प्राण पखेरू – एक सत्य घटना कि कहानी

रविवार 9 जुलाई 2017 का दिन अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुआ था। सुबह करीब 6:45 पर अचानक एक कबूतर उड़ता हुआ मेरे कमरे कि खिड़की के पास आ बैठा। रविवार के दिन भला इतनी सुबह मैं क्यों जागूँ ; मैं तो अपनी चिर निंद्रा में लीन था कि मेरे कमरे कि छत पर लगे पंखे से कोई वस्तु टकराई। टकराने की आवाज इतनी तेज़ थी कि मेरी नींद खुल गयी, मैंने देखा कि कमरे में किसी पक्षी के पंख यहां वहां बिखरे पड़े हैं और कुछ छोटे-छोटे पंख तो कुछ देर तक हवा में मेरी आँखों तैरते रहे।

यह दृश्य देख कर मैं समझ गया कि कोई चिड़िया छत से लगे मेरे पंखे से टकराई है, पर वह कमरे में कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। मैं तुरंत अपने बिस्तर से उठा और छत से लगे Ceiling Fan को मैंने बंद किया। घूमकर कमरे में नजर दौड़ाया तो एक कोने में कबूतर गिरा पड़ा था ; चारों ओर बिखरे पंखों को मैंने देखा तो वह उसी कबूतर के थे जो मेरे कमरे के Ceiling Fan से टकराया था । मुझे लगा शायद वह अब जीवित नहीं है क्योंकि पंखा अपने पूरे रफ़्तार में था जब कबूतर टकराया था। तेज रफ़्तार पंखे से अगर कबूतर जैसा कमजोर पखेरू टकरा जाय तो उसके जीवित रहने कि सम्भावना नगण्य रह जाती है। उसके जीवन कि कामना करते हुए मैंने अपने कदम आगे बढ़ाये फिर फर्श पर गिरे कबूतर के पास जा पहुंचा। मैंने देखा वह अभी जीवित था पर हिलने डुलने में असमर्थ था वह अपने शरीर को पुनः क्रियांवित करने की पुजोर चेष्टा कर रहा था पर वह कामयाब न हो सका।

प्राण पखेरू एक सत्य घटना पर आधारित हिंदी कहानी

उसकी स्थिति देख, मैंने उसे अपने हाथों से उठाया। गौर से देखा तो उसके बाएं पंख पर गहरा जख्म था, कबूतर अपना दाहिना पंख तो फड़फड़ा रहा था मगर बायां पंख तो उससे हिलाया न जा रहा था। मैंने सुनिश्चित किया की इस कोमल जीव को अपने कमरे से बाहर लेकर चलना चाहिए क्या पता बाहर कि हवा से इसके शरीर पर कोई असर हो। मैं उसे अपने हाथ में उठाये छत पर ले आया ; उसके ज़ख्म को धोने के लिए मैंने डेटॉल का प्रयोग पानी के साथ किया और उसके उपरांत Antiseptic Cream भी लगाया। थोड़ी देर के लिए जब मैंने उसे पुनः छत के फर्श पर नीचे रखा तो वह चलने लगा, मुझे उसका चलना देख कर अति हर्ष हुआ। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अब वह सुरक्षित है और अब वह जल्द खुली हवा में उड़ान भरेगा। कुछ देर वह पूरे छत पर आराम से चल रहा था पर जब-जब उड़ने कि कोशिश करता वह गिर जाता। अभी चंद छण ही बीते थे कि वह फिर से एक जगह रुक गया, मैंने उसे खूब हिलाया पर वह अब चल नहीं पा रहा था। मैं यह चाहता था कि वह ठीक हो जाये ; छत पर मौजूद पानी कि टंकी से मैंने थोड़ा पानी निकाल कर कबूतर को कटोरी में पीने को दिया। मैं उसे बड़े ध्यान से देख रहा था ! कटोरी में दिए पानी को कुछ हद तक उसने पिया मगर मैंने देखा कि कटोरी का पानी लाल रंग में तब्दील होता जा रहा था।

मैंने उस नन्हे पखेरू को फिर अपने हाथ से उठाया, देखा की उसके चोंच से रक्त कि कुछ बूंदें निकल रहीं थीं ; शायद यही वजह रही कि कटोरी में दिए हुए पानी का रंग लाल हो गया। यह घटना साफ़ दर्शा रही थी कि कबूतर को अंदरूनी चोट लगी है जिसका इलाज मेरे जैसे साधारण व्यक्ति के पास नहीं है। जैसे-जैसे समय निकलता जा रहा था वह नन्हा कबूतर निरंतर कमजोर होता जा रहा था। बूँद-बूँद कर निकलने वाला रक्त अब धारा प्रवाह हो चुका था ; मैं भी समझ गया कि अब इस सुन्दर जीव की मृत्यु सुनिश्चित है मगर यह जानते हुए भी मैंने उसे कुछ खाने को दिया। मृत्यु निकट हो तो भोजन कैसे अच्छा लगे फिर वो चाहे कोई जीव हो या मनुष्य।

मेरी कॉलोनी में मेरे बिल्डिंग के आस-पास कई वृक्ष हैं जिनपर अनगिनत कबूतरों का जमवाड़ा। यही कबूतररोजाना अपनी गुटरगूं की गूँज कर पूरी कॉलोनी में कोतुहल का माहौल बना कर रखते हैं। छत की फर्श पर पड़े इस घायल कबूतर, जो अपनी मृत्यु के निकट ही था मैंने सोचा की क्यों न मैं इसे अकेला छोड़ दूँ ! क्या पता इसके साथी इससे आ कर मिलें ! यह सोच मैंने उस घायल पखेरू को जो अब पूर्ण रूप से मरणासन्न कि अवस्था में जा पहुंचा था, उठा कर उसे एक सुरक्षित जगह पर रख दिया जहाँ कोई अन्य जीव उसके घायल शरीर को क्षति ना पहुंचा सके। खुद को दूर कर मैंने देखा कि पेड़ पर बैठे कबूतरों के झुण्ड में से कुछ कबूतर घायलावस्था में पड़े उस असहाय पखेरू से मिलने आ पहुंचे।

मैं एकटक होकर सारी गतिविधियों को ध्यान से देख रहा था। मैंने देखा कि धीरे-धीरे पक्षियों का समूह उसके पास आ पहुंचा ; यह नजारा बिलकुल वैसा ही था जैसे हम मनुष्य किसी मृत व्यक्ति की शोक सभा में शामिल होते हैं। आँखों के सामने चलने वाला वह दृश्य यह व्यक्त कर रहा था की पंछियों कि दुनियां भी हम इंसानों कि तरह ही है। उस मृत पखेरू के पास मंडराते अन्य कबूतर शायद उसे अंतिम विदाई दे रहे थे ! मैंने जरा और गौर फ़रमाया तो यह महसूस हुआ कि घायल कबूतर अब पूर्णतः मृत हो चुका है। उसके प्राण पखेरू अब सदा के लिए उड़ चुके हैं।

9 जुलाई, रविवार का दिन शुरू होने से पहले ही मेरे लिए ख़त्म हो गया। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी मृत्यु का कारण मैं ही हूँ।