हिंदी कहानी – डाइवोर्स
कब शादी हुई थी आपकी ? .. वकील ने ‘विभा’ की ओर देखते हुए ये सवाल किया।
अह्ह..यही कोई डेढ़ साल पहले, ..विभा ने बड़े अधीर मन से; न चाहते हुए जवाब दिया।
क्यों डाइवोर्स देना चाहती हैं आप ? ..
विभा, ..मन में इस प्रश्न का उत्तर खोज ही रही थी कि, वकील ने कहा – बोलिए ..कोई कारण तो देना ही होगा।
खैर, आप बाहर बैठिये मैं जरा कुछ जरूरी काग़जात तैयार कर लेता हूँ।
विभा, ..वकील के केबिन से निकलकर बाहर एक गुड़हल के पौधे के पास सटे हुए बेंच पर बैठ गयी।
..वह सोच रही थी !! ..क्यों डाइवोर्स देना चाहती है अपने पति को।
पास खड़े गुड़हल के पौधे पर कुछ फूल खिले थे..
कुछ गहरे लाल रंग के तो कुछ हल्के ग़ुलाबी। पौधे पर कुछ कलियाँ भी थी ..जो खिलने को बेताब थीं।
विभा उन फूलों को अपनी ऊँगली से धीरे-धीरे सहलाते हुए खुद से सवाल करती है – बोलो ..क्यों चाहिए डाइवोर्स !!
उहापोह कि स्थिति से गुजरता हुआ मन आख़िर क्या जवाब दे, विभा कुछ समझ नहीं पा रही थी।
कभी वो शादी से पहले वाली लड़की बन जाती तो कभी शादी के बाद वाली पत्नी। मगर सवाल ज्यों का त्यों था, ..क्यों चाहिए डाइवोर्स !
विभा का मन अकारण ही कोई कारण तलाश करने में जुटा हुआ था; तभी उसकी बेंच पर एक बुढ़िया आकर बैठ जाती है।
हल्के नीले रंग की सूती साड़ी पहने, सिर पर चमकती चाँदी जैसे सफ़ेद बाल लिए ..ये बुढ़िया इस उम्र में डाइवोर्स एंड फैमिली लॉयर से क्यों मिलने आयी है ..उसे देखकर, विभा के मन में ऐसे प्रश्न उठ रहे थे।
मन की व्याकुलता जब शांत नहीं हुई तो विभा ने अंततः बुढ़िया से पूछ ही लिया – आप इस उम्र में डाइवोर्स लेना चाहती हैं ?
बुढ़िया भी कुछ कम न थी, उसने कहा – हां, ..छोड़ दूंगी अपने बुड्ढे को।
..पूरे 38 बरस हो गए मेरी शादी को।
38 बरस, विभा ने चौंकते हुए अगला प्रश्न किया – फिर आप डाइवोर्स क्यों लेना चाहती है ?
बुढ़िया ने उत्तर दिया – ये तो तू सोच बेटी, ..इस सवाल का जवाब तो तू ही सोच रही थी।
आश्चर्य पूर्वक ..विभा की ज़बान लड़खड़ाने लगी, अहह.. आपको कैसे पता चला..? – विभा ने बुढ़िया को देखते हुए पुनः सवाल किया।
बुढ़िया मुस्कुराई ..और बोली – कहा न पूरे 38 बरस हो गए मेरी शादी को।
तेरी आँखें देखकर समझ गई कि तेरे मन में क्या चल रहा था।
..और मैं यहाँ डाइवोर्स देने नहीं, बल्कि अपने बुड्ढे को अगले जनम की शादी के लिए भी पक्का करने आयी हूँ।
विभा ने कहा – अगले जनम के लिए पक्का मतलब !
बुढ़िया कहती है – मेरा बेटा यहाँ ..फैमिली लॉयर है।
थोड़ा इमोशनल होते हुए बुढ़िया कहती है – बिमार हैं ‘वो‘ ..कई दिनों से अस्पताल में हैं।
मेरी बहु मुझे छोड़ गई यहाँ, ..अब मैं अपने बेटे के साथ जाउंगी उनसे मिलने। ..रोज देख आती हूँ उनको, क्या पता कब साथ छूट जाये !!
विभा ने गहरी साँस लेते हुए कहा – ओह्ह..आई..सी ।
विभा एक नादान लड़की की तरह प्रश्न करती है – क्या वो जानते हैं कि आप उनको रोज देखने आती हैं ?
बुढ़िया, गहरे भाव से कहती है – आँखें तो नहीं खोल पाते, मगर मेरे स्पर्श को जरूर पहचानते होंगे।
विभा और बुढ़िया, दोनों आपस में ऐसे बातें कर रही थी मानों सालों से एक दूसरे को जानती हों।
अभी ..चंद घड़ियाँ बीती ही थीं कि विभा ने देखा, ..वही वकील केबिन से बाहर निकला जो विभा का डाइवोर्स फाइल कर रहा था।
अपनी ओर वकील को आता देख विभा थोड़ी असहज हो रही थी, मन में सोची कि ये मुझे अब केबिन में बुलायेंगे।
मगर, वकील विभा के साथ बेंच पर बैठी बुढ़िया के पास आकर बोला – आइये माँ आप अंदर बैठ जाइये।
फिर ..विभा की ओर देखते हुए बोला – सॉरी, थोड़ा आपको और इंतज़ार करना होगा।
मैंने डाइवोर्स पेपर तैयार कर लिए हैं ..बस आपको उनपर साइन करने हैं। थोड़ी देर में, ..मैं खुद आऊँगा आपके पास पेपर लेकर।
वकील, विभा से निवेदन करते हुए बोला – प्लीज, ..आप थोड़ा मुझे और समय दें।
विभा डाइवोर्स पेपर का नाम सुनकर घबरा गई, और हल्की आवाज़ में अधूरे मन से बोली – जी ..आप समय ले लीजिये।
बुढ़िया के जाते ही विभा का मोबाइल वाईब्रेट होता है।
व्हाट्सएप मैसेज – कहाँ हो तुम ? ..कब से इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारा।
पहला मैसेज अभी पढ़ा ही था कि, ..एक दूसरा मैसेज फिर आता है – क्या सब मेरी ही गलती थी .. विभा ?
उधर, अंदर केबिन में बैठा वकील अपनी माँ से कहता है – बस सारा वर्क हो गया माँ।
बाहर जाकर विभा के साइन करा लूँ, कुछ कागज़ात उनको दे दूँ ..फिर चलते हैं पापा से मिलने हॉस्पिटल।
बुढ़िया पूछ पड़ी – साइन, किसके ?
..बेंच पर बैठी उस लड़की के !!
हां माँ, वकील बेटे ने उत्तर दिया।
उसी लड़की के साइन कराने हैं, ..क्या आप जानती हैं उसको ?
बुढ़िया बोली – नहीं.. मुझे तो वह थोड़ी गुस्से में और थोड़ी उदास सी लग रही थी।
बुढ़िया आगे अपने बेटे से कहती है – बाहर कहां जा रहा है, ..वो तो अब तक चली गई होगी।
..लगता था, अपने पति से नाराज़ थी, गुस्से में यहाँ चली आयी थी।
बुढ़िया अपने वकील बेटे को समझाते हुए कहती है – बेटा, सब यहाँ ‘डाइवोर्स‘ लेने के विचार से नहीं आते।
कुछ लोगों को ..उनके मन का क्रोध, और ..समाज के गलत सुझाव भी यहाँ लाते हैं।
क्या रिश्ता टूट जाने के बाद ज़िन्दगी में सब कुछ ठीक हो जाता है..!!
बड़ी प्यारी लड़की थी, ..बस वो अपने मन के भँवरजाल में फंसकर यहाँ आ गई थी। ..जा देख, चली गयी होगी।
वकील केबिन से बाहर निकलकर बेंच की ओर देखता है।
मगर, सच में वहाँ कोई नहीं था .. पास खड़े गुड़हल के पौधे में हल्के ग़ुलाबी रंग का एक फूल भी नहीं था।
शायद, ..विभा उस एक फूल को भी अपने साथ ले गई।
विभा, ..अब अपने पति के पास हमेशा के लिए वापस लौट चुकी थी ।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा
About Author
रवि प्रकाश शर्मा
मैं रवि प्रकाश शर्मा, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट। डिजिटल मार्केटिंग में कार्यरत; डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाते हुए हिंदी भाषा को नई ऊंचाई पर ले जाने का संकल्प। हिंदी मेरा पसंदीदा विषय है; जहाँ मैं अपने विचारों को बड़ी सहजता से रखता हूँ। सम्पादकीय, कथा कहानी, हास्य व्यंग, कविता, गीत व् अन्य सामाजिक विषय पर आधारित मेरे लेख जिनको मैं पखेरू पर रख कर आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मेरे लेख आपको पसंद आयें तो जरूर शेयर कीजिये ताकि हिंदी डिजिटल दुनियां में पिछड़ेपन का शिकार न हो।
अच्छी कहानी
शुक्रिया सर