नारी शिक्षा पर वृस्तृत चर्चा

शिक्षा क्या है ?

जीवन में कुछ सीखते रहने की प्रक्रिया ही ‘शिक्षा’ कहलाती है।
शिक्षा सीखने की सुविधा, या ज्ञान, कौशल, मूल्य, नैतिकता, विश्वास और आदतों के अधिग्रहण की प्रक्रिया है। शैक्षिक विधियों में शिक्षण, प्रशिक्षण, कहानी, चर्चा और निर्देशित अनुसंधान शामिल हैं। शिक्षा अक्सर शिक्षकों के मार्गदर्शन में होती है, हालांकि शिक्षार्थी खुद को शिक्षित भी कर सकते हैं। शिक्षा औपचारिक या अनौपचारिक सेटिंग्स में हो सकती है और किसी भी अनुभव को जिस तरह से सोचने, महसूस करने या कार्य करने के तरीके पर एक प्रारंभिक प्रभाव पड़ता है, उसे शिक्षित माना जा सकता है।

हां यह सच है की समाज शिक्षा को मात्र स्कूल, कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी में पढ़ाये जाने वाले पाठ्यक्रमों तक सीमित रखता है किन्तु शिक्षा का असल रूप पाठ्यक्रम से परे है। बेशक हमारी डिग्रीयां एवं सर्टिफिकेट्स शिक्षा के ही दायरे में आते हों जिनके आधार पर हम खुद को शिक्षित मानते हैं किन्तु फिर भी हमारे द्वारा अर्जित की गयी डिग्रीयां शिक्षा के मूल मायने को परिभाषित नहीं करती, क्योंकि शिक्षा में कभी विराम नहीं हो सकता यह तो जीवनोपरांत बहने वाली प्रक्रिया है।

भारत में नारी शिक्षा के आँकड़े:

नारी शिक्षा पर चर्चा कोई नया मामला नहीं। नारी शिक्षा की बात हर युग और काल में उठती आयी है किन्तु फिर भी जमीनी स्तर पर नारी शिक्षा में व्यापक बदलाव आने में कई दशक लग गये।

अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार, अगर हम उच्च शिक्षा रिपोर्ट वर्ष 2018-19 को देखें तो उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 19.2 मिलियन पुरुष और 18.2 मिलियन महिला छात्रों के साथ 37.4 मिलियन का अनुमान लगाया गया है। उच्च शिक्षा में सभी स्तरों पर महिला छात्रों का कुल नामांकन का 48.6%, पिछले छह वर्षों में 4.6% की वृद्धि है।

यह तो बात नारी के उच्च शिक्षा के संदर्भ में हो गयी किन्तु प्रारंभिक शिक्षा का ग्राफ नारी शिक्षा की असल पोल खोलता है रिपोर्ट के अनुसार:

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education) लागू होने के दस साल बाद, 15 से 18 वर्ष की आयु वर्ग की लगभग 40% किशोरियाँ स्कूल नहीं जा रही हैं, जबकि सबसे गरीब परिवारों की 30% लड़कियों ने कभी भी कक्षा में पैर नहीं रखा है।

आप ऊपर देख सकते हैं उच्च शिक्षा एवं प्रारंभिक शिक्षा के आँकड़ों में कितना अंतर है। इसे देखकर यह कहना ठीक ही होगा की नारी शिक्षा अभी भी एक संघर्षशील विषय बना हुआ है।

साक्षरता दर: स्त्री, पुरुष एवं भारत के अनुसार

International Literacy Day वर्ष 2020 के आँकड़ों के अनुसार हम चर्चा करें तो भारत में पुरुष साक्षरता दर 84.7% है और महिला साक्षरता दर 70.3% है। जब हम पूरे भारत की साक्षरता दर को देखते हैं तो यह 77.7% आती है।

आँकड़ों को देखकर ही हम पुरुष एवं महिला के साक्षरता दर के फासले समझ सकते हैं। मगर यह भी कहना होगा की नारी शिक्षा के प्रतिशत में बदलाव आया है और अब भारत नारी शिक्षा के प्रति पहले से ज्यादा सजग है। सरकार अब नारी शिक्षा को केवल विज्ञापनों तक सीमित नहीं रखना चाहती बल्कि स्कूल एवं कॉलेज स्तर पर नारी शिक्षा को बढ़ाने पर जोर दे रही है।

भारत में लड़कियों का पासिंग प्रतिशत:

प्रति वर्ष 10वीं और 12वीं लड़कियों का पासिंग प्रतिशत लड़कों की अपेक्षा सुधरा है। मीडिया रिपोर्ट, अख़बारों में ‘लड़कियों ने एक बार फिर लड़कों को पछाड़ा’ जैसी हैडलाइन देखने को मिलती है। इस प्रकार की हैडलाइन अभिभावक को लड़की पढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। सरकार चाहती है की अभिभावक अपने लड़के के साथ साथ लड़की को भी विद्यालय भेजें।

शहरी क्षेत्र की लड़कियां तो अब पढ़ने लिखने काफी सुधर चुकी हैं। शिक्षा एवं ज्ञान के मामले में शहरी लड़के और लड़कियों के बीच अंतर न के बराबर है। परन्तु देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनी वाली कन्यायें शिक्षा एवं ज्ञान के स्तर पर लड़कों से ज्यादा पिछड़ी हुई हैं। सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियों के पासिंग प्रतिशत पर ज्यादा मेहरबान है। लड़कियों के फेल होने के प्रतिशत में ज्यादा गिरावट आने का यही मुख्य कारण है।

लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा पास करना, नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देना है और समाज को नारी शिक्षा के प्रति सजग बनना है। शुरूआती स्तर पर प्रक्रिया हो सकता है सही लगती हो किन्तु भविष्य में इस प्रक्रिया का कोई लाभ नहीं होगा। ग्रामीण एवं देश के छोटे शहरों में लड़कियों के बढ़ते पासिंग परसेंटेज बेशक नारी शिक्षा का नारा बुलंद करते हों किन्तु वास्तविक ज्ञान, असल शिक्षा, कौशल, एवं शिक्षित कहलाने की गुणवत्ता में भारी गिरावट भी कर रहे हैं।

कुछ जरूरी बिंदुओं को देखते हैं –

1 – गांव में लड़किया धड़ल्ले से पास तो हो रही हैं किन्तु पास होने वालों में अधिकांश प्रतिशत ऐसी लड़कियों का है जिन्हें पढ़े गए विषय का कोई ज्ञान ही नहीं है। वे काग़ज़ी तौर पर जरूर पास है और स्वयं को शिक्षित कह पाने की हकदार हैं।

2 – गांव एवं छोटे शहरों में अधिकांश प्रतिशत उन लड़कियों का है जो जटिल विषयों से दूर बेहद सामान्य विषय का चुनाव कर पास हो रही हैं। हालांकि मैं इसमें आपत्ति जाहिर नहीं कर सकता किन्तु लड़कियों में फिजिक्स, केमिस्ट्री, अंग्रेजी, गणित का बोध बेहद कम है।

3 – आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के पसंदीदा विषय सामाजिक ज्ञान एवं गृहविज्ञान हैं जिसकी मुख्य वजह है यह पढ़ने में आसान हैं और इन्हें लेकर पास होना आसान है।

4 – गांव एवं छोटे शहरों में लड़कियों रोजगार युक्त शिक्षा को लेकर अग्रसर नहीं। उनका मात्र उद्देश्य है कागज़ की डिग्रियां बटोरना और खुद को शिक्षित कहलाने के दायरे में लाना।

5 – बड़े शहरों एवं महानगरों में स्थिति उलट है। यहाँ पढ़ने वाली लड़कियां लड़कों के समान ही जटिल विषयों में रूचि दिखा रही हैं और अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण हो रही हैं। महानगरों में रहने वाली लड़कियों का विषय एवं ज्ञान बोध बहुत ही अच्छा है। शहरों में पढ़ने वाली लड़कियां अपनी काबलियत के भरोसे पास हो रही हैं तो गांव में सरकरी प्रोत्साहन के भरोसे।

क्या है नारी शिक्षा और क्यों है जरूरी ?

शिक्षा की सबसे अच्छी बात यह है की कोई भी इसे आपसे छीन नहीं सकता
धन दौलत को छीना जा सकता है लूटा जा सकता है किन्तु शिक्षा की लूट संभव नहीं। बस इसीलिए शिक्षा एक अनिवार्य विषय बन जाती है। यदि आप शिक्षित हैं तो आपके पास दुनियां का सबसे बड़ा धन मौजूद है जिसमें कभी कमी नहीं आ सकती और या जीवनोपरांत आपको ब्याज देता रहेगा।

एक शिक्षित नारी शिक्षा रुपी धन से परिपूर्ण होती है और शिक्षा रुपी धन का प्रयोग का वह अपने जीवन का श्रृंगार कर सकती है। मैं शिक्षा को नौकरी प्राप्ति की दृष्टि से नहीं देखता क्योंकि नौकरी करना या ना करना हमारा अपना चुनाव हो सकता है परन्तु शिक्षा हमारे व्यक्तित्व विकास एवं ज्ञान विकास के अनिवार्य है।

नारी के शिक्षित होने से पीढ़ियां शिक्षित होती हैं जिसमें स्वयं पुरुष भी शामिल है। एक शिक्षित नारी परिवार की पहली शिक्षिका होती है जो अपने बच्चों का मार्गदर्शन का उनके व्यक्तित्व को निखारती है।

नारी शिक्षा के फायदे:

मैंने पहले ही कहा की शिक्षा कभी न खत्म होने वाला कालजयी धन है जिसका उपयोग कर अपने जीवन को संवारा जा सकता है। आज 21वीं सदी में शिक्षा का महत्त्व अत्यधिक गहरा जाता है क्योंकि 21वीं सदी नारी एवं पुरुष दोनों का ही है।

  • एक शिक्षित नारी परिवार को सँभालने में ज्यादा सक्षम होती है।
  • एक शिक्षित नारी में विवेक एवं चिंतन व्याप्त होता है।
  • एक शिक्षित नारी परिवार की अर्थव्यवस्था को ज्यादा अच्छे से समझ पाती है।
  • एक शिक्षित नारी अपने बच्चों में ज्ञान का प्रथम बीज रोपती है।
  • एक शिक्षित नारी पुरुष का भी मार्गदर्शन कर पाने में सक्षम होती है।
  • एक शिक्षित नारी व्यवसाय एवं रोजगार में भी कुशल साबित होती है।
  • एक शिक्षित नारी धन का उत्पार्जन करने में अपने परिवार की सहायिका होती है।

नारी शिक्षा के सन्दर्भ में अतीत एवं वर्तमान का तर्क:

भारत में स्त्री शिक्षा, मर्द शिक्षा के अनुपात में कम है। इसके क्या कारण हो सकते हैं ? मेरा निवेदन है की इसके कारणों की चर्चा करते समय अतीत को भूल जायें। अतीत एक गुजर चुका हुआ दौर है जो वर्तमान युग में प्रासंगिक नहीं रहा। आज 21वीं सदी में रहकर हम गुजरे वक़्त पर दोषारोपण नहीं कर सकते हैं। आज नारी के शिक्षित होने के प्रतिशत दर में बढ़ौतरी कहीं न कहीं यह इशारा करती है की पुरुष वादी दुनियां ने भी नारी को एक खुला मंच देने की बात स्वीकारी है। भारत में आज भी ऐसे परिवार अधिक देखने को मिलते हैं जहाँ समूचा परिवार एक पुरुष की कमाई से ही संचालित होता है। ऐसे में उस पुरुष की पीठ भी थपथपानी चाहिए जो अपनी एकल कमाई से बेटे एवं बेटी को समान रूप से शिक्षित कर रहा है। यहाँ तक की कई पुरुष अपनी पत्नियों को भी शिक्षित करने का बीड़ा उठाये हुए हैं और कई पुरुष उन्हें नौकरी एवं व्यापार करने की आजादी भी दे रहे हैं।

यह बेहतर होगा की वर्तमान कन्यायें गुजरे दौर की बात ना दोहरायें। आज 21वीं सदी में आकर वे पैरों की बेड़ियां, अत्याचार और समाज का बंधन नामक शब्दों का सहारा ना लें तो बेहतर। आज यदि कोई पिता अपनी पुत्री को पुत्र के ही समान शिक्षित कर रहा है और उसे आगे बढ़ने का समान अवसर प्रदान कर रहा है तो यह उन लड़कियों की जिम्मेदारी बन जाती है की वे अपने पिता की आकाँक्षाओं पर खरा उतरें ना की दोषारोपण करें।

सन 2000 में जन्मी कन्या, सन 1900 में जन्मी कन्या की कठिनाइयों के अंश के बराबर भी नहीं है किन्तु 1900 में भी जन्मी चंद बहादुर महिलाओं ने अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया है। बेशक शिक्षा का अधिकार या अवसर नारी को दिया जा सकता है किन्तु वह स्वयं शिक्षा के प्रति कितनी सजग है और शिक्षा के अवसर को भुना कर वो कैसे अपने जीवन में कामयाब हो सकती है यह केवल उस नारी पर ही निर्भर है।

अशिक्षित नारी का जीवन:

अशिक्षित नारी का जीवन बेहद कठिनाइयों भरा होता है ऐसा कहने वाले लोग पूरी तरह से गलत हैं। कठिनाइयां शिक्षित एवं अशिक्षित दोनों तरह के लोगों के जीवन में होती हैं। यह जरूर हो सकता है की अशिक्षित महिला विषय ज्ञान, बौद्धिक कौशलता, मार्गदर्शन, और फैसले लेने भी असक्षम हो।

1 – जो महिला साक्षर नहीं होती, कुछ हद तक समाज उसे पूरा सम्मान नहीं देता।
2 – असाक्षर महिला को यदा-कदा कई मौकों पर उपहास का शिकार होना पड़ जाता है।
3 – अशिक्षित महिलायें, शिक्षित महिलाओं के सामने खुद को लाचार महसूस करती पायी जा सकती हैं।
4 – अशिक्षित स्त्रियां पुरुषों की अधीनता में ही अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देती हैं।
5 – अशिक्षित स्त्रियों में संकोच का भाव अधिक होता है वे खुलकर पूर्ण विश्वास के साथ सामने नहीं आ पाती।
6 – अशिक्षित महिलायें पारिवारिक फैसलों में दखल एवं अपनी इच्छा को स्थान नहीं दे पाती।
7 – अशिक्षित गृहणियां अपने बच्चों का मार्गदर्शन, एवं उनकी शैक्षिक दक्षता को भांप पाने में भी असक्षम होती हैं।
8 – अशिक्षित लड़कियां अपने विवाह, जीवनसाथी के चुनाव व पसंद पर बात नहीं कर पाती।
9 – अशिक्षित महिलाओं के ख्वाब नहीं होते और ना वे महत्त्वाकांक्षी होती हैं।
10 – अशिक्षित नारी स्वयं के स्वास्थ के प्रति भी फिक्रमंद नहीं होती।

शिक्षित नारी का जीवन:

शिक्षित नारी अपने जीवन में बहुत कामयाब होती है यह धारणा भी पूरी तरह गलत है। माना शिक्षा व्यक्ति की कामयाबी में सहायक है किन्तु कामयाबी के शिक्षा प्राप्ति तक सीमित नहीं।

1 – शिक्षित महिला सदैव चेतन की अवस्था में रहती है।
2 – शिक्षित नारी अपने जीवन के प्रति ज्यादा सजग पायी जाती है।
3 – शिक्षित महिलायें खोजी स्वाभाव की भी देखने को मिलती हैं।
4 – शिक्षित महिलाओं में झिजक नहीं होता और वे अपनी बात को मजबूती से रख पाती हैं।
5 – शिक्षित महिलायें बच्चों की परवरिश में शिक्षा का महत्त्व बखूबी समझती हैं।
6 – शिक्षित महिलाओं में कर्मठता विद्द्मान होती है और उनका मष्तिष्क विचारशील होता है।
7 – शिक्षित लड़कियां तर्क एवं वितर्क में निपुण पायी जाती हैं।
8 – शिक्षित लड़कियों में धन कमाने एवं आगे बढ़ने की ललक ज्यादा देखने को मिलती है।
9 – शिक्षित लड़कियां आज भारत में हर कार्यक्षेत्र से जुड़ी हैं।
10 – शिक्षित महिलाओं में स्वयं के प्रति विश्वास ज्यादा होता है।

शिक्षित एवं अशिक्षित महिलाओं में भेद:

संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसमें कोई गुण ना हो और संसार में ऐसा भी कोई व्यक्ति नहीं है जिसमें कोई अवगुण ना हो। मेरा यह लेख शिक्षित महिलाओं पर केंद्रित है इस यह तनिक भी अर्थ नहीं की मैं अशिक्षित महिलाओं का सम्मान ना करूँ।

भारत 1 अरब, 38 करोड़ की जनसँख्या वाला देश है जाहिर सी बात है की इतनी सघन आबादी वाले देश में प्रति व्यक्ति आय भी बेहद कम होगी। भारत की कुल आबादी का लगभग 4 से 5% ऐसा है जो अत्यन्त गरीबी की मार झेल रहा है। इस तरह यह जाहिर हो जाता है की इन परिवारों में जन्मी लड़कियां अपनी आरंभिक शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाती होंगी।

निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं देखने को मिलती क्योंकि ये परिवार एकल आय पर निर्भर होते हैं जो अपने बेटे एवं बेटी को समान शिक्षा दे पाने में असक्षम होते हैं। मध्यवर्गीय एवं उच्चवर्गीय यही तो ऐसे परिवार हैं देश में जहाँ बेटा और बेटी समग्र रूप से आगे पढ़ पाते हैं।

शिक्षित अथवा अशिक्षित महिलाओं में भेद करने से पहले यह जान लेना भी आवश्यक है की वे किस वर्ग के परिवारों से आती हैं। बेशक स्कूल, कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी की शिक्षा में अशिक्षित महिलायें पिछड़ी हों किन्तु उनमें हाथ का कौशल बखूबी देखने को मिलता है। अशिक्षित महिलाओं में किसी के प्रति हीन भावना नहीं होती क्योंकि उनका पालन पोषण बेहद ही सामान्य तरीके से होता है।

शिक्षित महिला का यह दायित्व है की वो अशिक्षित महिला का सम्मान करे और उसे हीनता का अनुभव ना कराये। यदि शिक्षित नारी ऐसा नहीं करती तो वह शिक्षा के असल मायने को पूरा नहीं करती। सरकारी एवं गैर सरकारी संस्था में पड़े पदों पर विराजमान होकर धन कमाना अलग बात है मगर शिक्षित महिला, अशिक्षित महिलाओं का मार्गदर्शन करे अथवा उनकी सहायक बने यह भी जरूरी है।

दुर्भाग्यवश देश में शिक्षित महिलाओं का व्यावहारिक रवैया अशिक्षित महिलाओं के प्रति सम्मान जनक नहीं है। यह सच है की सभी शिक्षित महिलायें एक जैसी नहीं किन्तु अधिकांश मामले ऐसे ही देखने को मिलते हैं जहाँ शिक्षित महिलायें अपने व्यक्तिगत रुबाब में ही नजर आती हैं। अतः नारी शिक्षा के संकल्प को पूरा करना शिक्षित नारी की जिम्मेदारी भी बनती है। केवल सरकरी विज्ञापन, प्रोत्साहन के सहारे सम्पूर्ण नारी शिक्षा को पूरा कर पाना असंभव है। यह अति आवश्यक है की शिक्षित नारी इसकी भागीदार बने।

नारी शिक्षा के विस्तार के लिए क्या करे सरकार:

नारी शिक्षा के विस्तार के लिए सरकार को शिक्षा के जमीन ढाँचे में बदलाव लाने का संकल्प करना होगा। राइट तो एजुकेशन अधिनियम ज्यादा कारगर साबित होती दिखाई नहीं देती। शिक्षा के अधिकार की बात तो ठीक है मगर क्या केवल अधिकार देने मात्र से सरकार की जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती हैं। शिक्षा के विस्तार के लिए निम्न कार्य करने पड़ेंगे –

  • 1: सरकरी स्कूलों के ढाँचे एवं उनकी शिक्षा की गुणवत्ता में बदलाव लाना होगा।
  • 2: प्राइवेट स्कूलों की वृद्धि पर लगाम कसनी होगी।
  • 3: प्राइवेट स्कूलों की फीस निर्धारित करनी होगी।
  • 4: देश में शिक्षकों का अनुपात भी बढ़ाना होगा।
  • 5: कक्षा 12वीं तक कम से कम कन्या छात्राओं की शिक्षा को मुफ्त किया जा सकता है।
  • 6: विदेशों की तरह होम स्कूलिंग को लीगल किया जाना चाहिए।
  • 7: मशीनरी स्कूलों के फैलाव और इनके मनमानेपन को दबाना होगा।
  • 8: महँगी किताबें, महँगे ड्रेस को जनहित में सस्ता करना पड़ेगा।
  • 9: नोटबुक, रीडिंग बुक, स्टैशनरी एवं यूनिफार्म स्कूल से खरीदने विवशता को खतम करना होगा।
  • 10: अपने ही स्कूल के बच्चों को प्राइवेट टूशन देकर पास करने का लालच देने वाले सरकरी टीचरों को बर्खास्त करना होगा।

मैं जानता हूँ की ये सभी बदलाव शायद संभव नहीं क्योंकि सरकार बड़े बिल्डरों एवं अन्य प्राइवेट एजेंसियों के साथ मिली भगत करके शिक्षा का बाजारीकरण कर सही है। इस बाजारीकरण से उन परिवार के बच्चों को तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा जिनके पास अथाह पैसा है। किन्तु निम्न मध्यवर्ग और गरीबवर्ग शिक्षा के बाजार में पूरी तरह जकड़ चुका है।

यह एक ज़बरदस्ती की लूट है जिसमें सरकारी मुलाज़िम भी शामिल हैं।
नारी शिक्षा के नारे को जमीन पर उतारने के लिए शिक्षा को बाजार से बाहर निकालना होगा। अभी तो मैंने आरंभिक स्कूली स्तर की शिक्षा की बात की है; अन्य स्नातक स्तर की शिक्षायें तो अब लाखों के भाव आ चुकी हैं। सरकारों का एक तरफ राइट तो एजुकेशन जैसी बात करना और दूसरी तरफ एजुकेशन को मार्केट में दब्दील करना मेरी समझ के परे है।

दिल्ली जैसे बड़े महानगरों में निम्न स्तर का प्राइवेट स्कूल भी नर्सरी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे का 3000 से 4000 तक की मंथली फीस ले रहा है। सालाना री-एडमिशन फीस अलग से और हर महीने एक्टिविटी के नाम पर पैसा अलग से।

नारी शिक्षा का सार:

बीते वर्ष 2020 के महिला एवं पुरुष के अनुपात पर गौर फरमायें तो यह 108.18 अनुपाते 100 है। अर्थात लगभग 108 पुरुषों पर कुल 100 महिलायें हैं।

यह अनुपात दर्शाता है की भारत जो कभी कन्या भ्रूण हत्या से ग्रसित था उसमें गजब का सुधार हुआ है। गर्भ के समय लिंग जांच का कानून एवं पुरुष का लड़कियों के प्रति बदलता नजरिया आखिर कारगर साबित हुआ है। यकीनन हमने पुरुष महिला लिंग अनुपात को दुरुस्त कर लिया है किन्तु शिक्षा का अनुपात अभी काफी पिछड़ा है।

जिस प्रकार समाज ने कन्या भ्रूण हत्या पर अपनी सजगता दिखाई है ठीक उसी प्रकार नारी शिक्षा के प्रति भी समाज का सजग होना अनिवार्य है। भारत बदलाव की ओर अग्रसर है वो दिन दूर नहीं जब नारी शिक्षा का संकल्प भी पूरा होगा।

मेरी नजर में नारी शिक्षा के विस्तार में यदि कोई बड़ा रोड़ा है तो वह है महँगी होती शिक्षा।
यूँ शिक्षा का लगातार महंगा होते जाना एक परिवार की अर्थव्यवस्था को तबाह करता जा रहा है। 4 बच्चों की बात क्या की जाय, यदि परिवार में 2 बच्चे भी हैं तो दोनों को अच्छी तालीम दे पाना सामान्य वर्ग के बस की बात नहीं। सरकारों की मिलीभगत, बड़े बड़े बिल्डर और मशीनरी ग्रुप शिक्षा को एक कारोबार में दब्दील कर चुके हैं। क्या खाक पढ़ेगा भारत और आगे बढ़ेगा भारत।

बहरहाल, यह आगे देखने वाली बात होगी की देश की सरकारें शिक्षा के बाजारीकरण पर कैसे लगाम कसती हैं।
एक सामान्य परिवार में बेटा और बेटी हैं तो अभिभावक लड़की की शिक्षा के साथ कुछ समझौता कर बेटे को पढ़ा देने में विश्वास रखता है। आखिर वो करे भी तो क्या, भला किसे अच्छा नहीं लगेगा की उसके बेटी-बेटे दोनों उच्च शिक्षा लें; किन्तु धन के आभाव के आगे अभिभावक भी अपने घुटने टेक देता है।

नारी शिक्षा को विस्तार देने के लिए सरकार शिक्षा के व्यापार पर लगाम कसे।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा