टूटते बिखरते पारिवारिक रिश्ते ! आखिर क्यों ? भारतीय समाज में संयुक्त परिवार की प्रथा रही है फिर आखिर ऐसा क्या हो गया की एक संयुक्त परिवार विखंडित होने लगा और आज के आधुनिक परिवेश में तो सब कुछ बिखर चुका है। क्या परिवार का विखंडित होकर रहना सच में एक दोष है ?
एक अच्छा स्वास्थ्य एक अच्छी जिंदगी का निर्धारक होता है। अमूमन महिलाओं में स्वास्थ्य से जुड़ी हुई समस्याएं अधिकतर देखने को मिलती हैं इसका एक मुख्य कारण यह है कि उन्हें अपने दफ्तर के कार्य के अलावा घर के कार्यों को भी पूर्ण करने का जिम्मा पूरा करना होता है। जिसके चलते शरीर में
आप क्या बनना चाहते हैं यह सब सम्पूर्ण रूप से आप पर ही निर्भर करता है। कामयाब हो जाना और एक बेहतर इंसान बन पाना दोनों में बहुत फर्क है। अमूमन हर शख्स ही जिंदगी के दायरों को हासिल कर ही लेता है, जो जिंदगी को जिंदगी बनाने के लिए काफी है। एक अच्छी
कहते हैं कुछ एहसासों को ज़ाहिर करने का कभी कोई सही वक्त नहीं आता। उन्हें जब भी जाहिर कर दिया जाए तभी सही वक्त बन जाता है क्योंकि इन एहसासों के ज़ाहिर होने की गुंजाईश बहुत कम होती है, या यूं कहें कि ना के बराबर होती है। आज ऐसा ही एक एहसास मेरे
अस्मिता के अंग्रेजी मायने है – ‘सेल्फ इमेज’ और हिंदी अर्थ है – ‘आत्माश्लाघा’ , निश्चित ही हिंदी हमारे भारतवर्ष की सर्वमान्य सर्व पूजनीय शान है अभिमान है। भाषा संस्कृति की धारक और संवाहक होती है। भाषा का प्रश्न देश की अस्मिता से जुड़ा होता है। भाषा है तो घर है, घर है तो
तुम कम से कम उसे देख तो पाते हो ना उसे देख कर जी तो पाते हो ना तुम कम से कम उसे देखकर, महसूस कर तो पाते हो ना तुम कम से कम उसकी आंखों को पढ़ तो पाते हो ना तुम कम से कम उन आंखों को पढ़कर, दिल को संभाल तो
गतिशीलता ही जीवन है। संपूर्ण विश्व एवं भारतीय इतिहास ‘विचरण करते रहो‘ का सूत्रपात करते रहे हैं। ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय‘ अर्थात सबके हित और कल्याण के लिए विचरण करते रहो। गीता में भी श्रेष्ठ व्यक्ति के लिए ‘अनिकेत: स्थिरमत:’ अर्थात स्थिर बुद्धि परंतु विचरणकर्ता कहा गया है। संपूर्ण संसार में दो प्रकार की
ज़िंदगी, यह जितना खूबसूरत लफ्ज़ है शायद उतना ही जटिल भी या यूँ कहें कि हम इसे जटिल बनाने पर उतारू होते है, उन परिस्थितियों को उत्पन्न करते हुए जो वास्तव में आधार शून्य हैं; या फिर जिनको भ्रम की आधारशिला प्रदान कर दी गई हो। फिर इस पथ पर साहस, दृढ़ निश्चय और
दिनभर की थकी-हारी बेचारी कान्ता, ज्यों ही शाम खाट पर लेटी आँख लग गयी कितना शांत होता है गांव का वातावरण, और रात तो बिल्कुल खामोश सी जान पड़ती है। कहीं कुछ हलचल थी भी, तो सिर्फ हवाओं में जो पेड़ों पर झूलते पत्तों से टकराकर शोर उत्पन्न कर रहे थे। हाथों के कंगन,
डिजिटल इंडिया का शुभारंभ 1 जुलाई 2015 को दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में हुआ। इस मुहीम का सीधा सा लक्ष्य है कागजी कार्यवाही कम करना और हर भारतीय को इलेक्ट्रॉनिक सेवा मुहैया कराना और प्रोजेक्ट के पूरा होने का वर्ष है 2019। इस योजना की कुछ बानगी देखें- ई स्वास्थ्य, ई शिक्षा, ई