3 महीने का झूठा प्रेम – हिंदी कहानी
गीता के लिए आज का दिन काफी दुःखदायी था वह सोच रही थी कि विजय ऐसा कैसे कह सकता है। रातभर बिस्तर पर लेटकर वह यही सोचती रही की क्या इतना आसान होता है किसी को यह कह देना कि “अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता” ! पर उसके पति विजय नें गीता को यही शब्द बोले थे । रात जैसे तैसे गुजारने के बाद सुबह हुई । नाश्ते के मेज पर बैठा विजय फिर वही बात बोला – गीता मुझे लगता है अब हमारे रिश्ते पहले जैसे नहीं रह गए ; मैं अब तुमसे प्यार नहीं करता। पिछले कुछ महीनों से मुझे ऐसा लग रहा है की अब हमें अलग हो जाना चाहिए ! मैं नहीं जानता कि तुम्हारे मन में क्या है.. पर मैं अब तुम्हें अपनी पत्नी नहीं मानता । गीता नें भी जवाब देते हुए कहा, मैं जानती हूँ की तुम अब मेरे साथ नहीं रहना चाहते…मैं यह भी जानती हूँ की कारण क्या है शायद कोई और है जिसके साथ तुम अब रहना चाहते होंगे ! गीता के जवाब में कहीं न कहीं सच्चाई थी, विजय किसी और के साथ रिलेशनशिप में था।
मेज पर रखे नाश्ते को भी उसने ग्रहण नहीं किया ; यह कहते हुए ऑफिस की ओर निकला की शाम तक मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए !! गीता और विजय की एक पुत्र संतान भी थी बेटा ‘जय’ जो कि अभी मात्र 5 वर्ष का ही था। यह सच है कि गीता भी पिछले कुछ महीनों से शारीरिक रूप से अस्वस्थ थी पर विजय को उसकी सुध कहाँ, वह तो दिन रात अपने नये रिश्ते में व्यस्त था। ना वो गीता को समय देता ना ही अपने बेटे जय को; ऐसे में भला उसे गीता की शारीरिक दुर्बलता, कमजोरी और बीमारी की सुध कहाँ। समय का पहिया बस यूँ ही घूम रहा था, गीता के माँ बाप भी अब इस दुनियां में नहीं थे कि वे उसका खयाल रखें।
शाम तक की मोहलत विजय नें गीता को दी थी, गीता काफी परेशान थी। वह यही सोच रही थी कि अपने पति को अपनी हालत के बारे में कैसे समझाये; अपने बेटे जय को वो बेइंतहां प्यार करती थी। जय के स्कूल से आने के बाद सारा दिन उसके साथ बैठी रही; उसके विचारों में अतीत की परछाईयाँ साफ़ झलक रहीं थीं जिनको स्मरण कर वो कभी मुस्कुराती तो कभी उदास होती। चेहरे के बदलते हुए भावभंगिमा के बीच बेटा जय अपनी माँ को निहारता जा रहा था। दोपहर ढल चुकी, अब सांझ हो चली थी; मन ही मन में गीता नें विजय का जवाब तलाश लिया था। कुछ सवालों के जवाब बहुत कठिन होते हैं क्योंकि वे हमारी ज़िन्दगी से जुड़े होते हैं। अलमारी में रखीं अपनी शादी की एल्बम, माँ पिता की तस्वीरें, बेटे जय के बचपन की फोटो और विजय के साथ गुजरे हसीन पल की तमाम यादगार तस्वीरों को देखती हुई गीता आज अपने वर्तमान पे रो रही थी। वह यह सोचकर आंसू बहाये जा रही थी कि आखिर उसका क्या कसूर, वक़्त नें उसी के साथ ऐसा क्यों किया? खुद के सवाल और खुद के जवाबों के बीच शाम रात में तब्दील हो गयी। विजय हर रोज की तरह आज भी समय पर घर नहीं आया। बेटे जय को रात्रि का भोजन करा गीता विजय का इंतज़ार करती रही।
तकरीबन रात 11 बजकर 40 मिनट पर घर के दरवाज़े पर किसी नें दस्तक दी। विजय ही था, आते ही बोला मैं खाना नहीं खाऊंगा तुम खा लो ! पर गीता को भोजन नहीं विजय के अगले सवाल का इंतज़ार था ; आखिर विजय नें वह सवाल पूछ ही लिया – तो क्या सोचा तुमने ? मुझे तुमसे डिवोर्स चाहिए क्या तुम इसके लिए राजी हो ?
गीता नें गंभीर स्वर में कहा – विजय, क्या तुम सच में मुझसे डिवोर्स चाहते हो ? विजय नें कहा – हाँ ! गीता बोली – हम अब अकेले तो नहीं, बेटे का क्या होगा ? विजय चुप रहा, उसकी चुप्पी देख गीता बोली – सुनो मेरी एक शर्त है।
गीता आगे कहते हुए – मुझे अपनी नहीं बेटे जय की चिंता है, मैं यह चाहती हूँ कि कम से कम तुम अगले 3 महीने तक मेरे साथ रहो।
अपनी बात को जारी रखते हुए गीता बोली – 3 महीने तक तुम मुझसे अच्छे से बात करोगे, मुझे प्यार करोगे, रोजाना समय पर घर आओगे, हम अपने बेटे के साथ बाहर घूमने भी जाया करेंगे, उसके साथ खूब खेलेंगे….!!
विजय नें गीता के द्वारा रखे गए इस अजीब शर्त का कारण पूछा – गीता नें उत्तर दिया, अगर तुम यूँ अचानक मेरा साथ छोड़ दोगे तो जय को परेशानी होगी; तुम नहीं जानते वो कितना कोमल है और तुम्हें कितना प्यार करता है। कुछ दिन हम सब साथ बिता लें, मैं बेटे जय को इन 3 महीनों में समझा लूंगीं !!
विजय जिसे किसी भी हाल में गीता से डिवोर्स चाहिए था उसने तनिक भी देरी नहीं की यह अनोखी शर्त मानाने में। विजय यही सोच रहा था कि जहाँ इतने वर्ष निकल गए वहां 3 महीने क्या हैं ! यह सोचते हुए की चलो कम से कम 3 महीने बाद वो आज़ाद हो जायेगा और अपनी नई प्रियसी से विवाह रचाएगा।
गीता जिसे मन में अपने प्यारे बेटे का ख़याल तो था ही उससे भी ज्यादा उसका अपना। उसके मन में कुछ ऐसा था जिसे उसनें अपने दिल में दबा रखा था…अगले 3 महीनों में वह राज भी खुलने वाला था। हक़ीक़त को स्वीकारते हुए गीता बस 3 महीने की खुशियों को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी।
गीता का स्वास्थ अब और अधिक ख़राब हो चला था पर विजय की आँखों में अब वह रौशनी नहीं रह गयी थी जिससे वह अपनी पत्नी गीता की स्थिति को देख सके। तीन महीने के लिए ही सही, विजय गीता की शर्तों का पालन बड़ी ईमानदारी पूर्वक कर रहा था। वह प्रतिदिन समय से घर आता, पत्नी गीता से प्यार भरी बातें करता, बेटे जय के साथ खूब खेलता….मायूस से दिखने वाले इस परिवार में खुशियां लौट आयीं थीं, बेशक 3 महीने के झूठे प्रेम पर।
विजय नें अब फ़ोन पर समय बिताना कम कर दिया था। छुटियों के दिनों में वह पत्नी गीता और बेटे के साथ बाहर घूमने जाता, खरीददारी करता, खाना खाता और बेटे को खूब दुलारता। विजय का यह बदलाव देख गीता प्रफुल्लित थी, प्रसन्न थी !! सबसे ज्यादा खुश था ‘जय’ जो माँ बाप के होते हुए भी बहुत अकेला रहता था। विजय का जय के प्रति प्यार देख गीता की खुशियों का ठिकाना न था; वहीँ जय पापा के साथ समय बिता कर आनंदित था।
कहते हैं – गम की एक रात भी सदियों के बराबर प्रतीत होती है और खुशीयां ऐसी होतीं हैं की सदियों को भी पल में समेट देती हैं । गीता सोच रही थी की….काश यह सब पहले होता ! काश हम सब एक साथ ऐसे ही हमेशा रहते ! काश….काश….? जाने कितने काश वह सोच रही थी, क्योंकि आज शर्त का 1 महीना पूरा होने वाला था। अब आगे सिर्फ दो महीने ही बचे थे और वे दो महीने सबसे ख़ास थे… वजह – गीता और विजय की शादी की सातवीं सालगिरह आने वाली थी। इतना ही नहीं बेटे जय का भी जन्मदिन इन्हीं आने वाले 2 महीनों में था।
ज्यों ज्यों समय निकलता त्यों त्यों गीता और कमजोर होती जा रही थी। बेटा तो बहुत छोटा था पर पति विजय को अब भी सुध नहीं थी की वो गीता की कमजोरी का कारण पूछे। विजय को यूँ लापरवाह देख गीता दुःखी तो थी पर…उसे अपनी सच्चाई से अवगत भी नहीं कराना चाहती थी। शायद वो यह स्वयं चाहती थी की विजय उसकी हक़ीक़त ना जाने।
उधर विजय जब से अपने परिवार से जुड़ा था उसकी प्रेमिका उससे काफी नाराज थी। विजय समय से ऑफिस जाता, समय से घर को निकलता….जब उसकी प्रेमिका यह पूछती की तुम आजकल ऐसा क्यों कर रहे हो, तो वह कहता की बस कुछ दिन और रुको मैं जल्द ही तुमको खुशखबरी दूंगा। प्रेमिका क्या जाने की विजय 3 महीने के लिए एक अनोखे शर्त को पूरा करने में लगा है। विजय को भी जल्दी थी की बस किसी तरह अगले दो महीने भी निकल जाएं और मैं गीता से अलग होकर अपनी प्रेमिका को अपना लूँ। विजय का समय से घर जाना, फ़ोन पर कम बातें करना, रोज नए तोहफे न देना, बाहर खाने पर न ले जाना, फिल्में न दिखाना इत्यादि उसी प्रेमिका को नागवार गुजरे।
घर में मौजूद गीता, अगले महीने आने वाली अपनी शादी की 7वीं सालगिरह पर बहुत खुश थी। उस दिन वो क्या पहनेगी, क्या शॉपिंग करेगी, विजय क्या तोहफा देगा….और जाने क्या क्या होगा यह कल्पना कर उसका मन नहीं थक रहा था।
अंतः महीने की 24 तारिख का वह दिन आ ही गया !! विजय ऑफिस से जल्दी घर को निकल पड़ा…अपने हाथों में लिए गुलाब का गुलदस्ता लिए वह अपने घर में दाखिल हुआ अंदर का नजारा देख वह चौंक गया। शांत, मायूस, दुःख की छाँव में रहने वाला घर आज सितारों सा जगमगा रहा था। बेटा जय नए कपड़ों में खड़ा पापा के आने का इंतज़ार कर रहा था और गीता नें वही साड़ी पहन रखी थी जिसे विजय नें शादी के बाद पहली सालगिरह पर तौफे में दी थी। घर में खुशियों का यह मंजर देख विजय चकित और उत्साहित था। हाथ में लिए गुलाब के गुलदस्ते को आगे कर उसके अपनी पत्नी गीता को प्यार से दिया और प्रेम पूर्वक उसे अपने गले लगा लिया।
बेटे को दुलारते हुए, विजय पूरे परिवार के साथ कहीं बाहर जाने को तैयार हुआ….शहर के सबसे प्रसिद्ध रेस्टोरेंट में विजय नें पहले से ही एक टेबल बुक करा रखी थी। अपने विजय को पुनः प्राप्त कर गीता खुश तो थी पर उसे ये ग़म भी था कि आज 24 तारीख हो चुकी अब महज 1 महीना यानी 30 दिन ही रह गए हैं। शादी की यह 7वीं सालगिरह गीता के लिए ख़ास थी; विजय जो गीता से सीधे मुँह बात तक नहीं करता था आज उससे हर बात की इज़ाज़त ले रहा था, मानो जैसे पुराना प्यार लौट आया हो। 24 तारीख की यह रात बड़ी खुशियों वाली थी !! यहाँ तक आते-आते शर्त के दो महीने पूरे हो गए।
विगत 2 महीनों में बिताये हुए समय गीता, विजय और बेटे जय के लिए सच में स्मरणीय थे। अब 30 दिनों का खेल बाकी रह गया था; एक दिन जब विजय ऑफिस को चला गया…अचानक गीता फर्श पर गिर पड़ी। पति ऑफिस, बेटा स्कूल; घर में अकेली गीता नें कैसे भी करके स्वयं को नियंत्रित किया। पति और जय के साथ बिताये पुरानी यादों और पिछले 2 महीनों की प्राप्त खुशियां गीता की आखों में पानी बनकर उभर आये थे। नहीं होना चाहती थी वो दूर अपने पति और बेटे से !! डॉक्टर अस्थाना का कहा हुआ अब शायद सच होने की कगार पर था। एक तरफ अपनी ज़िन्दगी और दूजी तरफ बेटे जय को लेकर चिंतित गीता बार बार यही सोच रही थी कि क्या विजय सच में उसे छोड़ देगा? अगर वो दूसरी शादी कर लेगा तो क्या आने वाली लड़की बेटे जय का पूरा खयाल रख लेगी? क्या विजय अब भी झूठा प्यार ही दिखा रहा है? अपने ही सवालों से घिरी गीता को कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था।
ऑफिस में अपनी प्रेमिका का व्यवहार देख विजय चकित रह गया ! साथ जीने और मरने की कसमें खाने वाली प्रेमिका नें आज विजय से यह कह दिया कि “तुममे अब मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं रहा” !! मैं अगले महीने शादी करने जा रही हूँ! उम्मीद है तुम जरूर आओगे। प्रेमिका के मुख से निकले यह वाक्य विजय की आंखें खोल देने वाले थे। आज विजय को अपने कृत्य पर शर्म महसूस हो रही थी; वह प्रेमिका को अपना सच्चा हमदम जान निरंतर अपनी पत्नी गीता की उपेछा करता रहा। गीता के साथ झूठे प्रेम का खेल अब सच्चे प्रेम में दब्दील हो गया। ऑफिस का काम काज छोड़ विजय निकल पड़ा अपने घर की ओर; वह परेशान था, दिल में दबी हर बात को गीता से कह देना चाहता था। गीता से मिलने का ये उतावलापन विजय नें पहली बार महसूस किया, वह अपनी कार की तरफ्तार तेज़ कर बस गीता का ही स्मरण करता जा रहा था।
गीता से मिलन की जल्दी इसकदर थी कि विजय बाहर से ही गीता…..गीता की आवाज़ें लगाता हुआ घर में प्रवेश कर रहा था। कई बार बोलने पर भी किसी नें उत्तर नहीं दिया। ना बेटे की आवाज़ आयी ना पत्नी गीता की; जो घर कुछ दिन पहले ही सितारों से सजा था वहाँ एक बार फिर सन्नाटा पसरा था। घर के हर कमरे में जाकर विजय नें गीता को तलाशना चाहा किन्तु वो कहीं नहीं मिली। वियज कुछ और करता उससे पहले उसके पास फ़ोन आया कि आप सिटी हॉस्पिटल चले आईये। हॉस्पिटल की बात सुन विजय दौड़ पड़ा अपनी कार की तरफ और फिर उसी गति से हॉस्पिटल की ओर रुख किया जिस गति से वो अपने घर की ओर ऑफिस से निकला था।
विजय नें हॉस्पिटल पहुँच यह देखा की वहां उनके पडोसी और बेटा जय मौजूद हैं। बेटा जय अपने पापा को देख झट से उनके पास आ गया ! पड़ोसी मेहता साहब से उसने पूछा – क्या हुआ अचानक?
मेहता जी नें धीमे स्वर में कहा – हमें नहीं पता विजय! हमें तो तब पता चला जब तुम्हारा बेटा स्कूल से लौटकर आते ही रोने लगा। जब हम घर में पहुंचे तो देखा गीता फर्श पर गिरी है, उसका मुँह खुला हुआ है….धड़कनें तेज़ चल रहीं हैं पर वह हमारी बात का जवाब नहीं दे पा रही है। गीता की हालत देख हमनें यहाँ सिटी हॉस्पिटल में उसे दाखिल कराया। जब हम यहाँ आये तो पता चला कि डॉक्टर अस्थाना उसे पहले से ही जानते हैं। इससे पहले की हम उनको कुछ बताते वे खुद ही गीता को इमर्जेन्सी वार्ड में लेकर गए और तब से अब तक हमें कोई सूचना नहीं दी गयी।
विजय डॉक्टर अस्थाना से मिलने पहुंचा। क्या हुआ डॉक्टर ?….क्या हुआ गीता को ? विजय बार बार यह सवाल पूछे जा रहा था। आखिरकार डॉक्टर अस्थाना विजय को अपने केबिन में ले गए ! केबिन का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा – विजय आज यह सवाल क्यों पूछ रहे हो?
जब पहली बार गीता मेरे पास अपने इलाज के लिए आयी तो हमने देखा की वो कैंसर के दूसरे भाग में पहुँच गयी है। सेकंड स्टेज कैंसर का…कुछ समझे तुम? मैंने उससे कहा की अपने पति को ये बात बता दो। पर उसने तुमको बताना मुनासिब न समझा….उसकी वजह क्या है शायद तुम जानते होंगे। जानते हो मैंने तुम्हें यहाँ अकेला केबिन में क्यों बुलाया – सुनो आज उसका आख्रिरी दिन है। गीता जिससे तुम आज़ादी चाहते थे वो तुम्हें सच में आज़ाद करके जाने वाली है। पिछले एक साल से मैं गीता का इलाज कर रहा हूँ; पर वो हमेशा अकेली आयी। कैसी पति हो तुम? किस प्यार की तलाश में थे?
डॉक्टर अस्थाना के सवालों से आहत विजय कुछ भी न बोल सका और लगातार यही कहता रहा की कैसे भी करके मेरी पत्नी को बचाइए। वो एक बार फिर मेरी नज़रों के सामने आकर खड़ी हो जाए तो मैं अपनी सारी गलती की माफ़ी उससे मांग लूंगा। कैसे भी बचाइए डॉक्टर साहब गीता को…..!
डॉक्टर अस्थाना बोले – विजय !! गीता को बचाया जा सकता था पर वह बहुत देर से आई मेरे पास। जब वो आयी तभी वह बहुत कमजोर हो चुकी थी, मैं एक डॉक्टर होने के नाते उसको सांत्वना तो देता ही था पर मैंने उसे यह भी साफ़ जाहिर कर दिया था की उसकी म्रुत्यु तय है। क्योंकि कैंसर का दूसरा स्टेज भी पूरा होने की कगार पर ही था। चूँकि उसके पास जीने की मोहलत कम थी तो मैंने उसे खुल कर जीवन जीने की सलाह दी; काश तुम कभी ध्यान से उसकी पीड़ा को देखते।
शाम जैसे जैसे ढल रही थी…विजय का मन व्याकुल होता जा रहा था। आज विजय सच में एक अच्छे पति और अच्छे पिता की भूमिका अदा कर रहा था। बार बार उस कमरे में झाँक कर गीता को देख आता था; आज गीता का चेहरा उसे निहारने का जी कर रहा था…..पश्चाताप की अग्नि में जलता विजय अपनी बात कहे तो किससे?? किसी करिश्मे की आस लिए वह ये सोच रहा था बस गीता अच्छी हो जाये तो उसको अपने दिल की बात कह दूँ और अपने किये की माफ़ी मांग लूँ।
गीता से मुक्ति की कामना करने वाला विजय आज उससे किसी भी हाल में जुदा नहीं होना चाहता था। 3 महीने का झूठा प्रेम…अब जीवन भर का सच्चा साथ मांग रहा था। इतने में डॉक्टर अस्थाना रात के 9 बजे आकर यह कहते हैं की……..She is No More !! विजय गीता अब इस दुनियां में नहीं रही।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा
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रवि प्रकाश शर्मा
मैं रवि प्रकाश शर्मा, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट। डिजिटल मार्केटिंग में कार्यरत; डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाते हुए हिंदी भाषा को नई ऊंचाई पर ले जाने का संकल्प। हिंदी मेरा पसंदीदा विषय है; जहाँ मैं अपने विचारों को बड़ी सहजता से रखता हूँ। सम्पादकीय, कथा कहानी, हास्य व्यंग, कविता, गीत व् अन्य सामाजिक विषय पर आधारित मेरे लेख जिनको मैं पखेरू पर रख कर आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मेरे लेख आपको पसंद आयें तो जरूर शेयर कीजिये ताकि हिंदी डिजिटल दुनियां में पिछड़ेपन का शिकार न हो।