सत्य घटना पर आधारित हिंदी कहानी – अंतिम इच्छा

सड़क किनारे एक घना नीम का पेड़ और उसके नीचे एक ‘साईकल रिपेयर‘ की दुकान। ..दुकान के ठीक दाहिने हाँथ पर कुछ दूरी पर स्थित एक ‘चाय की झोपड़ी‘ । सड़क के दोनों ओर खेत-खलिहान व ग्रामीण लोगों के कच्चे-पक्के मकान।

वहीं पर नज़दीक स्थित एक प्राइमरी पाठशाला की आखरी घंटी बजती है और कुछ ही देर में मास्टर ‘रमाकांत‘ जी अपनी साईकल को लुढ़काते हुए ‘भुवाल‘ पंचर वाले के पास आ जाते हैं।

इससे पहले की रमाकांत मुख से कुछ कहते, साईकल रिपेयर की दुकान चलाता भुवाल बोल पड़ा
…का जी मास्टर साहेब ! हीरो होंडा फिर से पंचर हो गयी का ?

पजामा कुर्ता पहने, गले में सफ़ेद रंग का गम्छा डाले रमाकांत साईकल को स्टैंड पर टिकाते हुए कहते हैं
..जब तुम्हारे जैसा इंजीनियर काम चलाऊं काम करेगा, ..तो हीरो हौंडा रोज पंचर होगी ही।

भुवाल, रमाकांत की मसख़री को पहचानते हुए उत्तर देता है – सब हमारा ही गलती है !! ..है न, मास्टर साहेब !
तनिक ‘घाम’ देखिये केतना है; सूरज भगवान लग रहा है सब जलाकर राख कर देंगे।

भुवाल पास में रखे एक मटके की ओर इशारा करते हुए कहता है
पीजिये ठंडा पानी, …गला तर करिये अपना; तब तक हम 2 चाय बोलकर आते हैं।

..अरे नहीं नहीं। रमाकांत जी बोले
तुम बैठो भुवाल, पंचर बना दो जल्दी। मैं ही जाकर चाय लाता हूँ।

इधर नीम के पेड़ के नीचे भुवाल साईकल को ज़मीन पर गिराकर उसका ट्यूब निकाल रहा था।
उधर, रमाकांत मास्टर जी ..चाय वाली झोपड़ी के पास जा पहुँचे।

धूप इतनी तेज़ थी कि सड़क पर देखने से ऐसा लग रहा था मनो उसपर कोई तरल पदार्थ बह रहा हो
गाँव की सड़कें बहुत ज्यादा चौड़ी और सपाट नहीं होती। उसी सड़क पर मवेशी, पैदल चलते लोग, दुपहिया, चार पहिया वाहनों के अतिरिक्त सवारी जीप और लोकल बसें..आदि दौड़ती भागती रहती।

सड़क किनारे नीम के नीचे बैठा भुवाल, अभी पंचर के छिद्र को तलाशने के लिए ट्यूब फुलाकर पानी में डालता ही है कि..अचानक एक तेज़ रफ़्तार आती हुई ‘बस‘ अनियंत्रित होकर नीम के पेड़ से जा टकरायी। यह टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि सवारियों से भरी हुई बस लगभग दो भाग में बंटते हुए नीम के पेड़ में पूरी तरह फंस गयी।

चिलचिलाती कड़ी दुपहरी के शांत वातावरण में अचानक ही कोतूहल उमड़ पड़ा।
…रोने चीखने की आवाज़ों के बीच, बस में बैठे घायल ज़िंदा लोग खुद को बचाने की गुहार लगाने लगे।
क्षण में ही, पास वाली चाय की झोपड़ी से सभी लोग बाहर आकर घायल लोगों को बस से निकालने लग गए। ..इससे पहली की दूर थाने से पुलिस आती; ग्रामीण लोग अपना सामाजिक दायित्व निभाने लगे।

बस में बैठी कुछ महिलाएं, बुजुर्ग, पुरुष एवं बच्चे मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे।
और..जो घायल थे उनकी भी हालत अत्यंत गंभीर थी।
एक गाँव ही है जहां के लोग सबका दुःख पहचानते हैं; अतः पुलिस का इंतेज़ार किये बगैर लोग अपने निजी वाहनों से घायल व्यक्तियों को अस्पताल की ओर लेकर चल पड़े।

इस पूरे घटनाक्रम में अगर कोई मौन खड़ा था, तो वो थे..रमाकांत मास्टर जी
अपने हाथ में चाय के 2 कुल्लड़ लिए, बेसुध-बदहवास खड़े रमाकांत की आँखें अपने मित्र ‘भुवाल’ को तलाश रहीं थी।

हरे रंग का पेड़ ज़मीन से ऊपर कुछ दूरी तक खून से लाल हो चुका था।
चाय का कुल्लड़ फेंकते हुए रमाकांत अचानक चेतन की अवस्था में पुनः लौट आये और दौड़कर, …रोते हुए अपने मित्र ‘भुवाल’ को बिखरी हुई बस के आस-पास तलाशने लगे। ..लोगों से भरी हुई बस की यह टक्कर सच में ख़तरनाक थी; क्योंकि तेज़ दुपहरी में भी रक्त नहीं सूख पा रहे थे।

आखिर, रमाकांत जी कि नज़र ठीक पेड़ के नीचे व बस से बुरी तरह दबे एक मृत शरीर पर पड़ी।
भुवाल ही था वो, ..उसके कपड़ों से जाहिर हो रहा था; बेशक वो खून में डूब चुके थे।
…हां, भुवाल ही था वो क्योंकि उसने अभी तक साईकल के ट्यूब को अपने हाथों में जकड़ रखा था।

बस और पेड़ के बीच दबा भुवाल का मृत शरीर रमाकांत खींच भी नहीं सकते थे।
अतः ..वो वहीं बैठकर रोने लगे। भुवाल से बड़ी यारी थी रमाकांत की, भला मित्र की मृत्यु पर कैसे न रोते।

स्वयं को दोषी मानते हुए रमाकांत ने हाथ जोड़कर भुवाल से कहा – हमको माफ़ कर दो, भुवाल..हम तुमको चाय लाने नहीं दिए।
..हमें पता होता कि ये हादसा होगा, तो ..हम कभी तुमको न रोकते। तुम्हारी जान मेरी वजह से गई, ..भुवाल – हमको माफ़ कर दो !!

इस घटना को बीते, अभी 1 हफ्ता भी नहीं गुजरा था।
एक रात रमाकांत उस नीम के पेड़ के सामने से होते हुए गुजर रहे थे, ..कि तभी एक आवाज़ आई – “मास्टर साहेब..चाय नहीं लाये आप

रमाकांत जी को लगा भुवाल ने बोला । ..फिर तुरंत उनको ध्यान आया, अरे भुवाल तो मर चुका है।
गाँव में तो रात बेहद जल्दी हो जाती है; आस-पास अँधेरा, उसपर ये भुवाल की आवाज़..रमाकांत जी का दिल धड़काने लगी।
..स्वयं को हौसला देते और वहम मानकर वो अपने निवास स्थान की ओर चल पड़े।

अगले दिन फिर वही आवाज़मास्टर साहेब..चाय नहीं लाये आप” !!
..इसबार रमाकांत बिना घबराये नीम के पेड़ के नीचे खड़े हो गए, और हिम्मत करते हुए उन्होंने कहा – भुवाल, ए भुवाल..!

बिना देर किये हुए रमाकांत ने इस घटना के बारे में अपनी बूढ़ी माँ को बतलाया।
बूढ़ी माँ ने बेटे रमाकांत को समझाते हुए कहा बेटा, भुवाल तुम्हारा मित्र था।
..और उस दिन उसकी आकस्मिक मृत्यु हो गयी ! किन्तु उसकी चाय पीने की अंतिम इच्छा अधूरी रह गयी।
उसे तुमने चाय पिलाने का वादा जो किया था, ..इसलिए बेटा, तुम उसकी इच्छा को पूरा करो और उसे 1 कुल्लड़ चाय पिला दो।

रमाकांत ने माँ को टोकते हुए कहा माँ, जब वो ज़िन्दा ही नहीं है तो मैं उसे चाय कैसे पिलाऊँ ?
..माँ ने रमाकांत को बताया बेटा, 1 कुल्लड़ गरम चाय लेकर आज रात तुम उस नीम के पेड़ के नीचे चले जाना और ‘भुवाल’ जहाँ बैठता था उस स्थान पर बिना बोले कुल्लड़ की चाय गिरा देना। ..तुम्हारे ऐसा करने से उसकी चाय पीने की अंतिम इच्छा पूरी हो जायेगी।

21 बरस बीत गये।
किन्तु…भुवाल की कहानी और उसके चाय पीने की अंतिम इच्छा को रमाकांत जी आज भी सबको बतलाकर याद करते हैं।
..गाँव के नए लड़के, रमाकांत जी को अंधविश्वासी कहते हैं।
पर भुवाल की अंतिम इच्छा, अंधविश्वास नहीं बल्कि एक सत्य घटना थी; जिसे केवल रमाकांत ही समझ सकते थे।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा