बाबूजी हिट्लर – हिंदी कहानी
1990 का दशक बेशक कितना भी अच्छा क्यों न हो पर एक मामले में बेहद बुरा था। 1990 के दशक में बाप अपने बच्चों से हिट्लर जैसा व्यव्हार ही करते थे। घर कि लड़कियां तो शायद बच भी जायें किन्तु लड़का बाप रुपी हिटलर का फ़रमान सुनने को बाध्य रहता।
तड़के भोर 4 बजे कमरे में झांकते हुए प्रमोद तिवारी अपने बेटे मनोज से कहते हैं –
अभी तक सो रहे हो ? तुम्हारा बाप उठ गया और तुम अभी तक सो रहे हो !!
उठोगे कि एक झाँपड़ दें तुम्हारे गाल पे; इतना कहने की देरी थी कि मनोज फाटक से उठकर बैठ जाता है।
अब बैठे क्या हो जी…पिता प्रमोद ने फिर गुस्से से कहा !
चलो मुँह धोकर किताब कॉपी खोलो!
वो ज़माना 1990 का था, अतः बिजली के दर्शन तो यदा कदा ही हुआ करते थे।
बेटे मनोज की पढ़ाई बाधित न हो इसलिए बाबूजी इमर्जेन्सी लाइट और लालटेन हमेशा तैयार रखवाते थे। मनोज मुँह धोकर अपनी नींद को तोड़ता हुआ फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी, अंग्रेजी और गणित की किताबें लेकर बिस्तर पर बैठ गया। कमरे के बाहर बरामदे में बाबूजी भी अपने काम में लीन हैं।
कुछ मिनट गुजरे ही थे कि वे फिर बोल पड़ते हैं –
मनोज, सो गये क्या जी ? बोल-बोल के पढ़ो ताकि हमको भी सुनायी दे।
मनोज गुस्से से ही सही मगर बोलकर पढ़ने को मजबूर था –
क) किसी वस्तु पर किया गया कार्य, उसपर लगाये गये ‘बल’ व ‘विस्थापन’ के गुणनफल के बराबर होता है W = F * S
ख) कार्य करने की क्षमता ऊर्जा कहलाती है, वस्तु के गति की अवस्था में होने के कारण उसमे समाहित ऊर्जा को ‘गतिज ऊर्जा’ कहते हैं।
इस प्रकार मनोज जोर-जोर से बोलता हुआ भौतिक विज्ञानं का अध्याय, कार्य ऊर्जा एवं शक्ति पढ़ने लगा।
मनोज के इस प्रकार बोलकर पढ़ने से पिता प्रमोद काफी खुश हुए और कहा –
समय से रोज उठ जाया करो…बिना चार बात सुने उठते नहीं हो।
2 घंटे प्रातः काल के अध्यन के उपरांत मनोज उठा और फिर विद्यालय जाने की तैयारी में लग गया। पिता साथ स्कूल छोड़ने ले ही जा रहे थे कि मनोज ने पिता से हिचकिचाते हुए कहता है – बाबूजी आप रोज छोड़ने आते हैं, इससे तो अच्छा है की एक साईकल दिला दें मुझे, मैं और सुनील दोनों साथ-साथ विद्यालय चले जायेंगे।
का कहे सुनील ? अरे उ नालायक के साथ तुमको हम देख लिए न तो टाँग धर के तोड़ देंगे। रही बात साईकल की तो कक्षा आठवीं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करके दिखायो, खरीद देंगे। मनोज अध्यन में अच्छा था, पर साईकल प्राप्ति की इच्छा से उसने पढ़ने में और अधिक ध्यान देना शुरू किया।
पड़ोस के गिरिजा प्रसाद का लड़का भी पढ़ने में तेज़ था अतः वे कभी-कभी मनोज से कुछ सवाल पूछ बैठते ये सोचते हुए कि शायद वो उनके प्रश्नों का जवाब न दे पाये। एक दिन संध्या के वक़्त गिरिजा प्रसाद, मनोज के द्वार पर आ बैठे और पिता प्रमोद से से वार्तालाप करने लगे। इतने में उनका ध्यान वहां खड़े मनोज पर भी पड़ा और वे पूछ बैठे – मनोज बेटा !! कैसी चल रही है पढ़ायी लिखाई ?
जी चाचा ठीक चल रही है – मनोज उत्तर देते हुए बोला।
अच्छा न्यूटन की गति का प्रथम नियम बताओ तो जरा; गिरिजा प्रसाद मनोज से प्रश्न करते हुए बोले !
मनोज तनिक देर चुप रहकर सोचने लगा!! पिता प्रमोद, मनोज की ओर गौर से देख रहे थे की ये नालायक आज मेरी नाक कटवायेगा !!
क्या पढ़ाई कर रहे हो बेटा – गिरिजा प्रसाद हँसते हुए बोले।
मेरा बेटा होता तो तपाक से जवाब देता।।
इतने में मनोज जवाब देता है –
यदि कोई वस्तु स्थिर या गतिशील है तो वह तब तक उसी अवस्था में रहेगी जब तक उसपर कोई बाह्य बल आरोपित न किया जाय।
मनोज का उत्तर सुन गिरिजा प्रसाद सोच रहे थे कि इसने कहाँ से जवाब दे दिया !!
अच्छा चलता हूँ प्रमोद जी कुछ जरूरी काम है, यह बोलते हुए गिरिजा प्रसाद द्वार से उठकर चल पड़े।
प्रमोद अपने बेटे से कहते हुए –
आज तो तुम हमारी नाक ही कटवा देते, 5 मिनट लग गया उत्तर देने में ! पढ़ाई में ध्यान तो है नहीं, क्या चाह रहे हो ? सुबह 3 बजे उठायें क्या तुमको !
गिरिजा प्रसाद के सवालों का सामना अक्सर मनोज को करना पड़ता वो भी अपने पिता प्रमोद के सामने। गिरिजा प्रसाद की ये हरकतें मनोज को न भाती क्योंकि वे मनोज को निरंतर नीचा दिखाने का प्रयास करते अपने फ़िजूल के प्रश्नो से।
कुछ महीनों में कक्षा आठवीं की परीक्षा का समापन हुआ। पिता प्रमोद, परीक्षा के परिणामों का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे क्योंकि वह उनके लिए स्वाभिमान का विषय था। मनोज भी परीक्षा समाप्ति से बेहद प्रसन्न था जिसकी वजह थी कि अब कुछ दिन उसे सुबह 4 बजे उठना नहीं पड़ेगा। मगर पिता के ताने और कार्य पर अंकुशों का सिलसिला अभी भी जारी रहा।
प्रमोद ने कहा, सुनो मनोज – परीक्षा समाप्त हो गया है इसका मतलब ये नहीं दिनभर इधर-उधर घूमो और खेलो। अगले साल नवीं कक्षा में जाना है पढ़ाई लिखाई जारी रखो, हाई स्कूल में भी प्रथम आना है तुमको।
कक्षा आठवीं के परिणाम घोषित हुए !
मनोज अपने पिता कि इच्छा के अनुरूप ‘प्रथम श्रेणी’ से उत्तीर्ण हुआ।
पिता प्रमोद खुश तो थे मगर बोले – मैथ में इतना कम नंबर कैसे आया जी ? खाली 68 नंबर आया है तुम्हारा !!
क्या कहे थे हम ? बोले थे न तुमको किसी भी विषय में 70 से कम नहीं आना चाहिए। अ, जरा ये देखो दिन-रात भौतिक विज्ञानं पढ़ने पर भी तुम केवल 81 नंबर लेकर आये और रसायन विज्ञानं का भी वही हाल है; नालायक कहीं तो 90 नंबर भी लाते।
शाम को खाने के दौरान मनोज की माता प्रमोद जी से कहतीं हैं –
सुनिये, आप साईकल खरीदने को बोले थे !! अब बेटा प्रथम श्रेणी से पास हुआ है तो खरीद दीजिये; इसका भी मन रह जायेगा।
ठीक है ठीक है, खरीद देंगे कल – प्रमोद जी उत्तर स्वरुप बोले।
अगले दिन बाज़ार में पिता प्रमोद और मनोज साईकल विक्रेता की दुकान पर गये।
प्रमोद ने बेटे को कहा – देखो जी, कौन सा साईकल तुमको लेना है पसंद करो।
मनोज तो कब से सीधे हैंडल वाली Hercules Cycles चलाने की सोच रहा था अतः उसने पिता को दिखाते हुए कहा – बाबू जी ये वाली लेना है।
प्रमोद साईकल को देखते हुए कहते हैं…ये लफंगों वाली साईकल लोगे जी !
लगता है सुनील आवारा से तुम्हारी दोस्ती ज्यादा जम रही है! उसी के जैसा जूता, उसी के जैसा कपड़ा और अब उसी के जैसा साईकल !!
का है इस साईकल में ?
तभी दुकानदार बीच में टोकते हुए बोला – भाई साहब लड़कों का जमाना है; यही तो उमर है इनका थोड़ा फैशन करने का। ले दीजिये आजकल तो हर स्कूल के बच्चे यही चला रहे हैं।
अरे भाईसाहब आप चुप रहिये, प्रमोद जी दुकान वाले से बोले –
का ले दीजिये, ई कौनो साईकल है ! इसपर तो 1 बोरा चावल भी नहीं लाद पायेंगे।
देखो मनोज – ऐसा साईकल लो कि कभी कभी मैं भी चला सकूं!
वैसे भी इसमें मजबूती कहाँ है और दाम है 1600 रुपिया।
वो जो Avon Classic Cycle है वो लो, मजबूत भी है और चावल गेहूं का भार भी उठा लेगी।
शरीफ घर के लड़के ये सब हीरो साईकल नहीं चलाते; ऊपर से दाम भी इसका केवल 800 रुपिया है।
दुकानदार को बोलते हुए प्रमोद जी ने कहा – चलिए जी आप Avon Classic Cycle को ही कस दीजिये।
मनोज अपने पिता के फैसले से नाराज़ था; उदास मन से चुप रहा कुछ न बोला।
घर पर साईकल आ गयी थी, अब मनोज स्वयं विद्यालय जाने लगा।
अगले दिन पिता प्रमोद ने देखा की मनोज ने नई साईकल पर चढ़ी पन्नी और काग़ज़ के गत्ते को हटा दिया है।
वे डाँटते हुए कहते हैं – क्यों जी, इसीलिए तुमको हम नई साईकल दिलाये थे ?
एक दिन स्कूल क्या ले गए सारा पन्नी नोच-बकोट के रख दिए।
जरूर उ सुनीलवा तुमको सिखाया होगा। खाने को मांग रहा था पन्नी, अरे चढ़ा था तो साफ़ ही तो रखता साईकल को।
मनोज ने नई साईकल पर लगी पन्नी को इसलिए हटाया क्योंकि वह बेहद अजीब लग रही थीं और स्कूल के दोस्त मनोज को चिढ़ा भी रहे थे। कुछ तो दोस्तों ने ही हटा दीं और बाकी मनोज ने स्वयं हटा दिया। पिता प्रमोद साईकल पर बहुत ज्यादा नज़र रखते, उसपर कहीं खरोंच लग जाने पर मनोज को ढेर सारी बातें सुना देते। मनोज अब काफी हद तक अपने पिता की बातों का आदि हो चुका था। साईकल की सवारी कर अब वह कुछ अपने मन से जीवन का आनंद भी ले रहा था। दोस्तों के साथ घूमना, खेलना, मस्ती करना इत्यादि कार्यों में वह रम चुका था ! आखिर इसमें गलत भी क्या था; हर वक़्त की पढ़ाई और पिता के ताने मनोज के जीवन रस को समाप्त करते जा रहे थे ! किन्तु साईकल ने उसे उड़ने के लिए पंख दे दिए थे, अब वह अपनी अवस्था का पूरा आनंद लेता हुआ बेहद प्रसन्न था।
एक दिन मनोज पिता से 50 रुपये मांगते हुए –
प्रमोद जी बोले, पचास रुपये ! अभी 2 दिन पहले ही तो दिए थे तुमको, क्या किये सारा पैसा ? ख़तम हो गए बाबू जी !
अब साईकल का भी तो खर्च है – रोज इसमें हवा डलवाओ, कभी पंचर बनवाओ, कभी तेल डलवाओ और फिर कुछ समोसा पकोड़ा भी खा लेते हैं दोस्तों के साथ।
अच्छा तो ई माजरा है तुम्हरा – दोस्तों के साथ समोसा पकोड़ा खाते हो कि सबको खिला देते हो।
रही बात साईकल में रोज हवा डलवाने कि तो रोज-रोज 1 रुपया हवा में खर्च करने से बेहतर है की तुमको हम पंप लाकर दे देते हैं, घर से हवा भर के जाना।
अगले दिन प्रमोद जी अपने कहे अनुसार – साईकल में हवा डालने के लिए एक पंप लाकर रख दिए।
सुनो मनोज – अब तुम घर से ही हवा डालकर निकलोगे।
पिता की इस हरकत से मनोज अपने दोस्तों में उपहास का पात्र बन गया।
पड़ोस मोहल्ले में साथ विद्यालय व कोचिंग जाने वाले छात्र, मनोज के घर आकर बोलते –
मनोज लाओ पंप लाओ….हमारी साईकल में भी हवा डालो। कोई लड़का मनोज को पंचर वाला कहता तो कोई हवा डालने वाला।
खैर दोस्तों की बातें थीं, वे सभी मनोज का मजाक उड़ाते मगर मनोज से उतना ही प्यार भी करते।
मनोज के पास साईकल में हवा डालने वाला पंप है यह बात विद्यालय में साथ पढ़ने वाले सभी बच्चों को ज्ञात हो गयी। मित्रों के हंसी मजाक से मनोज अपने दबे स्वभाव से बाहर निकलने में कामयाब हुआ।
यारों का साथ, हंसी मजाक, चौक चौराहे और खेल मैदान मनोज की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गये।
मित्रों के साथ उठने बैठने से मनोज अब पढ़ने में ज्यादा रुझान लेता ! मनोज के अलावा, स्कूल-कोचिंग के कुछ अन्य मित्र भी नौवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। किन्तु कुछ अन्य बच्चे ‘द्वितीय’ और ‘तृतीय’ श्रेणी में भी रहे।
कभी किताबों और नंबरों को ही सब कुछ मान बैठने वाला मनोज अब ये समझ गया था कि ‘द्वितीय’ और ‘तृतीय’ श्रेणी से पास होने वाले बच्चे बुरे नहीं होते; बेशक वे पढ़ने में मेधावी न हों किन्तु अन्य कार्य में वो किताबी छात्रों से मीलों आगे होते हैं। जीवन नंबर के खेल से कहीं ज्यादा परे है; यह बात मनोज को अब ज्ञात हो चुकी थी। हां अच्छे नंबर का महत्त्व है इसे नकारा नहीं जा सकता मगर व्यक्ति की उच्च सफलता कई बिंदुओं पर निर्भर करती है। मनोज कक्षा 10वीं की दहलीज़ पर आ गया, गुजरे 2 सालों में वह काफी समझदार हो गया।
एक दिन, पिता प्रमोद बोलते हुए – मनोज !! तुम्हारी माँ कह रही थी कि तुमको एक जैकेट लेना है।
दिवाली तो आ ही रहा है सोच रहे हैं तुम्हारे लिए एक जैकेट खरीद दें ठंडी में भी काम आयेगा।
और पढ़ाई कैसा चल रहा है तुम्हारा ? पिता ने पूछा।
ठीक चल रहा है बाबू जी !!
हम्म, 10वीं बोर्ड का परीक्षा है अगले वर्ष। एक दम डटकर तैयारी में लग जाओ। प्रथम आना है, फिर जो कहोगे वो खरीद दूंगा।
पीछे से माता जी बोली – अब जैकेट भी बोर्ड इम्तिहान के बाद ख़रीदियेगा क्या ? गर्मी में पहनेगा जैकेट !
रविवार का दिन था, पिता बोले चलो भाई आज ही खरीद देते हैं। कपार खा गये हो तुम माँ-बेटे।
बाज़ार में एक कपड़े की दुकान पर !! देखो मनोज क्या लेना है तुमको।
मनोज ने कुछ स्टाइलिश जैकेट, नए फैशन के अनुरूप देखने शुरू किये।
इसबार पिता प्रमोद को मनोज के फैशन पर ऐतराज़ न हुआ पर…
वो बोले – बेटा मनोज, अरे इतना फिटिंग वाला जैकेट मत लो !! अभी तो तुम मोटे होगे और कुछ कद भी लंबा होगा।
ढीला-ढाला साइज लो ताकि दो-चार साल आगे तक पहन सको।
मनोज थोड़ा नाराज़ स्वर में बोला –
बाबू जी, अब जैकेट कौन ढीला ढाला पहनता है।
पैंट-शर्ट, स्वेटर, कुर्ता-पजामा सब आप इतना बड़ा बड़ा दिला दिए हैं हमको की उसको पहनकर हम जोकर लगते हैं।
देखो मनोज – कपड़ा ऐसा ही लिया जाता है जो आगे दो-चार साल तक ठीक से पहना जा सके। अब तुम जैकेट पूरा फिटिंग का ले लोगे तो ये अगली दिवाली तक बेकार हो जायेगा बेटा। कौन पहनेगा इसको ? पैसे की बर्बादी करने से अच्छा है थोड़ा ढीला साइज का लेलो।
ज्यादा ढीला हो तो फोल्ड करके पहन लो !
बाबू जी जैकेट फोल्ड करके पहनेंगे ? – मनोज ने पूछा !
प्रमोद बोले – हां तो क्या हो गया !! जब कमाना तब खरीदना अपने पसंद का जैकेट।
आखिर पिता प्रमोद एक बार फिर अपने पुत्र पर विजई हुए और साइज से बड़ी जैकेट खरीदी गयी।
दिवाली बीत गयी, ठंड की शुरुआत हो गयी किन्तु मनोज ने पिता की खरीदी जैकेट अब तक न पहनी।
ज्यों-ज्यों ठण्ड आगे बढ़ती हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा की तारीख भी निकट आती जाती। खैर, पढ़ाई के मामले में मनोज ने कोई कमी न छोड़ी और अपनी तैयारी अच्छे से करता रहा।
पिता प्रमोद बोले हुए – मनोज बोर्ड परीक्षा में प्रथम आना है यह जान लो।
तड़के भोर में उठो और पढ़ो। अब ये खेल कूद बंद करो, खेलने के लिए सारा जीवन पड़ा है शिक्षा ही आगे काम आयेगी।
परीक्षा की तारीख के साथ पिता की ज्ञानभरी बातें, ताने और नाना प्रकार के लालच मनोज के समक्ष रखे जा रहे थे।
1998 हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा का समापन होता है। मनोज प्रथम आने को लेकर पूर्णतः आश्वस्त है।
जून माह में परीक्षा के परिणाम अख़बारों में आते हैं।
पिता प्रमोद ललाहित होकर अपने बेटे का रोल नंबर खोज रहे हैं।
अंततः उनको पुत्र मनोज का स्थान दिख जाता है जिसमें वो प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण है।
शाम को पिता प्रमोद हाथ में मिठाई का डब्बा और एक जोड़ी जूते का डब्बा लिए घर में दाखिल होते हैं।
मनोज बेटा – आज मैं बहुत खुश हूँ !! तुमने मेरा मान रखा।
तुम्हारी माँ ने कहा की तुमको जूता लेना है – लो, देखो मैं लेकर आया हूँ तुम्हारे नाप का जूता।
जूते का डब्बा खोलते ही एक फिर मनोज को मायूसी हाथ लगी।
बाबूजी, आप कैसा जूता ले आये !! एकदम अच्छा नहीं लग रहा है; पुराना मॉडल है।
550 रुपिया का है, और तुम कह रहे हो पुराना मॉडल है।
अरे जूता तुमको पांव में पहनना है की गर्दन में लटकाना है !! आजतक हम खुद 550 रुपिया का जूता नहीं पहने।
वैसे भी जूता ज्यादा चमक धमक वाला नहीं होना चाहिए। वरना कहीं खोले तो कोई लेकर ही भाग जाय।
प्रमोद और मनोज में विजई तो हमेशा पिता प्रमोद को ही होना था।
अतः प्रमोद बाबूजी हिट्लर बनकर फिर एकबार विजेता बने।
समय हवा के झोंके के समान 9 साल और आगे गुजर गया।
मनोज सरकारी नौकरी प्राप्त कर चुका है और पिता प्रमोद और माता वृद्ध हो चले हैं।
सर्दी के मौसम में मनोज अपनी शॉल को बक्से में खोज रहा था, तभी उसकी नज़र उस जैकेट पर पड़ती है जिसे पिता प्रमोद ने हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा के दौरान खरीदा था।
” कपड़ा ऐसा ही लिया जाता है जो आगे दो-चार साल तक ठीक से पहना जा सके “
मनोज को पिता की ये बात याद आती है,
वह खड़ा होकर जैकेट पहनता है जो थोड़ा चुस्त ही सही किन्तु अब फिटिंग में सही आ रही है।
मन में मुस्काते मनोज़ खुद से कहता है –
क्या पिता जी, आप भी पूरा हिट्लर बाबूजी बनकर रह गये।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा
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रवि प्रकाश शर्मा
मैं रवि प्रकाश शर्मा, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट। डिजिटल मार्केटिंग में कार्यरत; डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाते हुए हिंदी भाषा को नई ऊंचाई पर ले जाने का संकल्प। हिंदी मेरा पसंदीदा विषय है; जहाँ मैं अपने विचारों को बड़ी सहजता से रखता हूँ। सम्पादकीय, कथा कहानी, हास्य व्यंग, कविता, गीत व् अन्य सामाजिक विषय पर आधारित मेरे लेख जिनको मैं पखेरू पर रख कर आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मेरे लेख आपको पसंद आयें तो जरूर शेयर कीजिये ताकि हिंदी डिजिटल दुनियां में पिछड़ेपन का शिकार न हो।