निर्मला के पैसे – हिंदी कहानी
माँ जी मेरे बैग से किसी ने 4000 रुपये चोरी कर लिए, मेरे कमरे में कोई आया था क्या ? निर्मला नें यह सवाल अपनी सासू माँ से पूछा। सास नें निर्मला के पूछे सवाल पर कोई विशेष रूचि न दिखाई और कहा देखो शायद तुमने ही कहीं रख दिए होंगे वो पैसे। इतना बोलते हुए सास सीढ़ियों से नीचे उतर कर चली गयी। सास के जाने के बाद निर्मला ने अपने पति को फ़ोन लगाकर पूछा, सुनो तुमने मुझे कितने पैसे दिए थे घर से निकलते वक़्त ? पति नें कहा मैंने तो पूरे दस हजार दिए थे तुमको….क्यों क्या हुआ ?? निर्मला पति को उत्तर देते हुए बोली – क्या बताऊँ जिस बैग में मैंने वो 10,000 रुपये रखे थे उसमें से किसी नें 4000 रुपये निकाल लिए। यहाँ घर में तो केवल मैं हूँ और माँ जी हैं। एक दो रिश्तेदार आते जाते हैं….पर मैं कैसे किसी से कहूं ये बात। निर्मला काफी परेशान थी, बात सिर्फ चार हजार की नहीं थी, बात थी कि कौन उसके बैग में हाथ डालकर पैसे निकालेगा जब घर में केवल वो और सास रहती हों।
कुछ दिन बीते निर्मला नें पुनः अपनी सास से कहा – माँ जी मैंने फिर से अपना बैग देखा था , सारा कमरा व् आलमारियां भी देखीं पर खोये हुए पैसे नहीं मिले। निर्मला की बात सुन सास नें पुनः कोई विशेष बात नहीं कही; बस यही बोलकर रह गई की जाने दो आगे से ध्यान रखना। निर्मला मन में यही सोच रही थी कि माँ जी मेरी बातों में रूचि क्यों नहीं ले रहीं हैं…कहीं वही तो….नहीं नहीं मैं ये क्या सोच रही हूँ !! जाने दो शायद जाना था उन पैसों को। निर्मला अपने पति और एक बच्चे के साथ दिल्ली में रहती थी। ससुराल और मायका दोनों उत्तर प्रदेश के एक ही शहर में था, अपने पति से 10,000 रुपये लेकर आयी थी क्योंकि निर्मला की छोटी बहन “सुची” की इस महीने शादी है; निर्मला अपनी बहन को एक तौफा खरीदकर देना चाहती थी। ससुराल में रह रही निर्मला, जो कुछ दिन बाद अपने पिता के यहाँ जाने वाली थी, पर खोये हुए पैसे की शंका बार बार उसके मन को कचोट रही थी कि आखिर कैसे हो गया।
शादी की तिथि नज़दीक आने वाली थी, निर्मला के पिता एक दिन उसके ससुराल आ पहुंचे उसको अपने साथ ले जाने के लिए। भला मायके जाने की ख़ुशी किसे नहीं होती; निर्मला भी आज काफी प्रसन्न थी। वह अब जाने को तैयार थी; अपने बैग में रखे शेष 6000 रुपये निर्मला नें निकाल लिए और फिर तैयार होकर चल पड़ी अपने बच्चे और पिता के साथ। पिता का घर बेटी के लिए सबसे प्यारा होता है; निर्मला वहां पहुँच घर के एक-एक कोने में घूम रही थी। फिर अपनी बहन सुची से मिलकर ढेर सारी बातें की फिर हंसी मजाक का सिलसिला चल पड़ा। सुची नें कहा बता क्या देगी मुझे मेरी शादी में; निर्मला ने भी मजाक करते हुए कहा तुझे भला क्यों दूँ ! मैं तो तेरे होने वाले “वो” को तौफे दूंगी। दिन गुजरते देरी नहीं होती अब सुची की शादी में 5 दिन ही बचे रह गए थे। निर्मला बोली चल सुची बाजार चलते हैं तुझे जो तौफे लेने हैं वो अपनी पसंद से खरीद लेना। पैसे निर्मला के पास कम थे, पर उसनें अपनी माँ से ये कह कर कुछ पैसे लिए थे की वो वापस कर देगी। सुची अपनी बहन निर्मला के साथ बाजार जाकर अपनी पसंद के तौफे ले आई। विवाह का वो उत्सव ढोल नगाड़ों की गूंज के साथ होता हुआ आंसुओं की धार पर जाकर संपन्न हुआ। सुची अपने पति के साथ ससुराल को विदा हो गयी; जिस घर में प्रतिदिन ठहाके लगते थे आज वहां सन्नाटा सा जान पड़ता था।
निर्मला नें पिता से कहा – पापा अब तो आपकी चौथी बेटी भी विदा हो गयी, कैसे रहेंगे आप दोनों अकेले ? मैं तो दिल्ली में हूँ बार-बार नहीं आ पाऊँगी, आप सुची को बुलाते रहना ताकी आपका और माँ का मन लगा रहे। अपने माता-पिता के साथ 15 दिन बिता निर्मला फिर अपने ससुराल लौट आयी। दिल्ली में मौजूद निर्मला का पति ऑफिस काम काज के चलते अपनी साली की शादी में नहीं आ सका। निर्मला नें पति को फ़ोन करके कहा, कब आ रहे हो मुझे लेने ? पूरे एक महीने हो गए अब मेरा भी यहाँ मन नहीं लग रहा है। अगले सात दिन में पति अजीत भी अपने घर को आ गया, चार दिन बाद दोनों को पुनः दिल्ली लौटना था। निर्मला अपनी सास का बहुत ध्यान रखती थी, उसे दिल्ली जाने का दुःख भी था क्योंकि सास-ससुर बूढ़े हो चुके थे। निर्मला नें घर से निकलते वक़्त कहा – माँ जी, अपना ख्याल रखियेगा; अब आपकी सेहत ठीक नहीं रहती। अगर कभी आपको ज्यादा समस्या हो तो आप जरूर बताना मैं फ़ौरन वापस लौट आउंगी। सास से ये बात कह निर्मला नें अंतिम विदाई लेते हुए घर से बाहर अपने कदम निकाले; साथ में पति अजीत और छोटा बच्चा भी प्रणाम करते हुए रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़े।
ट्रेन में कुछ दूर यात्रा करने के उपरांत निर्मला नें अपना बैग खोला तो देखा उसमें 4000 रुपये रखे हुए थे। पैसे को देख निर्मला का अंदेशा सही निकला, चार हज़ार रुपये माँ जी ने ही बैग से निकले थे। निर्मला यात्रा के दौरान यही सोच रही थी कि आखिर माँ जी नें पैसे क्यों निकाले ? उनको अगर पैसों की जरूरत थी वो वे मुझसे मांग सकती थीं। हम सब एक ही परिवार का तो हिस्सा हैं ऐसे में बिना पूछे मेरे बैग से पैसे उन्होनें क्यूँ निकाल लिए। माँ समान सास पर शंका करके मुझे कतई अच्छा नहीं लगा पर जब पैसे फिर से मेरे बैग में आ गए तो यह भी सच है की उनके द्वारा ही पैसे निकाले गए होंगे। निर्मला नें अपने पति अजीत को यह बात नहीं बताई और अपने मन में यह प्रण किया की अब जब भी घर जाऊँगी तो माँ जी को कुछ पैसे खर्च के लिए दे दूंगी क्या पता उनको मुझसे पैसे मांगना अच्छा न लगता हो। उदास मन से बैठी निर्मला कैसे अपनी अभिव्यक्ति को बयां करे वो माँ जी को चोर भी तो नहीं कह सकती।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा
About Author
रवि प्रकाश शर्मा
मैं रवि प्रकाश शर्मा, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट। डिजिटल मार्केटिंग में कार्यरत; डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाते हुए हिंदी भाषा को नई ऊंचाई पर ले जाने का संकल्प। हिंदी मेरा पसंदीदा विषय है; जहाँ मैं अपने विचारों को बड़ी सहजता से रखता हूँ। सम्पादकीय, कथा कहानी, हास्य व्यंग, कविता, गीत व् अन्य सामाजिक विषय पर आधारित मेरे लेख जिनको मैं पखेरू पर रख कर आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मेरे लेख आपको पसंद आयें तो जरूर शेयर कीजिये ताकि हिंदी डिजिटल दुनियां में पिछड़ेपन का शिकार न हो।