पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ
दोहा:
” पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय;
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। “
कथानक:
बाबू साहब अपना मोटा पेट और मोटा सूटकेस रिक्शे पर रखते हुए बोले – चल बे, ..चौबेपुर कचहरी के पास।
उनके मुख से निकला वाक्य ‘चल बे’ …निःसंदेह रिक्शे वाले के मन को न भाया।
पर मरता आखिर क्या न करता; मन में बुदबुदाते और बाबू जी को लादे वो गंतव्य स्थान की ओर चल पड़ा।
बाबू साहब चौबेपुर कचहरी के सबसे ज्ञानी वकील माने जाते हैं …मने वकालती पंडिताई में उनका कोई सानी नहीं।
रिक्शे की गति को धीमा करता हुआ, अपने पैरों को ज़मीन पर रगड़कर रिक्शे को रोकते हुए रिक्शा वाहक बोला – आ गया बाबू जी चौबेपुर कचहरी।
बाबू साहब ने इशारे से रिक्शा चालक को अपना सूटकेस नीचे उतारने को बोला।
फिर किसी तरह वे अपने मोटे पेट को दबाकर नीचे उतरे और कहा – बोल बे कितना हुआ ?
साहब 25 रूपए ..रिक्शा वाहक ने बेहद धीमे स्वर में यह उत्तर दिया।
परन्तु बाबू साहब सिंघ गर्जना करते हुए उच्च स्वर में बोल पड़े – अबे ..25 रुपये…!!
उनकी गर्जना सुनकर 2 अन्य छोटे वकील वहां आ धमके।
अन्य वकीलों ने पहले बाबू साहब को प्रणाम किया फिर रिक्शा चालक को देखते हुए ’25’ रुपये पर जिरह छेड़ दिया।
हुम्म,
…क्यों बे – तुम्हरा 25 रुपया कइसे हो गया !
बाकी रिक्शावाला तो 15 रूपया ही लेता है ..बताओ 25 कइसे हुआ !!
किस्सा-ए 25 रुपया कुछ यूँ हुआ की,
तीसरे वकील शुक्ला जी मुँह का पान थूकते हुए और हाथ में वकालत की पोथी लिए कहते हैं – साला लूटने लग गया है ई-सब; ..25 रुपया लेगा मारिये 2 झापड़ यहीं पे।
खैर,
..बाबू साहब ने दरियादिली दिखाई और 20 का नोट रिक्शा चालक को देकर कहा – जा एक-ठो पान बंधवा कर ला और जो बचे वो तू रख लेना।
इस घटना के कुछ क्षण ही बीते थे की,
अचानक एक वृद्ध महिला रिक्शा चालक के समीप आकर बोली – बेटा रामपुर मोड़ चलोगे ?
…चल बे, बोल बे, कइसे हुआ बे और मारिये 2 झापड़ जैसे शब्दों से अलग एक वाक्य ‘बेटा’ सुनकर रिक्शा चालक पुनः ऊर्जावान हो उठा और बड़े ही सम्मान पूर्वक वृद्धा से बोला – चलूँगा अम्मा।
बाबू साहब से मिले 17 रुपये अभी उसकी मुट्ठी में ही थे, जिसे उनसे अपनी जेब में डाला और वृद्ध महिला को लेकर चल पड़ा।
रास्ता थोड़ा लंबा था अतः वृद्धा एवं चालक आपस में चर्चा करते हुए; अतीत एवं वर्तमान पर अपने विचार रखते हुए अंततः मंजिल तक आ पहुंचे।
वृद्धा अपने आँचल में बंधे हुए रुपयों को टटोलते हुए बोली – गिन लो बेटा कितने हैं, मुझे गिनती का कोई ज्ञान नहीं।
रिक्शा चालक ने रुपयों को गिनते हुए कहा – अम्मा ये तो पूरे पचपन हैं।
मेरा तो केवल 30 रुपया ही हुआ और इस प्रकार रिक्शा वाहक ने वृद्ध अम्मा को शेष 25 रुपये लौटा दिए।
वृद्धा ने प्रसन्नता वश अगला प्रश्न किया – पानी पिओगे बेटा ?
ना की मुद्रा में अपना सिर हिलाते हुए और अम्मा को प्रणाम करते हुए रिक्शा वाहक चल पड़ा..।
खाली रिक्शे को पैडल मारते एवं मन में विचार करते रिक्शा वाहक यह सोच रहा था –
अम्मा ने पैसा भी दिया और स्नेह भी।
किन्तु बाबू साहब ने क्या दिया ! ..न उनके पास पैसे की कमी थी और न ज्ञान की।
कथा निष्कर्ष:
” पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय; ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय “
बाबू साहब पोथियां पढ़कर भी पंडित ना बन सके,
किन्तु, अम्मा प्रेम रुपी शब्दों के इस्तेमाल से ही पंडित बन गई।
अतः शिक्षा का असल इस्तेमाल आप तब करते हैं जब आप अपने मुख से कुछ बोलते हैं।
पंडित वही है जिसके मुख से निकले शब्द किसी को आहत ना करें।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा
About Author
रवि प्रकाश शर्मा
मैं रवि प्रकाश शर्मा, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट। डिजिटल मार्केटिंग में कार्यरत; डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाते हुए हिंदी भाषा को नई ऊंचाई पर ले जाने का संकल्प। हिंदी मेरा पसंदीदा विषय है; जहाँ मैं अपने विचारों को बड़ी सहजता से रखता हूँ। सम्पादकीय, कथा कहानी, हास्य व्यंग, कविता, गीत व् अन्य सामाजिक विषय पर आधारित मेरे लेख जिनको मैं पखेरू पर रख कर आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मेरे लेख आपको पसंद आयें तो जरूर शेयर कीजिये ताकि हिंदी डिजिटल दुनियां में पिछड़ेपन का शिकार न हो।