अब्बा मैं यह जानती हूँ कि तुम अब्बा हो फिर भी तुम यह जान लो कि अगर मैं अब्बा होती तो मैं यूँ ना करती। हाँ, तमाम शिकायत है मुझे तुमसे शायद महज़ इसलिए कि तुम अब्बा हो। अगर मैं अब्बा होती तो यूँ कभी ना करती कि तुम्हारे कपड़े आ जाने से खुद
यह सच है कि दुनियां तेज़ी से बदल रही है, हर नए दिन हमारे पास नए तकनीकी आयाम मौजूद होते हैं और डिजिटल दुनियां से अब कोई भी अभिन्न नहीं। डिजिटल दुनियां के इन सौगातों में एक अतुलनीय नाम शामिल है जिसको “इंस्टाग्राम” के नाम से जाना जाता है। मुझे यह बताने की कोई
हर एक शख्स का ख्वाब होता है खूबसूरत आशियाने में रहने का, यूँ तो हर घर अमूमन कुछ ही दिनों में बन जाता है। लेकिन उसे अपने मुताबिक सजाने का एहसास ही कुछ और होता है। घर को पूरी शिद्दत से सजानेे की चाहत का एहसास अलग होता है। हमारे घर का हर एक
इस बात में कोई संदेह नहीं कि आपको बचपन से ही यह सिखाया होगा कि आपका स्वभाव अत्यधिक सरल होना चाहिए और कई हद तक यह बात सच भी है या फिर यूँं कहें कि यह बात पूर्णतः सत्य है। आप जितना सरल रहेंगे आपका जीवन उतनी ही सरलता से व्यतीत होगा। एक सरल
संसार में अपने भाव व्यक्त करने का सबसे मूलभूत आधार है संप्रेषण। यह समस्त मानव विकास की आधारशिला है। अमूमन हर शख्स 3 साल की उम्र तक बोलना सीख लेता है। लेकिन कब, कहाँ, कैसे और कितना बोलना है, यह गुण सीखने के लिए उसे सारी उम्र का फ़ासला भी कम पड़ जाता है।
यदि आप किसी बड़े विकल्प की ओर जाना चाहते हैं तो आपके लिए यह अति आवश्यक है कि आप सभी छोटे विकल्पों को ठुकरा दें। इस बात में कोई दो राय नहीं कि हर विकल्प अपना अस्तित्व अपने साथ लेकर आता है, लेकिन यदि आप पूर्ण तौर से इनका विश्लेषण करने में समर्थ नहीं
जी हाँ ‘आज’ आपका हैं, सिर्फ आपका लेकिन क्या आप अपने आज को आज की तरह से जी रहे हैं ? यह कितना मुश्किल है ? अपने आज को आज बना पाना ? क्योंकि आपके हर एक संभव ‘कल’ का आरंभ आज से होता है । जो अब तलक हो चुका है उस पर
सन 1992, Montessori Junior High School जो की एक गैर सरकारी विद्यालय था; जिसमें कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8वीं तक के बालक बालिकाएं अध्ययन किया करते थे। यह विद्यालय गैर सरकारी होते हुए भी सरकारी विद्यालयों की तरह ही जान पड़ता था, जहाँ दौर के हिसाब से व्यवस्था अत्यंत ही साधारण थी। परन्तु
ना जाने हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारी दुनियां बेहद बड़ी है। यहाँ तमाम रिश्ते, बातें, फसाने, अफसाने, हमदर्द, हमराही और हमसफर भी हैं। फिर भी हम हमारी दुनिया को छोड़कर वर्चुअल दुनियां में जीने के लिए इतने विवश हो चुके हैं कि हमें यह भी याद नहीं कि हमारी असल दुनियां
“मैं तुम्हारे साथ और नहीं रह सकता” “हाँ , तो मुझे भी तुम्हारा साथ कौन सा बर्दाश्त होता है ?” “वह तो बस यूं था कि बच्चों को संभालना था वरना मैं कब का यहाँ से जा चुकी होती” “अब मुझे तुमसे तलाक चाहिए” “हाँ मैं भी यही चाहती हूँ” यह एक और रात