पूंजीवाद आज हमें इसकदर मजबूर कर चुका है कि हम घर, गाँव अथवा अपने समाज से लगातार दूऱ होते जा रहे हैं। पैसा जीवन का अभिन्न अंग बन गया है जिसको पाने की होड़ सबमें है। माता-पिता की बढ़ती व्यस्थता और बड़े बुजुर्गों से दूर होते बच्चे एक तरह के मानसिक
सरकारें बदलतीं हैं पर किसान की स्थिति नहीं बदलती। आज़ादी से लेकर आज तक किसानों को क्या मिला सिर्फ वादे, आश्वासन, भरोसा, दिलासा और कभी न पूरी होने वाली योजनाएं। देश कितना तरक्की कर गया, एक शराबी बिज़नेस मैन बन गया। अजी चिप्स बेचकर लोगों नें फैक्टरियां खड़ी कर ली, पर अनाज उगाने वाला
21वीं सदी है सबकुछ बदल रहा है। सच बात है, सबकुछ कितना आधुनिक होता जा रहा है। तकनीकि से भरी इस दुनियां नें सभी को कितना दूर कर दिया है , मोबाइल फ़ोन , ईमेल , फेसबुक एवं व्हाट्सएप्प इत्यादि कहने को तो सोशल नेटवर्क हैं पर इनमें वो बात कहाँ जो इंसान के
कुछ पल ज़िन्दगी के ऐसे होते हैं जो हमें हमेशा याद आते हैं; उन्हीं पलों में से एक है मोहब्बत । यह जीवन का वह पड़ाव है जहाँ से हर एक जवां दिल को गुजरना पड़ता है अमूमन तौर पर सभी का प्यार मुकम्मल नहीं होता । बेशक यह मुकम्मल न सही पर फिर
सोशल मीडिया के दौर में लोग कितनी जल्दबाज़ी में हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप , ट्वीटर और यूट्यूब इत्यादि पर हर क्षण कुछ न कुछ अपडेट होते रहते हैं। पल पल अपडेट होनें वाली चीज़ों में वीडियो , फोटो और लेख प्रमुख रूप से आते हैं जो पूर्णतः स्वजनित होते हैं उसी व्यक्ति द्वारा जिसका वह
आज कल कविताओं के नाम पर चुटकुले सुनाये जाए रहे हैं और कहा जा रहा है कि ये जरुरत है जनता भी अब इसी में खुश है लेकिन ये शुरुआत किसी नें तो की होगी। आज हिंदी दिवस पर उसी पर एक कविता मेरी तरफ से। सोचता हूँ कवि मै बन जाऊ क्यों बैठा
भारत के एक छोटे से गांव या शहरों से आने वाले बच्चे जो अपने मन में बड़ी उम्मीदें और सपनें संजोए आते हैं, अमूमन तौर पे उन्हें उन सपनों को साकार करने की जद्दोजहत काफी करनी पड़ती है। तमाम तरह की परेशानियों से होता रोजाना सामना उनकी मनःस्थिति पर बहुत बुरा प्रभवा डालती है।
प्रेम होना मुश्किल नहीं है लेकिन प्रेम को निभाना बहुत ही मुश्किल काम है। जब लड़की छोड़ के जाती है तब जुदाई दर्द में लडकों के दिल से शायरी, कविता फूट फूट कर निकलती है। वो दर्द गाता है, लोग कहते हैं क्या बात – क्या बात, तो एक कविता जो एक बेरोजगार प्रेमी
रूठना और मनाना या फिर रूठे हुए को मनाना यह दोनों ही बातें रिश्तों के प्रेम भाव को दर्शाती हैं। रूठने-मनाने का यह खेल तो हमने दोस्तों के साथ, भाई बहन के साथ बहुत खेला है पर यही खेल खुछ अन्य रिश्तों का भी अहम पहलू है, क्योंकि रूठे को तभी मनाया जाता है
इंतज़ार करना कितना असहनशील कार्य है। सामान्य संबंधों में इंतज़ार करना मन में खीज पैदा कर देता है उस व्यक्ति के लिए; परन्तु इंसान विवश है “इंतज़ार” शब्द के आगे, क्योंकि बिना इंतज़ार उसे कुछ नहीं मिल सकता। कहीं जन्म के लिए इंतज़ार, कहीं मृत्यु के लिए इंतज़ार, कहीं इंतज़ार ख्वाबों के पूरा होने