सौतेली माँ – हिंदी कहानी

माधव की शादी को पूरे तीन बरस हो चुके थे, पर गुजरे तीन बरसों में माधव नें बहुत दुःख देखे व् सहे जिसमें से सबसे दुःखदायी पल रहा पत्नी अवंतिका की आकस्मिक मृत्यु। माधव अपनी पत्नी अवंतिका से बेहद प्रेम करता था; दोनों पति पत्नी को देख यही लगता था की यह जोड़ा सच में एक दूजे के लिए ही बना है। पर होनी-अनहोनी को कौन जाने; विवाह के पूरे 1 वर्ष बाद अवंतिका नें एक सुन्दर लड़के को जन्म दिया। घर में लड़का पैदा होने की खबर सबके चेहरे पर मुस्कान ला गयी। इधर माधव, अवंतिका और उनका एक बेटा खुशहाल जीवन जी रहे थे उधर घर के अन्य सदस्य भी नन्हें मेहमान को देख अति प्रसन्न थे। विवाह के उपरांत लड़की के दो घर हो जाते हैं जिसमें से एक उसका मायका और एक ससुराल। इसे सौभाग्य ही कहेंगे की अवंतिका को अपने दोनों घरों में बेहद प्रेम मिलता था। बेटे के जनम के बाद अवंतिका कुछ वक़्त अपने मायके में भी रही और फिर अपने ससुराल वापस आ गयी। माधव एयरफोर्स में था, जो एक दिन अपनी पत्नी अवंतिका को अपने साथ उस शहर ले गया जहाँ पर वो कार्यरत था। यह वो समय था जब नन्हा बच्चा कुल दो वर्ष का हो गया था; माधव अपनी पत्नी को शहर लाकर खासा उत्साहित था। वह चाहता था कि उसकी पत्नी शहर के हर रूप रंग को जाने समझे क्योंकि वो एक सरल ग्रामीण परिवार से थी। समय के साथ अवंतिका धीरे-धीरे शहर के क्रियाकलापों से अवगत होती गई; देखते ही देखते वो शहर की आबो हवा में इतना घुलमिल गयी की कोई अब ये नहीं कह सकता कि वो गांव की रहने वाली है।

शहर में आये दोनों पति पत्नी को एक वर्ष पूरे हुए। एक दिन अवंतिका सड़क पार करने के दौरान बड़ी कार की टक्कर से घायल हो गयी। उधर माधव अवंतिका को लेकर हॉस्पिटल में था इधर घर से आये दोनों ही परिवार के सदस्य तीन वर्ष के बेटे को सँभालने में लग गए। कार की टक्कर से शरीर पर तो कोई गहरी चोट नहीं आयी पर सिर में लगी अंदरूनी चोट को डॉक्टर समय से जान नहीं पाए। लगभग एक हफ्ते के उपरांत नींद में ही अवंतिका की मृत्यु हो गयी। अवंतिका की मृत्यु माधव के लिए किसी सदमें से कम न थी, एक तरफ वह पत्नी की असमय हुई मौत से व्यथित था तो दूजी ओर तीन वर्ष के बच्चे का चेहरा उसकी आत्मा को और दुःखी करता जा रहा था। माँ की कमी से बच्चा दिन रात विलाप करता पर पिता माधव अपने दर्द को अंदर दबाये उसे सांत्वना ही दे सकता था। दुःखी माधव अब इस हालत में पहुंच गया था कि उससे एयरफोर्स की नौकरी नहीं हो रही थी। जिस शहर में वो अपनी पत्नी के साथ आया अब वही शहर उसे काटने को दौड़ रहा था। बेटे माधव की दिमागी हालत देख पिता नें कहा – सुनो बेटा …. तुम चाहो तो ये नौकरी त्याग दो। कौन सा धन की कमी है, गांव चलो सदा के लिए। पिता की बात मान माधव नें एयरफोर्स की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लौट चला अपने छोटे से गांव सदा के लिए।

समय का पहिया अपनी धूरी पर घूमता रहा और अवंतिका की मृत्यु को 1 वर्ष पूरे हो गए। नन्हा सा बेटा जिसका नाम माधव नें अवंत रख दिया था वो अब स्कूल जाने लगा था। कभी दिन रात रोने वाला बेटा अवंत अब यह जान चुका था कि उसकी माँ अवंतिका अब इस दुनियाँ में नहीं है। मगर माधव तो आज भी यह आस लगाए बैठा था कि क्या पता अवंतिका फिर से उसके पास आ जाए।

खाने की मेज पर बैठे अवंत के दादाजी यानी माधव के पिता नें माधव से कहा – बेटा, मैं और तुम्हारी माँ अब बूढ़े हो रहे हैं; तुम्हारा यूँ हरवक्त उदास रहना देखा नहीं जाता। मेरी एक बात मानोगे पिता नें पूछा – माधव उनका इशारा समझते हुए बोला, पिताजी मैं कोई दूसरी शादी नहीं करूँगा। मैं नहीं चाहता की मेरे बेटे को कोई सौतेली माँ मिले। पिता और माँ नें फिर कहा – पर तू हमारे जाने के बाद अकेला हो जायेगा, कैसे गुजारेगा अपना जीवन और फिर अवंत भी तो है क्या पता कोई ऐसी लड़की मिले जो उसे अवंतिका की तरह ही प्यार दे और तेरा भी ख़याल रखे। माधव अपना पूरा खाना ख़तम किया बिना ही वहां से चला गया। सुबह तड़के उसके कमरे में जाकर माँ नें बहुत समझाया; इस प्रकार प्रतिदिन माँ और पिता के कहने से एक दिन माधव मान गया की को अब दूसरी शादी करेगा। निश्चित ही इस शादी में कोई धूम-धाम नहीं थी, शादी के लिए लड़की भी माधव के पिता नें अपनी पसंद से चुनी। बेटे माधव की शादी पुनः होती देख उसके माता पिता अति प्रफुल्लित थे, उन्हें यह पूरी उम्मीद थी कि उनका बेटा माधव फिर से पहले की तरह हँसने और खिलखिलाने लगेगा।

माधव की दूसरी पत्नी का नाम भी “अ” से ही शुरू होता था, एक दिन माधव नें अपनी दूसरी पत्नी अवनी से कहा देखो – मैं नहीं जानता की मैं तुम्हें पूरा प्यार दे पाउँगा या नहीं पर मैं यह जरूर चाहूंगा की तुम मेरे और अब हम दोनों के बेटे अवंत को पूरा प्यार दो। अवनी मैं यह नहीं जानता की तुम क्या सोचोगी पर मैं तुमसे एक बात कह दूँ की मैं कोई दूसरी संतान नहीं पैदा करूँगा। अपने पति माधव की बात सुन अवंतिका कुछ न बोली पर मन ही मन बहुत रोई। घर में आयी नई बहू अवंतिका का ही पुनः अवतार जान पड़ती थी क्योंकि वो अपने सास ससुर, अवंत और माधव का पूरा खयाल रखती। अवनी के इतने अच्छे व्यवहार पर भी माधव उससे दूरी ही बना के रखता पर वो अवनी को कभी बुरा भला नहीं कहता था। बेटा अवंत और अवनी अब पक्के दोस्त बन चुके थे, अवनी अपने पति माधव के कहे के अनुसार उसका अच्छा ख़याल रखती। बेटा अवंत अपनी नई माँ से काफी घुलमिल गया जैसे वही उसकी वास्तविक माँ हो। वैसे भी हमारे समाज में यह कहावत प्रसिद्द है कि जन्म देने वाले से पालने वाला महान होता है। यूँही जीवन के कई वर्ष गुजरते गए, बेटा अवंत अब बारहवीं कक्षा में प्रवेश कर चुका था और अपनी माँ अवनी से बेहद लगाव रखता था। अवंत और अवनी का अपार प्रेम देख माधव खुश था मगर न जाने वो अवनी को अब भी पूरी तरह क्यों न अपना सका। माधव का अभी भी नीरस व उदास रहना अवनी को तो परेशान करता ही था पर साथ में माधव की शारीरिक गिरावट भी होती जा रही थी।

जो पैदा हुआ है वो मरेगा भी, माधव के माता पिता भी काल के गाल में समा गए। छोटा सा बेटा अवंत अब अपनी पढ़ाई पूरी कर शहर में नौकरी करता था। एकलौता बेटा होने के नाते अवंत को घर में सभी से बेहद प्रेम मिला, यूँ ही शहर में नौकरी करने के दौरान अवंत को अपनी ही सहकर्मी से प्रेम हो गया जिससे विवाह करने की उत्सुकता लिए सबसे पहले उसनें अपनी सौतेली माँ अवनी को सूचित किया। जब यह बात अवनी नें माधव को बताई तो उसनें भी इस प्रेम विवाह को मंजूरी दे दी। इस प्रकार एकदिन अवंत विवाह के बंधन में बंध गया; विवाह के उपरांत अवंत अपनी प्रेमिका जो अब पत्नी बन चुकी थी, के साथ वहीं शहर में रहने लगा। इधर गांव में बैठा माधव जिसके चेहरे पर बुढ़ापे की लकीरें साफ़ दिखाई दे रहीं थीं, अपनी पत्नी अवनी के साथ अपने जीवन को धीमी गति के साथ जीता चला जा रहा था। अवनी भी अब नौजवां नहीं रह गई थी; सफ़ेद बाल, आँखों के काले घेरे, चेहरे की रौनक सब समय के हवाले हो चुके थे। अवनी जिसने कितने त्याग किये पर उसके त्याग को माधव कभी न जान पाया। वक़्त बदल गया, दौर बदल गया …. बेटा अवंत अपनी पत्नी के साथ विदेश को रवाना हो उठा। गांव के घर में बूढी अवनी और बूढा माधव अब पूर्णतः अकेले थे, पर अवनी माधव से ज्यादा अकेली थी क्योंकि उसका पति जीवन का इतना अरसा गुजर जाने के बाद भी कभी प्रेम के दो मीठे बोल न बोला, कभी अवनी की सुंदरता का बखान न किया, कभी अवनी से उसका हाल न पूछा और कभी अवनी को अपनी बाँहों में न लिया। यूँ तो अवनी कहने को अपने पति के साथ थी मगर वो अब बेहद अकेली थी; उसका बेटा अवंत, सास ससुर सभी उससे दूर जा चुके थे। एक रात, सुनो … सुनो … क्या आप मेरी बात सुन रहे हैं – यह प्रश्न अवनी नें पति माधव से किया। बार बार किये प्रश्न का उत्तर न मिलता देख अवनी नें माधव का हाथ पकड़ा जो ठंडा पड़ चुका था। बेहद ठण्ड की रात थी वो, माधव अकेली अवनी को और अधिक अकेला कर गया। ना पति, ना बेटा, ना बहू, ना सास-ससुर और ना ही माँ-बाप। अवनी किसी दीवार पर लगे सीलन के समान हो गयी थी जिसे जरूरत थी सजाने की संवारनें की।

यह सौतेली माँ कितनी अभागिन थी जिसने किसी को भी सौतेला न माना परन्तु वह सदैव सौतेली माँ ही कहलायी। बूढी हो चुकी अवनी, कभी बेटे अवंत को याद करती … उसकी गैर मौजूदगी में भी उसके साथ खेलती, दरवाजे की चौखट पर जाकर ऐजी सुनो….यहाँ आओ कहती। उसका यह व्यवहार देख मोहल्ले के बच्चे पगली कहने लगे थे। हां सच ही तो कहते थे – अवनी अब पूरी तरह पागल बुढ़िया थी। शायद सौतेली माँ का यही नसीब था।

 

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा