हाई बाउंस रेट के कारण व कम करने के उपाय

अक्सर ब्लॉगर का ये सवाल होता है कि मेरे ब्लॉग का बाउंस रेट हाई क्यों आ रहा है ?
जब मैं पूछता हूँ कि कितना बाउंस रेट हैं तो कोई कहता है 80%, कोई कहता है 85% यहाँ तक की कुछ लोग 90% तक भी बाउंस रेट बताते हैं।

…भाई ये तो सच में बहुत High Bounce Rate है।
तो क्या किया जाय ? कैसे कम किया जाय हाई बाउंस रेट को !

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देखिये, बात ये है कि अगर ‘ब्लैक हैट’ ट्रिक से हाई बाउंस रेट को कम करें तो गूगल हमारी वेबसाइट या ब्लॉग को पेनेल्टी दे सकता है और यदि वास्तविक सही तरीका अपनायें तो उसमें मेहनत बहुत है। मैंने देखा है कि मेहनत से बहुत सारे ब्लॉगर घबराते हैं। वैसे भी आजकल जितने भी पर्सनल ब्लॉगर हैं भारत में वो बस फटाफट पैसा कमाने की लालसा मन में लिए ब्लॉग्गिंग की दुनियां में आ रहे हैं। …मगर, ब्लॉग्गिंग के क्षेत्र में वही कामयाब होगा जो ट्रिक नहीं, हार्ड वर्क को अपनायेगा।

क्या होता है बाउंस रेट और एग्जिट रेट: जानने के लिए क्लिक करें।

हाई बाउंस रेट को कैसे कम किया जाय आज हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे।

किसी प्रकार का जादू नहीं है; बस पहले आपको यह पता लगाना होगा की आपके ब्लॉग का बाउंस रेट हाई क्यों है !
अर्थात, कुछ तो विशेष कारण होंगे जिसकी वजह से आपके ब्लॉग या वेबसाइट अथवा यूट्यूब चैनल का बाउंस रेट हाई जा रहा है। कारण भी कई हो सकते हैं, किन्तु नीचे हम उन प्रमुख कारणों पर चर्चा करेंगे जिनकी वजह से बाउंस रेट हमेशा बढ़ता ही है।

  • 1 – वेब पेज का धीरे लोड होना।
  • 2 – सर्वर एरर या फिर अन्य तकनीकि समस्या का होना।
  • 3 – सर्च क्वेरी से कॉन्टेंट की रेलेवेंसी का ना होना।
  • 4 – भ्रामक (misleading) टाइटल एवं भ्रामक डिस्क्रिप्शन तैयार करना।
  • 5 – असंगत (Irrelevant) बैक लिंक बनाना।
  • 6 – अनुचित (improper) वेबसाइट स्ट्रक्चर का होना।
  • 7 – एफिलिएट लैंडिंग पेज या फिर सिंगल पेज वेबसाइट का होना।
  • 8 – लो क्वॉलिटी, बदसूरत और अन-ऑर्गनाईज्ड कॉन्टेंट का होना।
  • 9 – वेबसाइट का ख़राब डिज़ाइन एवं ख़राब यूजर एक्सपीरियंस का होना।
  • 10 – गूगल एनालिटिक्स का गलत तरीके से सेटअप करना।
  • 11 – क्लिक बैट जैसी ट्रिक का इस्तेमाल करना।

धीरे लोड होना:

अपने ब्लॉग या वेबसाइट की स्पीड चेक करने के लिए आप PageSpeed Insights नाम का गूगल टूल इस्तेमाल कर सकते हैं। इस टूल की मदद से यह आप जान पाते हैं कि Mobile और Desktop दोनों जगह आपकी वेबसाइट का Load Speed कितना है।

गूगल, कलर एवं स्कोर रेंज के आधार पर – स्लो, एवरेज और फ़ास्ट लोडिंग वेबसाइट को दर्शाता है जो निम्न प्रकार से है:

  • यदि आपकी वेबसाइट का स्कोर “0-49” के बीच आता है तो वह Slow मानी जाएगी और वह लाल रंग के घेरे में होगी।
  • यदि आपकी वेबसाइट का स्कोर “50-89” के बीच आता है तो वह Average मानी जाएगी और वह पीले रंग के घेरे में होगी।
  • यदि आपकी वेबसाइट का स्कोर “90-100” के बीच आता है तो वह Fast मानी जाएगी और वह हरे रंग के घेरे में होगी।

वेबसाइट के धीरे लोड होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, किन्तु यहां हर एक कारण की चर्चा संभव नहीं। आगे इस सन्दर्भ में मैं एक स्पेशल आर्टिकल जरूर लिखूंगा।

फ़िलहाल कुछ चुनिंदा कारणों में – सर्वर रेस्पॉन्स टाइम, वेबसाइट से बहुत सारे रिक्वेस्ट सर्वर पर जाना, ख़राब लंबी कोड़िंग, ख़राब स्टाइल शीट, बहुत ज्यादा जावा स्किप्ट, वीडियो फाइल्स, भारी बड़ी फोटो, अनावश्यक वर्डप्रेस प्लगइन, नॉन ऑप्टीमाइज़्ड थीम…आदि।

सर्वर एरर:

500 – Internal Server Error
503 – Service Temporarily Unavailable
504 – Gateway Time-Out
400 – Bad Request
403 – Forbidden
404 – Not Found
408 – Request Time-Out

मेरे ख्याल से आपके ब्लॉग पर कभी न कभी इस प्रकार के एरर आ जाते होंगे। कभी कभार तो चल सकता है मगर इस प्रकार के टेक्निकल एरर अक्सर आपके ब्लॉग या वेबसाइट पर आ रहे हैं तब आप अपना सर्वर चेंज करें या फिर उनको ये समस्या ठीक करने को कहें।

नॉन रेलेवेंट कॉन्टेंट:

अगर मैंने सर्च किया ‘टॉप डेस्टिनेशन इन ऋषिकेश‘ और मुझे रिजल्ट मिला “रीवर राफ्टिंग इन ऋषिकेश” तो यह सर्च क्वेरी से मिलता हुआ कॉन्टेंट नहीं हुआ। आप कह सकते हैं कि यह तो सर्च इंजन की गलती है पर नहीं ! एक ही कॉन्टेंट में जब हम बहुत सारी बातें लिखने लग जाते हैं तब ऐसी उत्पन्न होती है। अतः कॉन्टेंट हमेशा एक विशेष विषय पर ही केंद्रित होना चाहिए; ताकि रीडर को रेलेवेंट कॉन्टेंट मिले जो उसने सर्च किया है।

भ्रामक टाइटल डिस्क्रिप्शन:

कॉन्टेंट आपने लिखा ‘टॉप डेस्टिनेशन इन ऋषिकेश‘ पर आधारित, जिसमें कहीं आपने रीवर राफ्टिंग की भी बात कही। मगर कॉन्टेंट पब्लिश करते समय आपने टाइटल दे दिया “हाउ टू डू रीवर राफ्टिंग इन ऋषिकेश” और डिस्क्रिप्शन में भी डेस्टिनेशन की बात न कहकर राफ्टिंग की बात कह डाली।

हो सकता है आपने यह अनजाने में किया हो मगर गूगल तो अंजाना नहीं है। जब यूजर ने सर्च किया ‘हाउ टू डू रीवर राफ्टिंग इन ऋषिकेश‘ और उसे कॉन्टेंट मिला ‘टॉप डेस्टिनेशन इन ऋषिकेश‘ तो आपकी वेबसाइट का बाउंस रेट तो बढ़ेगा ही। आपने गलत टाइटल, डिस्क्रिप्शन देकर गूगल और यूजर दोनों को मिसलीड किया। जब भी आप कॉन्टेंट लिखें तो उसके विषय के अकॉर्डिंग ही टाइटल एवं डिस्क्रिप्शन को बनायें।

असंगत बैक लिंक:

आजकल जिसको देखो बस वह फटाफट बैकलिंक बनाने की जल्दी में है। उसे यह पता ही नहीं कि बैकलिंक भी रेलेवेंट होने चाहिए ताकि उसका फायदा मिल सके। वेबसाइट की डोमेन अथॉरिटी को बढ़ाने के चक्कर में अंधे लोग नॉन रेलेवेंट बैकलिंक प्रोफाइल बना डालते हैं; जिसका परिणाम होता है हाई बाउंस रेट और आगे चलकर गूगल पेनल्टी भी।

अपने कॉन्टेंट लिखा है ‘ऋषिकेश टूरिज्म‘ का और उसकी बैकलिंकिंग की है नॉन टूरिज्म वेबसाइट या ब्लॉग से। अगर इस प्रकार के बहुत ज्यादा नॉन रेलेवेंट बैकलिंक आपने बना रखे हैं तो फिर आपकी साइट हाई बाउंस रेट प्राप्त करेगी फलस्वरूप गूगल उसकी रैंकिंग नीचे ही रखेगा और यह भी संभव है की गूगल उसे सर्च इंजन रैंकिंग पेज से बाहर कर दे।

वेबसाइट स्ट्रक्चर:

वेबसाइट का भी अपना एक स्ट्रक्चर होता है जो मोबाइल और डेस्कटॉप पर अच्छे से लोड हो सके। ऐसा होता है कि एक वेबसाइट डेस्कटॉप पर तो अच्छे से लोड हो रही है मगर मोबाइल और टैबलेट पर नहीं। बेकार नेविगेशन स्ट्रक्चर, नॉन रेस्पॉन्सिव डिज़ाइन, फिंगर टिप पर कण्ट्रोल का न आना, स्क्रॉलिंग प्रॉब्लम, ओवरलैपिंग…जैसी ख़राब स्ट्रक्चरिंग देखने को मिलती है। यूजर कन्फ्यूज्ड हो जाता है कि वो वेबसाइट पर लैंड करने के बाद आखिर कहाँ और कैसे जाय।

एफिलिएट या सिंगल पेज:

सिंगल पेज वेबसाइट का जमाना चला गया। यदि आपकी वेबसाइट में यूजर के लिए कोई स्कोप नहीं है तो वह यूजर के अकॉर्डिंग नहीं है। एक सिंगल पेज पर लैंड करके फिर यूजर जाये कहाँ ? उसे कुछ और पेज मिलने चाहिए, कुछ और आर्टिकल मिलने चाहिए, किसी तरह की गैलरी, फॉर्म, कांटेक्ट, वीडियो आदि।

इस तरह की समस्या ज्यादातर एफिलिएट वेबसाइट पर देखने को मिलती है। जहां यूजर एक सिंगल पेज पर लैंड होने के बाद अकेला रह जाता है, या तो वह बैक जाये या फिर विंडो क्लोज कर दे। इसलिए अपनी वेबसाइट या ब्लॉग को ऐसा बनायें कि वह यूजर को इंगेज करके रख सके।

अन-ऑर्गनाईज्ड कॉन्टेंट:

यह ब्लॉग के लिए एक बड़ी समस्या है; हैरानी की बात है की अधिकांश ब्लॉगर इस समस्या पर गौर नहीं फरमाते।
मैं रोज ऐसे ब्लॉग को देखता हूँ जहां ब्लॉगर ने लंबे पैराग्राफ के रूप में कॉन्टेंट पब्लिश कर रखा है। ऐसा कंटेंट देखने में ही उबाऊ लगता है, दिल कहता है…कौन पढ़ेगा इसको ! लोग बड़े बड़े पैराग्राफ में कॉन्टेंट लिखकर डाल देते हैं जिसे देखकर रीडर पढ़ना ही नहीं चाहता।

अपने आर्टिकल को हमेशा organized way में publish करने की आदत डालनी चाहिए ताकि वह देखने में सुन्दर लगे और यूजर को अट्रैक्ट कर सके। सिर्फ अच्छा लिख देना ही काफी नहीं, कॉन्टेंट की अच्छी फॉर्मेटिंग भी बेहद जरूरी है।

  • बड़े कॉन्टेंट को छोटे छोटे पैराग्राफ में विभाजित करें।
  • टाइटल, बोल्ड, इटैलिक, पॉइंट, नंबर, कोटेशन एवं टेबल का इस्तेमाल करें।
  • इमेज, फोटो, ग्राफ डेटा, इन्फोग्राफिक्स का कॉन्टेंट के हिसाब से इस्तेमाल करें।
  • वीडियो, ऑडियो को भी इस्तेमाल में लेना ठीक है यदि वह कॉन्टेंट की आवश्यकता है तो।
  • टॉपिक वाइज कॉन्टेंट इंटरलिंकिंग करना भी अच्छा होगा।

सभी रीडर पूरा कॉन्टेंट नहीं पढ़ते, अगर आप अपने कॉन्टेंट की अट्रैक्टिव फॉर्मेटिंग करते हैं तो वह कॉन्टेंट यूजर को न सिर्फ ब्लॉग पर इंगेज करता है बल्कि उसे आपका कॉन्टेंट शेयर करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। इस तरह से ऑर्गनाईज्ड किया हुआ कॉन्टेंट बाउंस रेट को कम कर देता है।

ऑर्गनाईज्ड कॉन्टेंट का सबसे बड़ा फायदा ये है की यूजर अपने हिसाब से कॉन्टेंट के किसी एक हिस्से को पढ़ सकता है बजाय की वह लंबा और उबाऊ पैराग्राफ पढ़े

ख़राब यूजर एक्सपीरियंस:

UI/UX तो आप जानते ही होंगे, आपके ब्लॉग या वेबसाइट का यदि यूजर इंटरफ़ेस एवं यूजर एक्सपीरियंस अच्छा नहीं है तो फिर उसकी अच्छी गूगल रैंकिंग का भी फायदा नहीं मिलेगा। यूजर लैंड करने के बाद आपकी वेबसाइट को क्लोज कर देगा। गलत थीम, ख़राब डिज़ाइन के होने से यूजर एक्सपीरियंस ख़राब होता है। कहीं कोई ऐसा लिंक जिसपर क्लिक करने के बाद ब्रोकन आ रहा हो, स्क्रॉल करते समय कॉन्टेंट ओवरलैप कर जा रहा हो, कर्सर इधर से उधर मूव हो जा रहा हो, मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, डेस्कटॉप, एंड्राइड व्यू, मैक व्यू…सब ठीक ना हो तो इससे यूजर एक्सपीरियंस ख़राब होगा जिसका नतीजा हाई बाउंस रेट के रूप में देखने को मिलेगा।

गूगल एनालिटिक्स:

कई बार ऐसा भी देखने को आता है की गूगल एनालिटिक्स का सेटअप ही गलत तरीके से कर दिया गया है। यूँ तो इसके चान्सेस बेहद कम होते हैं, पर यदि आपका गूगल एनालिटिक्स सही तरीके से सेट नहीं हुआ है तो आपको अपनी वेबसाइट के बाउंस रेट में विविधता (diversification) देखने को मिलेगा। इसमें होता कुछ ऐसा होता है की बाउंस रेट सही तरीके से measure नहीं हो पाता और हमें ये लगता है की साइट का बाउंस रेट अधिक जा रहा है। इसलिए एनालिटिक्स को जल्दबाज़ी में सेट नहीं करना चाहिए। यदि कहीं कोई दिक्कत महसूस हो तो कोई अच्छा सा वीडियो देखकर गूगल एनालिटिक्स का सेटअप करना चाहिए।

क्लिक बैट:

यह एक प्रकार की ट्रिक होती है जिससे ज्यादा से ज्यादा क्लिक प्राप्त किया जा सके। ClickBait के इस्तेमाल से CTR तो बढ़ जाता है मगर Bounce Rate भी कई गुना बढ़ जाता है। फिलहाल इसका इस्तेमाल यूट्यूबर खूब कर रहे हैं। आपने अक्सर यूट्यूब पर कुछ ऐसे video thumbnails देखे होंगे जिनपर लिखा कुछ और होता है और अंदर वीडियो कुछ और निकलता है।

क्लिक बैट की तकनीकि का इस्तेमाल न्यूज़ वेबसाइट भी खूब करती है। वे भी न्यूज़ टाइटल ऐसा लिखते हैं की यूजर उसे पढ़कर झट से क्लिक कर दे भले अंदर की न्यूज़ किसी काम की न हो। यह ट्रिक ईकॉमर्स वेबसाइट भी बखूबी इस्तेमाल में लेती हैं। ऑफर लिख दिया 90% का और जब प्रोडक्ट के लैंडिंग पेज पर गए तो पता चला ऑफर तो कुछ ख़ास मिल ही नहीं रहा।

क्लिक बैट केवल क्लिक जनरेट करने के लिए किया जाता है अतः यदि कॉन्टेंट टाइटल के रेलेवेंट नहीं मिला तो यूजर का बाउंस होना तय है। यह ट्रिक ब्लॉगर को तो कभी नहीं अपनानी चाहिए।

अंत में,

मुझे उम्मीद है की आप ‘हाई बाउंस रेट के कारण व कम करने के उपाय’ को अच्छे से जान गए होंगे। दोस्तों, ब्लॉग्गिंग करना तो बेहद आसान काम है मगर ब्लॉग्गिंग में कामयाबी हासिल करना बहुत मुश्किल। मैं आपको सलाह दूंगा की ब्लॉग लिखने के साथ-साथ कुछ टेक्निकल विषयों का भी ज्ञान जरूर रखें ताकि आप अपने ब्लॉग या वेबसाइट को बेहतर बना सकें। न सिर्फ गूगल में अच्छी रैंकिंग आये बल्कि यूजर द्वारा भी आपके ब्लॉग को सराहा जाय।

धन्यवाद।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा

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