“एक छुपा प्रेम” हिंदी कहानी

बात उन दिनों की है जब हिन्दुस्तान इंटरनेट के क्रांति युग में प्रवेश कर रहा था। करीब सन 2000 के आस-पास भारत के चंद अग्रणी शहरों में इंटरनेट की व्यवस्था उपलब्ध हो चुकी थी। जो युवा युवती उस वक़्त कंप्यूटर शिक्षा से जुड़े हुए थे वे इंटरनेट पर आकर काफी रोमांचित थे और जो नहीं जुड़े थे वे अन्य जानकर लोगों के संपर्क में आकर सीख रहे थे। शहरों में इंटरनेट की उपलब्धता की बेशक कमी थी पर युवा वर्ग का इंटरनेट के प्रति आकर्षण इस कदर था कि वे हर दूरी तय करने को तैयार थे। शहर में कुछ प्रमुख स्थानों पर खुले साइबर कैफ़े में भीड़ देखते ही बनती थी; उसी भीड़ का हिस्सा “मनोज” भी था।

बात वर्ष 2001 की है, तब मनोज कक्षा 11वीं में था; परन्तु उसका एक पड़ोसी मित्र जो BCA (कंप्यूटर एप्लीकेशन) में स्नातक कर रहा था उसनें अपने साथ मनोज को भी Cyber Cafe में ले जाना शुरू कर दिया। यह वो दौर था जब न तो 2G था , न 3G , न ही 4G और ना किसी प्रकार का ब्रॉडबैंड सर्विस; यह दौर अपने पुराने ढीले और लचर Dialer Internet Connection के लिए जाना जाता था। खैर यह तो दौर की बात है मगर सुस्त इंटरनेट सर्विस से किसी को कोई लेना देना न था; गर लेना देना था तो Amelia से, Anjela से और Catherine इत्यादि से। आप सोच रहे होंगे की ये कौन हैं ? मैं बता दूँ की ये सब वो नाम हैं जिनके चर्चे उस दौर के लड़के किया करते थे। उस ज़माने में इंटरनेट इस्तेमाल करने का अर्थ था Yahoo dot com, Yahoo Messenger, Yahoo Email क्योंकि तब इंटरनेट का पर्याय केवल याहू ही था; हालांकि MSN और Hotmail जैसी सेवाएं थीं मगर याहू मैसेंजर के आगे सब फीके थे। शहर के साइबर कैफ़े तो Online Chatting का अड्डा बन चुके थे, वहीं इंटरनेट केवल ईमेल आई डी बनाने और चैटिंग करने के लिए ही जाना जाता था।

मनोज जो अभी मात्र 11वीं का छात्र था वो भी याहू मैसेंजर पर उपलब्ध विदेशी चैट रूम में कई प्रकार की विदेशी लड़कियों की गिरफ्त में था। सीधे शब्दों में कहें तो वो दीवाना हो चुका था, याहू मैसेंजर पर चैटिंग अब उसकी प्रतिदिन की दिनचर्या का हिस्सा थी। पुराना दौर था, समाज में लड़के लड़कियों का मिलना गलत समझा जाता था ऐसे में चैटिंग जैसी सुविधा मनोज जैसे अनगिनत लड़कों के लिए एक सुरक्षित जगह थी जहाँ वे जाकर अपने दिल का हाल कभी Amanda तो कभी Camilla को सुना आते थे। वैसे यह केवल लड़कों की बात नहीं बल्कि यही हाल लड़कियों का भी था; वे सभी भी सुरेश , दिनेश , आकाश से जुदा होकर किसी Aston और Belton को अपना दिल दे चुकीं थी।

नितिन, मनोज से पूछता हुआ बोला – अबे मनोज तेरी ईमेल आई डी क्या है? मनोज नें फ़ौरन जवाब दिया manoj_touchme at yahoo dot com इस प्रकार की आई डी का स्टाइल इंटरनेट के शुरूआती दौर को रेखांकित करता है। सभी लड़के अब अपने आप को ईमेल आई डी से जोड़ चुके थे, पर वो हमेशा इस फ़िराक में रहते थे की किसी लड़की का भी आई डी उनको पता चल जाय। मनोज एक अच्छा विद्यार्थी था, पठन-पाठन में अग्रणी होने के अलावा वो स्वभाव का भी अच्छा लड़का था पर चैटिंग उसका शौक था जिसे वो छोड़ नहीं पा रहा था। साइबर कैफ़े में जाकर प्रतिदिन चैटिंग करना अब उसके लिए जरूरी काम बन चुका था पर अन्य लड़कों की तरह वो चैटिंग के फूहड़ रूप का हिस्सा नहीं था; हाँ वह भी लड़कियों से ही चैट करता था पर साफ़ सुथरे शब्दों व् मर्यादा के साथ।

हमेशा की तरह एक दिन फिर वो जा पहुंचा साइबर कैफ़े। याहू मैसेंजर पर लॉगिन कर अपनी अमेरिकी फीमेल दोस्त Jaden का इंतज़ार कर रहा था। समय धीरे-धीरे निकल रहा था, 20 मिनट तक भी जब Jaden नहीं आई तो उसे लगा क्या यूँ ही पूरा 1घंटा निकल जायेगा? फिर तो मेरे 50 रुपये भी बेकार चले जायेंगे। मन ही मन वो यह सोचता हूँ खुद को अमेरिकी चैट रूम से अलग कर इंडियन चैट रूम में प्रवेश कर गया। 10 मिनट के उपरांत उसके एक पिंग का रिप्लाई आया “Hi” के साथ। रिप्लाई देने वाली लड़की का नाम “सौम्या” था। मनोज नें भी उसको दुबारा पिंग किया और लिखा How are you; इन दो शब्दों से बात आगे बढ़ती गई, देखते ही देखते समय 1घंटे की पूर्ति करने में महज कुछ ही मिनट दूरी पर था तभी मनोज ने सौम्या से पूछा Where are you from? इसका उत्तर भी उसे प्राप्त हुआ I am from Delhi; बस इसी जवाब के साथ मनोज ने अपनी इस नई महिला मित्र सौम्या से विदा लेते हुए यह कहा की वह कल फिर इसी समय आयेगा। उसनें सौम्या को कल पुनः आने का प्रस्ताव दे दिया जिसे सौम्या ने भी स्वीकार्य किया।

सौम्या और मनोज उस एक पहली मुलाकात से इस कदर बंधे की मनोज अपनी 12वीं की परीक्षा भी पास कर गया, उधर सौम्या भी 12वीं उत्तीर्ण हो गयी। एक छोटी सी मुलाकात वो भी इंटरनेट के माध्यम से एक गहरी दोस्ती में दब्दील हो गयी। देखते ही देखते दोनों अब ग्रेजुएशन में दाखिला ले चुके थे पर इंटरनेट और याहू मैसेंजर पर दोनों का आना जारी रहा। वक़्त के बहाव के साथ दोनों जवां हो गये, इधर वे ग्रेजुएशन की अंतिम दहलीज़ पर पहुँच गए पर दोनों ने कभी एक दूसरे से मिलने की इच्छा ना जताई। याहू से परवान चढ़ी सौम्या और मनोज की दोस्ती अब Gmail के नए रास्ते पर आ खड़ी हुई; इंटरनेट का वह सुस्ती भरा दौर थोड़ी तेज़ी में बदल गया क्योंकि ब्रॉडबैंड आ गया। धीरूभाई अम्बानी नें “कर लो दुनिआ मुट्ठी में” का ऐसा नारा दिया जिससे मोबाइल फ़ोन सभी की मुट्ठी में समा गए। इधर मनोज नें 2004 में ही साइबर कैफ़े का रास्ता छोड़ दिया था क्योंकि अब उसके पास R-Connect था वहीँ दूसरी तरफ सौम्या नें भी मनोज की तरफ अपने आप को मोबाइल फ़ोन से जोड़ लिया था। अब यह नादान सी दिखने वाली दोस्ती वर्ष 2006 पूरा होने के साथ अपने मैचोर स्तर तक आ गयी थी जहाँ दो जवां दिल शायद एक दूसरे के लिए धड़क रहे थे। अब वे महज अपनी बातें करने के अलावा अपनी फोटो भी एक दूसरे से साझा किया करते थे। पर यह मर्यादित प्रेम ऐसा था कि किसी नें मिलन की इच्छा अब तक न जताई; ऐसे ही बातों का सिलसिला चलता रहा मनोज अब ग्रेजुएट हो चुका था। मनोज संपन्न परिवार का था उसनें आगे और पढ़ने की इच्छा जताई जिसे घर वालों ने ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकृति दे दी। दूसरी ओर सौम्या भी एक संपन्न परिवार से थी पर अपनी पढ़ाई को यहीं समाप्त कर खुद कोई काम करना चाहती थी। एक तरफ जहाँ मनोज अपनी पढ़ाई को जारी रख आगे पोस्टग्रेडुएशन के लिए किसी बड़े शहर की तलाश में था तो दूजी ओर सौम्या अमेरिका में बसे अपने मामा-मामी के यहाँ जा कर फैशन डिजाइनिंग की ट्रेनिंग हासिल करना चाहती थी। सौम्या और मनोज बेशक एक दूसरे के करीब थे पर उनकी मंजिलें अगल-अलग थीं।

मनोज नें सौम्या से काफी दिनों तक कोई बात नहीं की ये सोच कर कि “दिल्ली जाकर बताऊंगा की मैं उसके शहर में आ चुका हूँ” मन में हल्की सी मुसकान लिए वो चल पड़ा शिक्षा के अगले भाग में देश की राजधानी दिल्ली की ओर।

तक़दीर का कुछ ऐसा फ़साना हुआ;

जब मैंने उनके शहर आने की सोची तो उनका वहां से जाना हुआ ..!!

शायद भाग्य में दोनों का मिलना न था, सौम्या पाँच रोज पहले ही दिल्ली से अमेरिका की ओर रवाना हो चुकी थी। मनोज अब उसे बार-बार फ़ोन करने का प्रयास कर रहा था पर नंबर बंद जाने से वो बेचैन हो गया। अंततः उसनें एक लंबे अंतराल पर वही अपनी याहू की ईमेल आई डी और जीमेल आई डी ओपन की और सौम्या को एक साथ कई मैसेज भेज दिये।

उधर सौम्या दिल्ली से दूर एक ऐसे देश जा पहुंची थी जहाँ सब कुछ अलग था। सौमया अमेरिका जाकर काफी खुश थी; नए देश की आबो-हवा में उसे यह ध्यान न आ रहा था कि मनोज उसके जवाब का इंतजार कर रहा है।

पर अचानक एक रात….सौम्या के मामा जी नें कुछ कहा –

तुम जानती हो सौम्या जीजाजी क्यों तुमको USA भेजने के लिए राजी हो गए? ….सौम्या ने सर हिलाया नहीं !
बेटा वो चाहते हैं की तुम यहीं सेटल हो जाओ; जीजाजी नें यहाँ तुम्हें एक और खास मकसद से भेजा है….सौम्या क्या?
तुम एक लड़की हो; एक दिन तुमको अपने जीवन साथी के साथ ही जीवन बिताना है।
जीजाजी नें अपने दोस्त के बेटे “मनोज दुग्गल” जो की यहीं न्यू यॉर्क में स्टडी कर रहा है उससे तुम्हारी शादी की बात भी की है।
रिश्ता तो पक्का ही समझो पर तुम मनोज दुग्गल से मिल लो इसीलिए जीजाजी नें तुम्हें यहाँ भेजने में जरा भी देरी ना की।

मामा के मुख से निकला मनोज शब्द सौम्या को छोटे शहर का रहने वाले मनोज की याद दिला गया जिससे वो घंटों बातें किया करती थी। सौम्या नें तुरंत अपना ईमेल चेक किया देखा मनोज के अनगिनत मैसेज आये हुए हैं। आज सौमया बदहवास सी थी , व्याकुल थी जैसे की कोई बहुमूल्य वस्तु उसके हाथ से निकलने वाली हो ; उस सारी रात उसनें मनोज के एक-एक ईमेल का जवाब दिया। अमेरिका आकर वो जितनी खुश हुई थी उससे कहीं ज्यादा वो परेशान हो चुकी थी। उसकी बेचैनी तब शांत हुई जब उसनें मनोज का रिप्लाई प्राप्त किया। शायद यह “एक छुपा प्रेम” था जिसे उजागर होने में काफी वक़्त लगा। सौम्या नें मनोज से फ़ोन पर बात करते वक़्त पहली बार अपने प्रेम का संकेत दिया वो भी खुले शब्दों से नहीं बल्कि अपनी करुणामयी आवाज़ से जिसमें प्रेम का वास था; मनोज उसके शब्द भावों को पहचान गया, पर कुछ उत्तर न दे पाया ।

कुछ ही दिन में मामा जी नें सौम्या को मनोज दुग्गल से मिलाने के संबंध में उससे बात की। सौम्या क्या कहती ? क्या बोलती उसे कुछ पता न था ! उसकी चुप्पी को मामा जी अपने आप ही स्वीकृति दे दी। मनोज दुग्गल चूंकि अमेरिका में पला बढ़ा था इस लिहाज से वो भी सौम्या से एक बार रूबरू होना चाहता था। आखिर वो दिन आ गया जो सौम्या शायद नहीं चाहती थी ; मनोज दुग्गल से आज उसे मिलने जाना था अपने मामा-मामी के साथ।

सौम्या, मनोज दुग्गल से मिलने के बाद काफी परेशान थी क्योंकि वो उससे शादी के लिए तैयार था और सौम्या जो ऐसा समझ रही थी की मनोज दुग्गल अमेरिका में पला है तो जरूर उसमें कोई ऐसी खामी होगी जिसको आधार मानकर वो इस शादी के लिए मना कर सके। पर ऐसा नहीं था; मनोज दुग्गल भी एक पारिवारिक व्यक्तित्व का लड़का था उसमें भी कोई बुराई न थी…..चेहरे पर चिंतन का भाव लिए सौम्या कुछ सोच में ही डूबी थी तभी…..

दिल्ली से मनोज के फ़ोन की घंटी बजती है, उसका फ़ोन देख आज सौम्या यह निश्चय करती है कि वह मनोज को सारी बात बता कर उसका हाँ या ना पूछेगी। फ़ोन के उठते ही मनोज बोल पड़ता है, सौम्या हम कभी मिले नहीं … एक दूसरे को हक़ीक़त में देखा तक नहीं … ऐसे में हमारे रिश्ते का क्या भविष्य है? उस दिन जब फ़ोन पर तुम रो रही थी तभी मैं जान गया की शायद तुम्हें आज यह अहसास हुआ है की तुम प्रेम करती हो मुझसे; पर मुझे तो यह बहुत पहले अहसास हो गया था; किन्तु तुमसे कह न सका। क्या हमें अपने इस प्रेम के रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए?….सौम्या फिर दोराहे पर खड़ी हो गयी; वो यह सोच रही थी की जो प्रश्न मैं पूछना चाह रही थी वो मनोज ने पूछ लिया अब उत्तर क्या दूँ !!

स्कूल की उम्र में शुरू हुई मनोज और सौम्या की दोस्ती जो गुजरते वक़्त के साथ दोनों के दिल में “एक छुपा प्रेम” बनकर बैठ गयी थी आज वह जवां हो उठी थी वह छुपा प्रेम अपना विस्तार कर चुका था पर बहुत देर हो चुकी थी। प्रेम को जन्म देने वाले दो प्रेमियों को ही अपने प्रेम से प्रश्न पूछना पड़ रहा था, शायद अब उसके अंत का वक़्त आ गया था। मनोज के पूछे हुए सवाल का जवाब देने को अब सौम्या पूरी मजबूती से तैयार थी।

सौम्या ने मनोज से कहा – तुम सच कहते हो क्या भविष्य है हमारे प्रेम का; कितने बरस बीत गए पर हमारा कभी एकदूजे से सामना न हुआ। क्या सच में हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं या ये सिर्फ एक भावनात्मक लगाव है। मैं इसे आकर्षण भी तो नहीं कह सकती; क्योंकि आकर्षण को दर्शन से ही उपजता है, किन्तु तुमने तो मेरे और मैंने तुम्हारे दर्शन भी तो नहीं किये। पर तुम जानते हो मनोज ! यही प्रेम है !! क्योंकि इसमें आकर्षण नहीं, वासना नहीं, किसी तरह की लालसा या लोभ नहीं। यह एक छुपा हुआ पवित्र प्रेम है जो शुद्ध है, निर्मल है, निष्पाप है, निष्कलंक है !! पर तुमने सच कहा इसका कोई भविष्य नहीं है !!!!

सौम्या का उत्तर सुन मनोज का ह्रदय भर आया। उसे यह ज्ञात हो चुका था कि आज उसका वह छुपा प्रेम अपने अंतिम मोड़ पर आ चुका है जहाँ से दो रास्ते निकलते हैं, एक सौम्या के लिए और एक स्वयं मनोज के लिए। भविष्य की खोज में अटका दोनों का यह निर्मल प्रेम, वर्तमान की कसौटी पर दम तोड़ चुका था वजह समाज का बंधन। शायद मनोज और सौम्या को अपनी मोहब्बत को एक खूबसूरत मोड़ देने का समय आ गया था।

क्या खूब कहा है मशहूर शायर साहिर लुधियानवी नें:

तआरुफ़ रोग बन जाए तो उसको भूलना बेहतर;
तआलुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा !!

वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन;
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा !!

 

सौम्या और मनोज अब हमेशा के लिए जुदा हो चुके थे पर वह “एक छुपा प्रेम” अब भी उनके ह्रदय में जीवित था।