किसी वृद्ध पुरुष और वृद्ध महिला को देखकर हमारे मन में उनके प्रति एक मोह उमड़ आता है। यह मोह तब और गहरा हो जाता है जब आपको पता चले कि इनका बेटा इनको अकेला छोड़ कहीं दूर शहर या परदेस में रहता है। बिना हक़ीक़त और सच्चाई को जाने समाज के लोग उसके
आजकल के वक्त में रिश्ते बहुत तेजी से बदल रहे हैं, ऐसा अक्सर होता है कि जो लोग ज्यादा वक्त तक एक दूसरे के साथ रहकर खुश नहीं रह पाते लेकिन यह तो मानव जीवन का सच है कि परिवर्तन होना अनिवार्य है। लेकिन उससे ज्यादा जरूरी भी कुछ है तो वह है की
आज का दौरा असीम सुविधाओं का दौर है। इस दौर में सब कुछ इतना अधिक सुविधाजनक हो गया है कि प्रेम भी सुविधाओं पर ही आश्रित होता चला जा रहा है। एक नज़र से देखा जाए तो ऐसा होना लाज़मी भी है, क्योंकि जब कोई चीज सुविधाजनक नहीं होती तो वह संघर्षपूर्ण हो जाती
‘मित्रता दिवस Happy Friendship Day’ ; 5 August 2018 इस विश्व के तमाम रिश्तों में से एक अतुलनीय रिश्ता है दोस्ती । एक बेहतरीन Dosti Yaari से ज़्यादा खूबसूरत इस दुनिया में और कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता, क्योंकि दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसे हम खुद चुनते हैं या यूँ कहा
टूटते बिखरते पारिवारिक रिश्ते ! आखिर क्यों ? भारतीय समाज में संयुक्त परिवार की प्रथा रही है फिर आखिर ऐसा क्या हो गया की एक संयुक्त परिवार विखंडित होने लगा और आज के आधुनिक परिवेश में तो सब कुछ बिखर चुका है। क्या परिवार का विखंडित होकर रहना सच में एक दोष है ?
कहते हैं कुछ एहसासों को ज़ाहिर करने का कभी कोई सही वक्त नहीं आता। उन्हें जब भी जाहिर कर दिया जाए तभी सही वक्त बन जाता है क्योंकि इन एहसासों के ज़ाहिर होने की गुंजाईश बहुत कम होती है, या यूं कहें कि ना के बराबर होती है। आज ऐसा ही एक एहसास मेरे
मैं आज अपने घर परिवार से दूर एक अजनबी शहर में आ गया वजह था पैसा। एक अति-निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के लिये पैसे कि अहमियत क्या होती है ये मुझसे बेहतर भला कौन जान सकता था। दादाजी किसान और पिता जी कचहरी में एक साधारण typist थे ; माताजी के बारे में क्या कहूँ
“सामूहिक और एकल परिवार” , मैं किसी कथा कहानी या फिल्म की बात नहीं कर रहा बल्कि ये शीर्षक वर्तमान में कमजोर होते पारिवारिक रिश्तों और प्रभावित होते जीवन के मामलों को उजागर करता है। हमारे देश में माँ बाप , भाई बहन, पती पत्नी के अलावा ऐसे कई अन्य रिश्ते भी हैं जिन्हें