उमड़ घुमड़ कर आते बादल, छम-छम कर बरसते बादल – हिंदी कविता
मानव जीवन पर प्रकृति का बहुत गहरा प्रभाव रहा है। अलग अलग ऋतुएं हमें आनंदित करने के साथ साथ हमारे जीवन पर अपना सकारात्मक प्रभाव भी छोड़तीं हैं। धरा पर बदलती ऋतुओं की व्याख्या कवियों नें कविताओं के माध्यम की है जो यह दर्शाती है की प्रकृति सच में हमारे जीवन के लिए बहुमूल्य है। पखेरू पर मेरी आज की कविता प्रकृति से प्रेरित है जिसमें बादल, बरसात और उससे होने वाले प्रभाव को दर्शाया गया है।
उमड़ घुमड़ कर आते बादल
कहीं गरजते, चमकते बादल
पाँव में बाँधें बूँदों के घुँघरू
छम-छम कर बरसते बादल।
गिरी धरा पर बूँद आसमां से
खिले हज़ारों पुष्प यहां पे
सूखे पेड़ों पर छाई हरियाली
कूह-कूह कोयल भई मतवाली
जीवों में प्राण जगाते बादल
छम-छम कर बरसते बादल !
गूँजे ठंडी हवाओं का शोर
पँख फैलाये नाचें हैं मोर
ग़ुलाबों की खुल गयी पंखुड़ियां
चूँ-चूँ गीत गाये हैं चिड़ियां
बाग़ों में सुगंध उड़ाते बादल
छम-छम कर बरसते बादल !
रवि बिखेरे किरणों का तेज़
जिनसे बनते इंद्रधनुष अनेक
अम्बर में छाई रंगों की माला
प्रकृति का यह ढ़ंग निराला
तम के पार ले जाते बादल
छम-छम कर बरसते बादल !
उमड़ घुमड़ कर आते बादल
कहीं गरजते, चमकते बादल
पाँव में बाँधें बूँदों के घुँघरू
छम-छम कर बरसते बादल।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा